सफलता के सूत्र

May 1964

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जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता अर्जित करने के लिए कई बातों की आवश्यकता होती है। आवश्यक तैयारी में तनिक से कमी रहने पर भी सफलता कोसों दूर हट जाती है। तनिक सी भूल-चुक हो जाने पर मनुष्य के मनोरथ अपूर्ण ही रह जाते है। सफलता का मार्ग बड़ा क्लिष्ट और जटिल है। वह अनेकों बातों पर निर्भर करती है। जिनमें कुछ निम्न हैं।

(1) एक लक्ष्य, एक ध्येय :- संसार में अनेकों कार्यक्रम हैं। मानव की शक्ति, क्षमता एक सीमित और निर्धारित परिधि में रहती है। जन-साधारण एक साथ अनेकों लक्ष्य, अनेकों कार्यक्रमों का बोझा नहीं ढो सकता। कोई भी मनुष्य अनेकों दिशाओं में भाग दौड़ नहीं सकता। प्रत्येक मनुष्य के लिए जो सफलता प्राप्त करना चाहता है उसे एक ही लक्ष्य का चुनाव करना पड़ेगा। उसे ही अपना अभीष्ट ध्येय बनाना पड़ेगा। उसी के अनुसार कार्यक्रमों में लगना पड़ेगा। युद्ध के लम्बे और विस्तृत क्षेत्र में किसी फौजी टुकड़ी का नायक दुश्मन से भिड़ने के लिए मोर्चा बना लेता है। उसी मोर्चे पर जब वह डटकर संघर्ष करता है तो बहुत कुछ सफलता मिल जाती है। यही बात जीवन संग्राम पर भी लागू होती है। जीवन में एक लक्ष्य, एक ध्येय और एक कार्यक्रम का चुनाव सफलता की पहली माँग है। संसार के महान कहे जाने वाले और सामान्य दर्जे के लोगों में एक यही अन्तर रहा है। महान बनने वाले अपने जीवन को एक दिशा में प्रेरित कर उसमें खपा देते हैं। दूसरी ओर सामान्य लोग कभी इधर कभी उधर भटकते रहकर जीवन में कोई महत्वपूर्ण सफलता अर्जित नहीं कर पाते।

जीवन में असफल होने वाले बहुत से लोगों का एक कारण अपने लिए एक निर्दिष्ट दिशा-लक्ष्य का चुनाव न करना भी रहता है। कभी इधर, कभी उधर, एक को छोड़कर दूसरे में, दूसरे को छोड़कर तीसरे काम में लगने वाले व्यक्ति किसी में भी सफलता प्राप्त नहीं करते। इसलिए अपने जीवन की एक दिशा निर्धारित कीजिए और सदैव उसी ओर चलते रहिए। कई लोग एक कार्य में बहुत-सा समय बिता कर उसे छोड़ बैठते हैं और फिर दूसरे काम को हाथ में लेते है। इस तरह के अधिकाँश लोग जीवन में असफलता का ही सामना करते हैं।

कई लोग काम कुछ करते हैं और उनका मन उलझा रहता है किन्हीं दूसरी बातों में। ऐसा मनुष्य अपने काम को पूरा-पूरा अंजाम नहीं दे पाता। बैठे हैं दुकान पर और मन घूम रहा है सर्कस में। काम कर रहे हैं दफ्तर में किन्तु मन उलझा रहता है राजनैतिक दाव-पेंचों में। अतएव उन्हें किसी भी तरफ से सफलता नहीं मिलती। चाहे कितना ही छोटा सामान्य लक्ष्य क्यों न चुना जाय, मनुष्य यदि अन्त तक उसमें एकाग्र होकर लगा रहेगा तो वही उसका सफलता के वरदान से स्वागत करेगा। किसी भी कार्य को हाथ में लेकर उसे पूरा करने में कोई कसर न उठा रखना ही सफलता का मूलमंत्र है।

(2) शक्ति और क्षमता का उपयोग :- पानी को एक निश्चित ताप तक गर्म करने पर ही उससे भाप बनती है- वह भाप जिसकी शक्ति से विशालकाय इंजन धक्का पाकर अपने पथ पर आगे बढ़ता है। यदि भाप अन्य रास्तों से निकल जाय या पानी को कम दर्जे की गर्मी दी जाय जिससे भाप पैदा नहीं हो तो इंजन आगे नहीं बढ़ेगा। जीवन-रूपी इंजन को भी अपने लक्ष्य, उद्देश्य की ओर अग्रसर करने में अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को केन्द्रित करना पड़ता है। किसी कार्य की पूर्ति के लिए आवश्यक शक्ति क्षमता की आवश्यकता है। जब तक मनुष्य अपनी सम्पूर्ण शक्ति, क्षमता को अपने लक्ष्य की पूर्ति में नहीं लगाता तब तक सफलता संदिग्ध ही रहती है। अधूरे मन से जी चुराकर बोझा समझकर अपने काम में लगने वाले लोगों को प्रायः असफलता ही मिलती है। किसी काम की इच्छा करने से या लक्ष्य का चुनाव करने से ही काम की पूर्ति नहीं हो जाती। काम के लिए लक्ष्य के लिए, प्राणपण से जाना होता है तभी सफलता की मंजिल पाई जा सकती है। बिना श्रम और प्रयास के सफलता की आशा करना आकाश-कुसुम तोड़ने के समान ही है। अतः अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए सफलता के लिए अपनी समस्त शक्ति और क्षमता का उपयोग कीजिए। प्राण-प्रण से उसमें जुट जाइए।

(3) व्यापक दृष्टिकोण :- जीवन में किसी भी कार्य के चुनाव के लिए अपनी रुचि और पसन्द को स्थान देना ठीक है किन्तु फिर भी अनुभवहीनता, एवं अज्ञान की स्थिति में मनुष्य की रुचि और पसंद का दायरा बहुत ही सीमित और संकीर्ण रहता है। ऐसी स्थिति में मनुष्य जीवन में आने वाले कई सुअवसरों को अपनी रुचि का विषय न समझकर टाल देते हैं। मनुष्य इन अवसरों से लाभ उठाकर बहुत बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि अपनी पसंद और इच्छा के कार्य का समय निकल जाता है और मनुष्य केवल लीक ही कूटता रहता है। परिणाम यह होता है कि असफलता का ही सामना करना पड़ता है। इसलिए श्रेयार्थी को अपनी अच्छा और पसंद के स्वभाव को व्यापक बनाना चाहिए। यदि कोई महत्वपूर्ण कार्य करने का अवसर सामने आये तो उसे छोड़ा नहीं जाय। ‘मुझे यह पसंद नहीं’, यह इच्छा नहीं लगता, इससे मेरी रुचि नहीं आदि मान्यतायें रखना, अपने आपको सीमाओं में जकड़ लेना है, जो प्रगतिशीलता के लिए अवरोध हैं। हमारी कार्य-प्रणाली, इच्छा और पसंद की प्रेरणा पर निर्भर न रहे वरन् कार्य करना हमारा स्वभाव, हमारी आदत में होना चाहिए। पसंद और इच्छा के भरोसे न बैठकर सामने आने वाले कार्य में जुट जाने वाला व्यक्ति जीवन में एक-एक करके अनेकों सफलतायें प्राप्त कर सकता है।

(4) खतरों से खेलने का स्वभावः- अक्सर लोग किसी सम्भावना के पीछे चलने में, सफलता के लिए खतरा उठाने में डरते हैं, झिझकते हैं। लोग सदैव इसी चक्कर में रहते हैं कि बिना खतरा मोल लिए ही कोई सफलता मिल जाय। किन्तु बिना जोखिम उठाये, खतरों से बचने वालों से तो असफलता कोसों ही दूर रहती है। जो जीवन में आने वाले खतरों के बावजूद भी लोग बढ़ते हैं सफलता उन्हीं का स्वागत करती है। जो भावी आशंका, भय से ग्रस्त होकर किसी काम में हाथ ही नहीं डालेंगे, या जो आगे बढ़ने में झिझकते हैं वे कभी सफल नहीं होते। बिना हौसले और हिम्मत, आकाँक्षाओं का बिना सामना किये जीवन संघर्ष में कैसे सफलता मिल सकती है? यदि हिम्मत और साहस के साथ खतरों से लेकर आगे बढ़ने पर भी मनुष्य को असफलता मिल जाय तो वह उससे कहीं अच्छी है जिसमें मनुष्य आकाँक्षाओं से भयभीत होकर हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। आगे बढ़ने के लिए कदम ही नहीं उठाता। पहली श्रेणी का व्यक्ति आने वाली असफलताओं के बावजूद भी अपने प्रयत्न जारी रखेगा तो एक दिन सफलता स्वयमेव चली आयेगी। अस्तु आशंकाओं का सामना कीजिए, साहस और हिम्मत से खतरों में भी आगे बढ़िये। जोखिम उठाये बिना जीवन में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती।

(5) खिलाड़ी की भावना रखें :- अपने मार्ग पर चलते हुए, अपने कार्यक्रम में लगे रहते हुए भी खिलाड़ी की भावना अनिवार्य है। काम को खेल समझकर किया जाय। जो व्यक्ति अपने काम का हिसाब किताब देखकर, उसका बोझा ढोते हुए चलता है वह बीच में ही चकनाचूर हो जाता है। सफलता तक नहीं पहुँच पाता। कदाचित वह सफल भी हो जाय तो उस समय इतना थका हुआ होता है कि सफलता का आनन्द नहीं ले पाता। अत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी अपने आनन्द, विश्राम शाँति को तिरोहित न होने दिया जाय। अपने ऊपर काम को सवार नहीं होने दिया जाय वरन् काम के ऊपर सवार रहें। कार्य करना, लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना एक स्वभाव बना लिया जाय। जीवन में इतनी निश्चिन्तता रहे कि खाते समय, सोते समय मनोरंजन के समय काम का भूत परेशान न करे। अपने आनन्द, शाँति, सन्तोष को बेचकर यदि स्वर्ग का वैभव मिलता हो तो विवेकशील व्यक्ति को उसे अस्वीकार कर देना ही श्रेयस्कर होगा। कार्य को खेल मानकर कीजिए। इससे वह आपकी शक्तियों का शोषक न बनकर उर्वरक खाद का काम देता रहेगा।


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