महात्मा हंसराज पंजाब के सुप्रसिद्ध समाज सेवी और शिक्षा शास्त्री थे। बचपन में जब वे विद्यार्थी थे तब अनेकों अनपढ़ व्यक्ति उनसे अपनी चिट्ठियाँ पढ़वाने और लिखवाने लाया करते थे। उनका बहुत-सा समय इसी में लग जाता था।
परीक्षा का समय निकट आ गया था। एक दिन उनकी माता ने कहा-अपनी पढ़ाई की ओर भी कुछ ध्यान दे, सारा वक्त उन्हीं लोगों की बेगार में मत बर्बाद किया कर।
हंसराज ने विनयपूर्वक कहा-माताजी! यदि पढ़ाई से दूसरों का कुछ फायदा न हुआ तो मेरे पढ़ने-लिखने से क्या लाभ?