सोपान भूतं स्वर्गस्य मानुष्यं प्राप्य दुर्लभम्।
तथात्मानं समाधत्स्व भ्रश्यसे न पुनयथा॥
सुर दुर्लभ मानव शरीर जो बड़े पुण्यों से प्राप्त होता है, स्वर्ग प्राप्ति का सोपान है। इसे शुभ कार्यों में लगाना चाहिये ताकि मनुष्य अवनति, पथ भ्रष्टता, पतन की ओर अग्रसर न हो सके।
जीवन में पद-पद पर साहस और शक्ति की आवश्यकता है। जीवन में आने वाली परिस्थितियों का आप उत्साह और साहस के साथ स्वागत करें, उसकी चुनौती को स्वीकार करें। तभी आप जीवन के वरदानों से लाभान्वित हो सकेंगे। जीवन में खाने-पीने, का उपभोग करने की वस्तुओं का प्रायः अभाव नहीं रहता, सच्चा अभाव अपने मानसिक असन्तुलन, आन्तरिक असन्तोष और गलत दृष्टिकोण का ही रहता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे अधिकाँश दुःख, अभाव, अभियोगों का आधार भी यही है। अपने मानसिक स्वास्थ्य को सुधारें, जो विकृतियाँ अन्दर घर किए बैठी है उन्हें दूर करें तभी आप निश्चय ही आनन्दमय जीवन जी सकेंगे।