एकेनापि सुवृक्षेण पुष्पितेन सुगन्धिना।
वासितं स्याद्वन्नं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥
जैसे एक ही वृक्ष विकसित होकर अपनी सुगन्ध से समस्त वन को सुवासित कर देता है, वैसे ही एक ही सद्गुण सम्पन्न सुपुत्र समस्त कुल को यश का भागी एवं विख्यात कर दिया करता है।