वन में खड़े एक पौधे के साथ लिपटी हुई एक लता भी धीरे-धीरे बढ़ कर पौधे के बराबर हो गई। पौधे का आश्रय लेकर उसने फलना-फूलना आरम्भ कर दिया।
बेल को फलते-फूलते देखकर वृक्ष को अहंकार हो गया कि मैं न होता, तो लता कब की नष्ट हो गई होती। उसने धमकाते हुए कहा-”ओ री बेल! मैं जो कुछ कहूँ, तू उसका पालन किया कर, नहीं तो तुझे मारकर भगा दूँगा।”
अभी वह लता को डाँट ही रहा था कि दो पथिक उधर से निकले। एक बोला-बन्धु! देखिये, यह वृक्ष कैसा शीतल और सुन्दर है। इस पर कैसी अच्छी लता पुष्पित हो रही है-आओ, यहाँ कुछ देर बैठकर विश्राम करें।
अपना सारा महत्व लता के साथ है, यह सुनकर वृक्ष का सारा अभिमान नष्ट हो गया। उस दिन से उसने लता को धमकाना बन्द कर दिया।