हम भी क्रियाकुशल क्यों न बनें?

May 1964

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सभी तरह के कार्य, व्यवसाय, खेती, शिल्प, कला, नौकरी मजदूरी आदि अपने-अपने स्थान पर अपना महत्व रखते हैं। प्रत्येक अपने स्थान पर उतना ही उपयुक्त है जितना दूसरे छोटे काम को भी भली प्रकार करते हुए, मनुष्य जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है। इसी तरह बड़े काम को ठीक-ठीक तरह न करके वह जीवन में असफल भी हो सकता है। काम के छोटे-बड़े होने का इतना अधिक महत्व नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात है काम को करने का ढंग तरीका। एक व्यक्ति किसी अच्छे काम को भी लापरवाही एवं अपनी कमजोरियों से बिगाड़ कर जीवन में असफल हो सकता है तो दूसरा व्यक्ति अपने साधारण से काम को रुचि लगन एवं तत्परता के साथ पूर्ण करके उसे जीवन की सफलता का आधार बना लेता है।

‘बाटा’ नाम का एक मोची का लड़का शहर की सड़कों पर बैठकर जूतों की मरम्मत पालिश आदि करता था। किन्तु अपने काम को भली प्रकार करते हुए वह अपने जीवन काल में जूतों का सम्राट बन गया। आज भी बाटा कम्पनी जूतों के लिए प्रसिद्ध और विश्वस्त मानी जाती है। वाशिंगटन साधारण व्यक्ति से बढ़कर अमेरिका के राष्ट्रपति बन गये थे। वे प्रारंभ में एक दीन-हीन किसान परिवार के सदस्य थे। कालिदास अपने ही प्रयत्नों के कारण महामूर्ख से प्रकाण्ड विद्वान बन गये। इस तरह इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जिनमें दीन-हीन सामान्य परिस्थितियों से उठकर अनेकों व्यक्तियों ने महानता प्राप्त की। यह कोई जादू या करामात नहीं थी वरन् अपने सामने आये हुए काम के प्रति उनकी लगन निष्ठा, परिश्रम, दिलचस्पी, जागरुकता एवं अन्य सद्गुणों का परिणाम था।

एक छोटे बच्चे एडीसन को उसकी माँ वैज्ञानिक बनाने के विचार से एक बड़े वैज्ञानिक के पास ले गई और उनके पास अपने बच्चे को रखने की प्रार्थना की। उस वैज्ञानिक ने बच्चे को अपने पास रख लिया और मकान में झाडू लगाने का काम सौंपा। वह बालक बड़ी तन्मयता के साथ मकान में झाडू लगाता। मकान के कोने, दीवारें, छतें, अलमारियां फर्श आदि को वह खूब साफ रखता। वैज्ञानिक बालक की कार्य कुशलता से बड़ा प्रसन्न हुआ और वही उस वैज्ञानिक की देख-रेख में आगे चलकर महान वैज्ञानिक बना। यदि बालक पहले ही यह सोच लेता कि यहाँ तो झाडू लगाने का काम है यहाँ क्या सीखने को मिलेगा चलें? तो शायद वह अपने जीवन की महानता को प्राप्त न कर पाता। अन्य साधारण व्यक्तियों की तरह ही अपना जीवन बिताता।

जब किसी काम को पूर्ण लगन और दिलचस्पी के साथ किया जाय तो मनुष्य की सोयी हुई शक्तियाँ जाग्रत हो उठती है। उसमें काम करने की क्षमता, शक्तियों का विकास हो जाता है। और इसी से वह एक से दूसरे काम में सफलता प्राप्त करता चला जाता है। काम में मन का न जमना, शिकायतें करना, काम की कठिनाइयों को बढ़ा−चढ़ा कर तूल देना, काम से घृणा करना ऐसी बातें हैं जिससे काम में रुचि नष्ट हो जाती है और फिर छोटा हो या बड़ा कोई भी काम पूरा नहीं हो पाता। मनुष्य को असफलताओं का सामना करना पड़ता है, इसी के साथ उसकी अकर्मण्यता भी बढ़ती जाती है।

प्रत्येक कार्य एक कला है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। प्रत्येक कार्य का मौलिक आधार समान है। जिस तरह एक कलाकार अपनी कला से प्रेम करता है उसमें तन्मयता, के साथ खो जाता है, उसके प्रति दिलचस्पी और लगन का अटूट स्रोत उमड़ पड़ता है, उसी तरह प्रत्येक काम को किया जाय तो वह काम ही निश्चित समय पर वरदान बनकर मनुष्य को धन्य कर देता है। प्रत्येक कार्य एक खेल, कला मालूम हो, बोझा न लगे, तभी मनुष्य उसमें सफलता अर्जित कर सकता है।

दिलचस्पी, लगन, तन्मयता के साथ ही अपने काम में सतत जागरुकता, सतर्कता बरतना भी आवश्यक है। इससे दुतरफा लाभ होता है। सर्व प्रथम मनुष्य की मानसिक शारीरिक शक्तियों का नियंत्रण और व्यवस्था कायम होती है। अन्तःक्षेत्र में उठने वाली विघटनात्मक ध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का संयम होता है। बुद्धिमता, शक्ति सफलता को सतर्कता जागरुकता से संरक्षण और पोषण मिलता है। बाह्य क्षेत्र में इससे काम की ठीक-ठीक व्यवस्था क्रम निर्धारित होते हैं। काम की आवश्यकतायें महसूस होती हैं और मनुष्य उसके प्रति अपना पूरा श्रम अंजाम कर देता है। अपने कार्यों में ढीलापन, सतर्कता का अभाव, गैर जिम्मेदारी, अव्यवस्था, अनिश्चितता का होना असफलता को निमंत्रण देना ही है। किसी देश का रक्षक दल अपनी ड्यूटी पर तो तैनात हो किन्तु सतर्क और जागरुक न हो, ढीली-ढाली प्रवृत्ति हो, कोई जोश न हो तो उस पर दुश्मन का आक्रमण और देश में दुश्मन की घुसपैठ, तोड़-फोड़ और एक दिन अधिकार हो जाना संभव है। इसी तरह सतर्कता जागरुकता का मनुष्य के कामों में भी इतना ही महत्वपूर्ण स्थान है।

इंग्लैण्ड की एक घटना है। एक भारतीय ने अपने कपड़े एक दर्जी को सिलने के लिए दिए। दर्जी ने कपड़ों को तैयार कर लौटाने की निश्चित तिथि बतला दी। निश्चित दिन वे महाशय अपना कपड़ा लेने उस दर्जी के यहाँ गये। उन्होंने देखा दुकान बंद है किन्तु एक खिड़की खुली हुई है और उसमें एक लड़का बैठा हुआ है। लड़के से पूछ-ताछ करने पर उसने कहा ‘आज मालिक के घर एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई है सब लोग उसे दफनाने गये हुए हैं। केवल मैं ही आपके कपड़े देने के लिए बैठा हुआ हूँ।’ बच्चे ने कपड़े दिए और फिर खिड़की बंद कर दी। अपने काम के प्रति इस तरह की जागरुकता पाबंदी ही मनुष्य को उसमें सफल बनाती है।

अपने काम के प्रति सतत जागरुक रहने वाले, समय के पाबंद लोग सर्वत्र विश्वासपात्र माने जाते हैं। तत्परता से ही विश्वसनीयता प्राप्त होती है। जो मालिक स्वयं कार्यरत रहते हैं, जिन्हें अपने काम की बारीकियों से लेकर गहरी बातों तक का ज्ञान रहता है वे अपने कर्मचारियों के लिए भी प्रेरणाप्रद बन जाते हैं और काम में ढील-ढाल, टालमटोल करने वाले कर्मचारियों पर अंकुश का काम देते हैं। वे समय के आगे रहते है और अपने काम पर सवार रहते हैं। जो लोग आलस्य और ढीली-ढाली प्रवृत्ति से अपने काम पर तैयार नहीं रहते वे पिछड़ जाते हैं।

किसी भी व्यवसाय, काम की सफलता के लिए उसमें व्यवस्था, सफाई, स्वच्छता, रखना उतना ही आवश्यक है जितना उसके प्रति दिलचस्पी लगन जागरुकता आदि। स्वच्छता, व्यवस्था, क्रम से ही काम में सौंदर्य, आकर्षण और उत्कृष्टता पैदा होती है। किसी भी छोटी दुकान, शिल्प कार, कलाकार के मकान से लेकर बड़े होटल, व्यावसायिक केन्द्र, कारखाने तक में यदि अव्यवस्था गंदगी होगी, अस्त-व्यस्त सामान बिखरा पड़ा होगा तो कोई भी वहाँ आने वाला व्यक्ति उससे प्रभावित न होकर दूर हटने का ही प्रयत्न करेगा। गंदगी, अव्यवस्था, फूहड़पन के वातावरण में लोगों का सर चकराने लगना, जी मिचलाना, मिज़ाज खराब होना स्वाभाविक ही है। ऐसी स्थिति में किसी व्यवसाय की सफलता होने की आशा करना विडम्बना ही होगी। व्यवस्था, स्वच्छता, क्रम, सही तरीके के अभाव में कई व्यक्ति अपने वर्षों से चालू किए गये काम की प्रारंभिक स्थिति, गई बीती हालत में ही पड़े रहते है। अपना दीन-हीन घिनौना जीवन बोझ की तरह बिताया करते हैं।


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