दो मित्र

May 1964

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दो मित्र एक आम के बगीचे में पहुँचे। पेड़ पके हुए मीठे फलों से लदे हुए थे। दोनों का मन फलों को देखकर खाने के लिए ललचाने लगा।

बाग का माली उधर से निकला। उसने आगन्तुकों की इच्छा को जाना और कहा-मालिक की आज्ञा है कि कोई यात्री एक दिन यहाँ ठहर सकता है, जितना खा सके आम खा सकता है पर साथ नहीं ले जा सकता। सो आप लोग चाहे तो दिन भर इच्छानुसार आम खायें पर संध्या होते-होते चले जावें। साथ में एक भी आम न ले जा सकेंगे।

मित्रों को बड़ी प्रसन्नता हुई। वे अपनी रुचि के आम खाने को चल दिये। पेड़ सभी अच्छे थे आम सभी मीठे थे सो एक मित्र जिस पेड़ पर चढ़ा उसी पर बैठा-बैठा खाने लगा। शाम तक खूब पेट भरा और तृप्त होकर नीचे आ गया।

दूसरे ने सोचा, इस सुन्दर बगीचे की जाँच पड़ताल कर ले। खट्टे, मीठे और जाति किस्म का पता लगाते अन्त में खाना आरम्भ करेंगे। वह इसी खोज बीन में लगा रहा और शाम हो गई। माली ने दोनों आगन्तुकों को बाहर किया और बाग का फाटक बन्द कर दिया। एक का पेट भर चुका था दूसरे का खाली। एक प्रसन्न था दूसरा असन्तुष्ट।

फाटक के बाहर बैठे हुए एक दरवेश ने कहा-दोस्तों यह संसार आम के बगीचे की तरह है। थोड़ी देर यहाँ रहने का मौका मिलता है और समय बीतते ही विदाई की घड़ी आ पहुँचती है। बुद्धिमान वह है जो सत्कर्मों द्वारा तृप्ति दायक सत्परिणामों का लाभ से सका, मूर्ख वह है जो मोह ममता प्रपंच में इधर-उधर मारा फिरे। लगता है कि तुम में से भी एक ने मूर्खता और एक ने बुद्धिमत्ता बरती है।


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