आदर्श धर्मोपदेशक-एचिले-

May 1964

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

त्याग और तप की मूर्ति ईसा के उत्तराधिकारी बनने वाले पोप जब धन, सत्ता और विलास की प्रतिमूर्ति बन गये तो धर्मप्रेमी जनता में विक्षोभ उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था। रोम पर पोप का शासन था, ईसाई हुकूमतें ही नहीं जनता भी उनके इशारे पर नाचती थी। आखिर वह कितने दिन चलता। बगावत हुई। इटली की सेना ने रोम की सत्ता पोप के हाथों से छीन ली। पादरी लोग जान बचाकर भागे। कितने ही पादरियों ने सरकार से प्रार्थना करके अपने को जेल में रखवाया ताकि उनका जीवन सुरक्षित रह सके।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles