Quotation

May 1964

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ये सन्तुष्टाः श्रुतिपरा महात्मान्ते महाबलाः।

धर्म्म पंथानमारुढ़ास्तानु पास्व पृच्छ च॥

धर्म मार्ग पर चलने में यदि कोई शंका सन्देह उत्पन्न हो तो वेदाभ्यासी, महात्मा, सन्तोषी शक्ति सम्पन्न, जिनका जीवन ही धर्माचरण पर आधारित है उनका आश्रय और मार्ग दर्शन प्राप्त कर धर्म में प्रवृत्त हों।

हमें समग्र अध्यात्म की साधना करनी होगी क्यों उसे अपनाये बिना जीवन की सार्थकता का मार्ग अनुरुद्ध ही बना पड़ा रहेगा। भावना को आदर्शवादी उत्कृष्टता की दिशा में तरंगित करने और उन्हें कार्य रूप से परिणत करते हुए परिपक्व होने देने के प्रयोजन से शुभ कार्य करते रहने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहना पड़ेगा। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमारी विचार धारा यदि आदर्शवादी परम्पराओं का अवलम्बन करके अग्रसर हो, व्यावहारिक जीवन में उतरे और जीवन क्रम को ओत-प्रोत करे तो समझना चाहिए कि अब हम सचमुच अध्यात्मवादी बने और उस महान जीवन लाभ से पाने के अधिकारी बने जिसे प्राप्त करके मनुष्य धन्य बन जाता है, अमृतत्व का अनुभव करते हुए अक्षय आनन्द में निमग्न रहता है और पूर्णता एवं जीवनमुक्ति का परम लाभ प्राप्त करता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118