भयंकर तूफान से गेलीलो झील का पानी बांसों ऊंचा उछलने लगा। जो नावें चल रहीं थी वे बुरी तरह थरथराने लगी। लहरों का पानी भीतर पहुँचने लगा तो यात्रियों के भय का आरापार न रहा।
एक नाव में एक कोने में कोई निर्द्वंद्व व्यक्ति सोया पड़ा था। साथियों ने उसे जगाया। जग कर उसने तूफान को ध्यानपूर्वक देखा और फिर साथियों से पूछा- आखिर इससे डरने की क्या बात है? तूफान भी आते ही हैं, नावें भी डूबती ही हैं और मनुष्य मरते ही हैं। इसमें क्या ऐसी अनहोनी बात हो गई जो आप लोग इतनी बुरी तरह हड़बड़ा रहे हैं?
सभी उसका उत्तर सुनकर अवाक् रह गए। निर्द्वंद्व व्यक्ति ने कहा-विश्वास की शक्ति तूफान से बड़ी है। तुम विश्वास क्यों नहीं करते कि यह तूफान क्षण भर बाद बंद हो जायेगा।
भयभीत यात्रियों के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उस अलमस्त ने आँखें बंद की और अपने भीतर की झील में उतर कहा-पूरी शक्ति के साथ कहा- शाँत हो जा मूर्ख! तूफान तुरंत शाँत हो गया।
सहमे हुये नटखट बच्चे की तरह तूफान रुक गया। नाव का हिलना बंद हुआ कि यात्रियों ने चैन की साँस ली। अब उस अलमस्त यात्री ने- जीसस क्राइस्ट ने साथियों से पूछा-दोस्तों, विश्वास बड़ा है। तूफान को तुमने उससे भी बड़ा क्यों मान लिया था?