प्रकृति भी ईश्वर के समान ही समर्थ है अपनी उन्नति और विकास में वह रुकना नहीं जानती हाँ जो स्वयं रुक रहा हो उसके लिए वह अभिशाप अवश्य बन जाती है।
-गेटे