मधु संचय (Kavita)

May 1964

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तुम में ज्योति इसी से ही तो सूरज चमका करता,

तुझमें शाँति इसी से चंदा शीतलता है भरता;

यह कोमल आकर्षण तेरे भव्य हृदय की माया,

देख रहा जो कुछ वह तेरे ही भावों की छाया;

हिमगिरि तुँग विशाल इसीसे झुका न तेरा मस्तक,

सरिताएं गतिवान, चरण की गति न सकी इससे रुक;

नव-घन बन तूने जग-मरुथल पर जीवन बरसाया,

देख रहा जो कुछ वह तेरे ही भावों की छाया;

तेरी एक श्वास में अंकित वासुदेव की गीता,

तेरा ही विश्वास राम, तेरी श्रद्धा ही सीता;

तू क्या यह सब भेद अभी तक जान नहीं है पाया।

देख रहा जो कुछ वह तेरे ही भावों की छाया॥

-विद्यावती मिश्र

शबनम-सा तो तुम जीवन भर रोये हो,

कुछ फूलों-सा काँटों में भी मुस्कालो॥

पतझर के पीले पात गिने हैं तुमने,

कुछ मधुऋतु की कोंपल को भी तो देखो।

दुख की आँधी से परिचय नित्य किया है,

सुख के विस्तृत अंचल को भी तो देखो॥

पथ में पग-पग पर मिले पराजय के स्वर,

अब मंजिल पर तो गीत विजय के गालो॥

माना दुःख है, पर रोने से क्या होगा,

असहाय रुदन पर हंसते हैं जगवाले।

आँसू पोंछों, मुस्कानों को अपना लो,

दुर्भाग्य-दुर्ग पर पड़ जायेंगे ताले॥

रोओगे तो अपने भी साथ न देंगे।

हंस-हंस कर औरों को मन मीत बनालो॥

-विनोद रस्तोगी

जिनको विश्वास अडिग निज पर वरदान नहीं

माँगा करते-

कब जाना शलभ विचारे ने जलना उसकी नादानी है?

शबनम का कतरा क्या जाने वह मोती है या पानी है?

कंटक में कलियाँ पलीं चटक कर फूल बनी

अलि मंडराया,

वे क्या जाने अलि तब तक है जब तक यह खिली

जवानी है।

जो देने में ही सुख पाते प्रतिदिन नहीं माँगा करते,

जिनको विश्वास अडिग निज पर वरदान नहीं

माँगा करते।

-अज्ञात

ओ देश की जवानियों, चलो उठो-उठो,

इतिहास की निशानियों, चलो उठो-उठो,

ओ जून की रवानियों, चलो उठो-उठो,

संघर्ष की कहानियों, चलो उठो-उठो,

हम जन्म लें स्वतंत्र ही, स्वतंत्र ही मरें-

तुम अर्चना करो, अमोघ अर्चना करो,

तुम अर्चना करो।

अधिकार लो, सदा न भीख माँगते रहो

संग्राम से जनम-जनम न भागते रहो,

छाई घटा, चली हिलोर, जागते रहो,

घर में कहीं घुसे न चोर, जागते रहो,

अपने महान देश के कुशल बचाव की-

तुम योजना करो, सशस्त्र योजना करो,

तुम योजना करो।

कुचली गई स्वतंत्रता कि फनफना उठो,

अपमान देश का हुआ कि झनझना उठो,

हमला अगर कहीं हुआ कि सनसना उठो,

दुश्मन बढ़े कि आर-पार दनदना उठो,

संसार भी अगर कहीं मुकाबला करे-

तुम सामना करो, समर्थ सामना करो,

तुम सामना करो।

-गोपाल सिंह नेपाली

चाँद से, सूर्य से, शोलों से, सितारों से खेल।

फूल से, शूल से, पतझर से, बहारों से खेल॥

जिन्दगी खेल है, कोई नहीं साथी तो क्या?

कफन पहन और, चिता वाले अंगारों से खेल।

-नीरज

युग-निर्माण आन्दोलन की प्रगति


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