विचार ही जीवन की आधारशिला है।

May 1964

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विचारों में महान शक्ति है। जिस तरह के हमारे विचार होंगे उसी तरह की हमारी सारी क्रियाएं होंगी और तदनुकूल ही उनका अच्छा बुरा परिणाम हमें भुगतना पड़ेगा। विचारों के पश्चात ही हमारे मन में किसी वस्तु या परिस्थिति की चाह उत्पन्न होती है और तब हम उस दिशा में प्रयत्न करने लगते हैं। जिसकी हम सच्चे दिल से चाह करते हैं, जिसकी प्राप्ति के लिए हम अन्तःकरण से अभिलाषा करते हैं, उस पर यदि दृढ़ निश्चय के साथ कार्य किया जाय, तो उस वस्तु की प्राप्ति अवश्यंभावी है। जिस आदर्श को हमने सच्चे हृदय से अपनाया है, यदि उस पर मनसा वाचाकर्मणा चलने को हम कटिबद्ध हैं, तो हमारी सफलता निःसन्देह है।

जब हम विचार द्वारा किसी वस्तु या परिस्थिति का चित्र मन पर अंकित कर उसके लिए प्रयत्नशील होते हैं, उसी समय से उस पदार्थ के साथ हमारा सम्बन्ध जुड़ना आरम्भ हो जाता है। यदि हम चाहते हैं कि हम दीर्घ काल तक नवयुवा बने रहें, तो हमें चाहिए कि हम सदा अपने मन को यौवन के सुखद विचारों के आनन्द-सागर में लहराते रहें। यदि हम चाहते हैं कि हम सदा सुन्दर बने रहे, हमारे मुख-मण्डल पर सौंदर्य का दिव्य प्रकाश हमेशा झलका करे तो हमें चाहिए कि हम अपनी आत्मा को सौंदर्य के सुमधुर सरोवर में नित्य स्नान कराते रहें।

यदि आपको संसार में महापुरुष बनकर यश प्राप्त करना है, तो आप जिस महापुरुष के सदृश होने की अभिलाषा रखते हैं, उनका आदर्श सदा अपने सामने रक्खें। आप अपने मन में दृढ़ विश्वास जमा लें कि हममें अपने आदर्श की पूर्णता और कार्य सम्पादन शक्ति पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। आप अपने मन से सब प्रकार की हीन भावना को हटा दें और मन में कभी निर्बलता, न्यूनता, असमर्थता और असफलता के विचारों को न आने दें। आप अपने आदर्श की पूर्ति हेतु मन, वचन, कर्म से पूर्ण दृढ़तापूर्वक प्रयत्न करें और विश्वास रक्खें कि आपके प्रयत्न अन्ततः सफल होकर रहेंगे।

आशाजनक विचारों में बड़ी विलक्षण शक्ति भरी हुई है। आप इसका अवश्य अनुभव लीजिए। आप यह दृढ़ धारणा बना लीजिए कि हमारी अभिलाषाएँ - यदि वे सात्विक और पवित्र हैं- अवश्य पूर्ण होंगी, हमारे मनोरथ सिद्ध होंगे और हमारे सुख स्वप्न सच्चे साबित होंगे। हमारे लिए जो कुछ होगा, वह अच्छा ही होगा बुरा कभी न होगा। तब आप देखेंगे कि इस तरह के शुभ, दिव्य और आशामय विचारों का आपकी शारीरिक मानसिक, साँसारिक एवं आध्यात्मिक उन्नति पर क्या ही अच्छा असर होता है।

आप अपने हृदय में इस विश्वास की जड़ जमा लें कि जिस कार्य के लिए सृष्टिकर्ता परमात्मा ने हमें बनाया और यहाँ भेजा है, उस कार्य को हम अवश्य पूर्ण करेंगे। इसके विषय में अपने अन्तःकरण में तिल मात्र भी सन्देह को स्थान न दें। आप हमेशा उन्हीं विचारों को अपने मन मन्दिर में प्रवेश करने दें, जो हितकर हैं, कल्याणकारी हैं। उन विचारों को देश निकाला दे दो, जो मन में किसी प्रकार का सम्भ्रम, अविश्वास उत्पन्न करते हों। आप अपने पास उन विचारों को जरा भी न फटकने दें, जो असफलता या निराशा का संकेत मात्र करते हों।

आप चाहे जो काम करें, चाहे जो होना चाहें पर हमेशा उसके बारे में आशापूर्ण, शुभसूचक विचार रखें। ऐसा करने से आप को अपनी कार्य शक्ति बढ़ती हुई मालूम होगी और साथ ही साथ यह भी अनुभव होगा कि हम दिनों दिन प्रगति कर रहे हैं। जहाँ आपने अपने मन मन्दिर में आनन्दप्रद, सौभाग्यशाली और शुभ चित्रों को देखने की आदत बनाली तो फिर इसके विपरीत परिणामकारी आदत बनाना आपके लिए असम्भव हो जायगा।

क्या आप वास्तव में सुख की खोज में हैं? तो आप मन वचन और काया से यह धारणा कर लें कि हमारा भविष्य प्रकाशमान होगा, हम उन्नतिशील और सुखी होंगे, हमें सफलता और विषय एवं सब प्रकार की आनन्दजनक सामग्री प्राप्त होगी। बस, सबसे प्रथम सुविचारों की दिव्य पूँजी लेकर कर्मक्षेत्र में प्रवेश कीजिए और फिर उसके मीठे फल चखिए।

बहुतेरे मनुष्य अपनी इच्छाओं को-अपनी आशामय तरंगों को- जाज्वल्यमान रखने की बजाय उन्हें कमजोर कर डालते हैं। वे इस बात को नहीं जानते कि हमारी अभिलाषाओं की सिद्धि के लिए जितना ही हम दृढ़ भाव, अविचल निश्चय रखेंगे, उतना ही हम उनको सिद्ध कर सकेंगे। कोई बात नहीं यदि हमें अपने कार्य सिद्धि का समय बहुत दीर्घ मालूम होता हो, पर यदि हम सच्चे दिल से उसको प्रत्यक्ष करने के लिए जुट जावेंगे, तो धीरे-धीरे अवश्य ही हम अपने कार्य में सफल हो जावेंगे।

बहुतेरे मनुष्य कहा करते हैं कि भाई! अब हम बूढ़े हो गये, थक गये, बेकाम हो गये। अब हमें परमात्मा बुला ले तो अच्छा हो। वे इस रोने को रोते रहते हैं कि “हम बड़े अभागे हैं, कमनसीब हैं। हमारा भाग्य फूट गया है-दैव हमारे विरुद्ध हैं। हम दीन है, लाचार हैं। हमने जी तोड़ परिश्रम किया, उन्नत होना चाहा पर भाग्य ने हमें सहायता न दी।” पर वे बेचारे इस बात को नहीं जानते कि इस तरह का रोना-रोने से हम अपने हाथ से अपने भाग्य को फोड़ते हैं। उन्नति रूपी चन्द्रिका को काले बादलों से ढाँकते हैं। इस तरह के कुविचार हमारी शान्ति, सुख और सफलता के घोर शत्रु हैं। इन्हें देश निकाला देने में ही कल्याण है। उत्पादक शक्ति का यह एक नियम है कि जिसका हम दृढ़ता पूर्वक चिंतन करते है, वह वस्तु हमें अवश्य प्राप्त होती है। यदि आप इस बात का पक्का विश्वास करें कि हमें आवश्यक सुख सुविधाओं का लाभ होगा, हम समृद्धिशाली होंगे, हम प्रभावशाली होंगे और आप इस दृष्टि से अपना प्रयत्न आरम्भ करेंगे तो आप में इस प्रकार की विलक्षण उत्पादन−शक्ति का उदय होगा जो आपके मनोरथों को सफल करेगी।

बहुत से मनुष्य कहेंगे कि इस तरह के स्वप्नों में डूबे रहने से-कल्पना ही कल्पना में रहने से-हम वास्तव में कुछ भी न कर सकेंगे पर यह उनकी भूल है। हमारे कहने का यह आशय नहीं है कि आप हमेशा कल्पना लोक में ही विचरते रहें, विचार ही विचार में रह जावें, केवल मन ही के लड्डू खाया करें। किन्तु हमारे कहने का आशय यह है कि किसी काम को करने के पहले उस काम को करने की दृढ़ इच्छा मन में कर लें और सारी विचार-शक्ति को उस ओर झुका दें। मन के विचारों को मन ही में लय करके उसको कार्य रूप में परिणित करना अत्यावश्यक है। सब बड़े आदमी जिन्होंने महत्ता प्राप्त की है, वे सब पहले उन सब अभिलषित पदार्थों का स्वप्न ही देखा करते थे। जितनी स्पष्टता, आग्रह एवं उत्साह से उन्होंने अपने सुख-स्वप्न की, आदर्श की सिद्धि के लिए प्रयत्न किया, उतनी ही उन्हें सिद्धि प्राप्त हो सकी।

समृद्धि के अंकुर पहले हमारे मन में ही फूटते हैं और फिर इधर-उधर फैलते हैं। दरिद्रता का भाव रखकर हम समृद्धि को अपने मानसिक क्षेत्र में कैसे आकर्षित कर सकते हैं? क्योंकि इस दुर्भाव के कारण वह वस्तु, जिसकी हम चाह करते हैं एक पैर भी हमारी ओर आगे नहीं बढ़ती। कार्य करना किसी एक चीज के लिए और आशा करना किसी दूसरी की-यह स्थिति बहुत ही सोचनीय है। मनुष्य समृद्धि की चाहे जितनी इच्छा करे, पर दुर्दैव के-गरीबी के विचार समृद्धि के आने के द्वारों को बन्द कर देते हैं। सौभाग्य और समृद्धि, दरिद्रता एवं निरुत्साहपूर्ण विचारों के प्रवाह द्वारा अवरुद्ध होने के कारण आप तक नहीं आ सकते। उन्हें पहले में मानसिक क्षेत्र में उत्पन्न करना चाहिए। यदि हम समृद्धि शाली होना चाहें तो पहले हमें उसके अनुसार अपने विचार बना लेने चाहिएं।

निश्चय कर लो दरिद्रता के विचारों से हम अपने मुँह को मोड़ लेंगे। हम केवल हठाग्रह से समृद्धि की ही आशा रखेंगे, ऐश्वर्य आदर्श ही को अपनी आत्मा में जगह देंगे, जो कि हमारी स्वाभाविक प्रकृति के अनुकूल है। निश्चय कर लो कि हमें सुख-समृद्धि प्राप्त करने में अवश्य सफलता मिलेगी। इस तरह का निश्चय, आशा और अभिलाषा तुम्हें वह पदार्थ प्राप्त करायेगी, जिसकी तुम्हें बड़ी लालसा है। हार्दिक अभिलाषा में अटूट उत्पादक शक्ति भरी है। जीवन में सफलता प्राप्त करना केवल हमारे विचारों की महानता पर निर्भर है। विचार ही हमारे जीवन की आधारशिला है।


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