सूरदास

May 1964

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एक आँखों से अंधा व्यक्ति हाथ में लालटेन लिए अंधेरी रात में रास्ते के निकट एक बड़े खड्ड के पास खड़ा था। और चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था- भाइयो, सामने बड़ा खड्ड है। बचते हुए इधर से निकलना।

उधर से निकलने वाले एक राहगीर ने पूछा- सूरदास, तुम्हें खुद तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। फिर दूसरों को इस तरह रास्ता क्यों बता रहे हो?

अन्धे ने कहा मेरी माथे की आँखें ही फूटी हैं। हृदय की आँखें खुली है, जिनसे में दूसरों को आपत्ति में पड़ने का खतरा देखता हूँ और उन्हें बचाने का सामर्थ्य भर प्रयास करता हूँ।


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