न हृष्यत्यात्मसंमाने, नावमानेन तप्यते।
गाँगो ह्रद इवाक्षोन्यो, यः स पण्डित उच्यते॥
जो आत्म सम्मान से फूलता नहीं, तिरस्कार से दुःखी नहीं होता। गंगा के आगाध जल की भाँति कभी क्षुब्ध नहीं होता-वह पण्डित कहलाता है।
सतर्कता, तन्मयता उत्साह प्रसन्नता के साथ भविष्य की आशा रखकर सुव्यवस्था, स्वच्छता, सफाई, क्रमबद्ध रूप से मनोयोगपूर्वक किए गए कार्यों में कुछ अपवादों को छोड़कर आम तौर पर मनुष्य को सफलता मिलती ही है। सामान्य से महान बनने के लिए अपने काम के प्रति पूरा-पूरा अंजाम देना और निष्ठा, लगन के साथ कर्मों पासना करना आवश्यक है।