‘नन्ही सी चिनगारी, तुम भला मेरा क्या बिगाड़ सकती हो, देखती नहीं मेरा आकार ही तुमसे हजार गुना बड़ा है अभी तुम्हारे ऊपर केवल गिर पड़ूं तो तुम्हारे अस्तित्व का पता भी न लगे। तिनकों का ढेर अहंकार पूर्वक बोला।
चिनगारी बोली कुछ नहीं, चुपचाप ढेर के समीप जा पहुँची। तिनके उसकी आँच में भस्मसात होने लगे। अग्नि की शक्ति ज्यों ज्यों बढ़ी तिनके त्यों-त्यों जलकर नष्ट होते गये, देखते-देखते भीषण रूप से आग लग गई और सारा ढेर राख में परिवर्तित हो गया।
यह दृश्य देख रहे आचार्य ने अपने शिष्यों को बताया- बालकों जैसे आग की एक चिनगारी ने अपनी प्रखर शक्ति से तिनकों का ढेर खाक कर दिया तेजस्वी और क्रियाशील एक व्यक्ति ही सैंकड़ों बुरे लोगों से संघर्ष में विजयी हो जाता है।