धर्म सीधी लकीर नहीं, बल्कि विशाल वृक्ष है। उसके करोड़ों पत्ते हैं, जिनमें दो पत्ते भी एक-से नहीं हैं।
-महात्मा गाँधी
वह छोटी साइकिल, छोटी गेंद, लकड़ी की घोड़ा-गाड़ी आदि सब छीन लेती है और बड़ी वस्तुएँ देती है, जिससे वह गृहस्थ-पालन व समाज-सेवा की जिम्मेदारी पूरी करता है। कोई बड़ा होकर भी यदि वही खेल-खिलौने माँगे, तो उस पर हंसा ही जा सकता हैं। वृद्धा इस बात को जानकर ही छोटी वस्तुएँ छीन लेती है।
आज विज्ञान की उपलब्धियाँ सामान्य स्तर की नहीं रहीं। वह अनुभव कर रहा है कि कोई पदार्थ से भी बड़ी सत्ता संसार में है। यदि ऐसी सम्भावना है, तो उसे प्रत्यक्ष वादी मान्यताओं तक ही सीमित न रहकर धर्म और अध्यात्म के सूक्ष्म जगत् में प्रवेश की प्रेरणा भी मनुष्य को देनी चाहिए। धर्म की आँख विज्ञान से बड़ी और यथार्थ है। जब तक हम वह दूसरी आँख भी नहीं खोलते, तब तक अपने और संसार के वास्तविक स्वरूप को उसी प्रकार समझ न सकेंगे, जिस प्रकार पानी में पड़े मेंढक ने केवल कुएँ को ही संसार समझा और उसी में चहकता-फुदकता रहा