जो वस्तुएँ सरलता से मिल जाती हैं, वे महान् नहीं होतीं। महान् वस्तुओं के लिये दुर्गम मार्ग पर चलना होता है।
-लोकमान्य तिलक
वैद्य जी को इस बात की प्रसन्नता हुई कि उनको यह अनुकूल प्रयोग मिल गया। इसलिये उन्होंने उल्टा रोगी को ही अपनी ओर से इनाम दिया। यह घटना यह बताती है हम अपने आहार में सम्पूर्ण नहीं, तो कुछ ही दिन नमक को छोड़ दें, तो अधिकाँश बीमारियाँ बिना औषधि के ही ठीक कर सकते हैं। क्योंकि प्रकृति ने शरीर में स्वच्छता और सफाई की व्यवस्था अपने आप कर दी है। यदि कुछ दिन नमक न लें, तो भीतर भरी हुई गन्दगियाँ अपने आप घुलकर साफ हो सकती हैं और रक्त-कण फिर से सशक्त एवं नीरोग हो सकते हैं।
नमक हृदय को भी बहुत हानि पहुँचाता है। जब तक सोडियम और कैल्शियम स्वाभाविक रूप से आता रहता है, हृदय की पेशियाँ सहज ढंग से काम करती रहती हैं। पर जैसे ही इस सन्तुलन में गड़बड़ी आई कि हृदय की माँस पेशियों में दबाव बढ़ा। फल यह होता है कि हृदय की गति बढ़ती है और रक्तचाप भी। इसी कारण स्नायु संस्थान पर जोर पड़ता है और वह खराब होता है। बायोकेमिस्ट श्री बंगे का कथन है कि हजारों वर्ष पूर्व पृथ्वी में सोडियम और पोटेशियम उपयुक्त मात्रा में था, तब खाद्यान्न के साथ सोडियम की मात्रा पर्याप्त रूप से मिल जाती थी, पर वर्षा के कारण कुछ दिन बाद सोडियम तत्व पानी में घुलकर बह गया। इसलिए नमक खाने की आवश्यकता पड़ीं। पर सोचने वाली बात है कि सोडियम के साथ क्लोरीन की क्या आवश्यकता? यदि सोडियम आवश्यक ही था, तो उसे प्राकृतिक रूप में ले सकते थे। नमक के रूप में तो वह हृदय की पेशियों में भार ही लाता है।
इस अस्वाभाविक आहार को भारतीय आचार्यों ने और भी गहराई से समझा था, तभी वह शारीरिक शुद्धता के लिये उसके न्यूनतम प्रयोग पर जोर देते रहे हैं। नमक मुँह से लेकर आमाशय तक विरेचन का कार्य करता है। उससे अनेक उपयोगी तत्वों का व्यर्थ क्षरण हो जाता है और शरीर में गड़बड़ी फैलती है। यदि नमक न लें, तो हमारे शरीर के कोषों में इतनी शुद्धता आ सकती है कि किसी भी भारी-से-भारी विष के प्रभाव को निरस्त किया जा सके। कुछ दिन पूर्व अखबारों में ऋषिकेश के एक साधु की घटना छपी थी कि एक सर्प ने एक साधु को काट लिया। साधु को तो कुछ नहीं हुआ, पर साँप की मृत्यु हो गई। पीछे रुड़की के डाक्टरों ने साँप की जाँच की, तो पता चला कि महात्मा के शरीर में कोई ऐसा तत्व था, जो सर्प के विष से उल्टा और तीव्र प्रतिक्रिया वाला था। उसी से सर्प की मृत्यु हो गई।
योगाभ्यास में प्रत्याहार का महत्व वैज्ञानिक है। उससे शरीर में ही इन साधु जैसी किसी अत्यन्त शक्तिशाली सत्ता के विकास को तो वैज्ञानिक ढंग से प्रतिपादित करना यहाँ सम्भव नहीं, पर आहार में नमक न लेने के महत्व को तो वैज्ञानिक और डॉक्टर भी स्वीकार करते हैं। यह लाभ सामान्य जीवन में भी योगाभ्यास की तरह ही लिये जा सकते हैं। हम कुछ दिन नमक न खाने का अभ्यास करें तो इन परिवर्तनों को स्पष्ट अनुभव कर सकते हैं।