धूम्रपान की सत्यानाशी आदत

May 1964

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जिन कारणों से आज शारीरिक दुर्बलता बढ़ रही है, बीमारियों के नये-नये रूप सामने आ रहे हैं उनमें धूम्रपान भी एक बड़ा कारण है। लोगों के गिरे हुये स्वास्थ्य का 50 प्रतिशत कारण धूम्रपान है।

संसार के विकसित व अर्द्ध-विकसित सभी देशों में धूम्रपान अत्यधिक प्रसार के कारण एक विश्वव्यापी समस्या बन गई है। इसलिये संसार के सभी विचारवान लोकसेवी और समाज-सुधारक इस बात को लेकर चिन्तित हैं। सिगरेट, तम्बाकू पीने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन तेजी के साथ बढ़ती जा रही है। अकेले अमेरिका के सर्वेक्षण से पता लगाया जा सकता है कि धूम्रपान में किस तेजी के साथ वृद्धि हो रही है। सन 1901 में वहाँ प्रति व्यक्ति 50 सिगरेट प्रतिवर्ष खपत थी और लगभग 7 करोड़ व्यक्ति इसके आदी थे। इसके बाद सन् 1930-1940-1950 में यह संख्या क्रमशः 1365,1828,3322 तक पहुँच गई, सन् 1961 की रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या 3986 थी। अपने देश में तो यह संख्या यहाँ तक बढ़ी है कि बीड़ी, सिगरेट उत्पादन के 1 लाख कारखाने व दुकानें चल रही हैं। इन आँकड़ों को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि स्वास्थ्य के सर्वनाश की घड़ी अब अधिक दूर नहीं है। इसका असर न पीने वालों पर भी उतना ही पड़ता है जितना पीने वालों पर, क्योंकि मुँह से निकला हुआ धुआँ तो और भी वातावरण को विषाक्त बनाता है।

धूम्रपान मानव स्वास्थ्य पर क्या असर डालता है इस संबंध में अब तक सैंकड़ों अधिकृत और प्रामाणिक रिपोर्ट प्रस्तुत की जा चुकी हैं। सिगरेट पीने से स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर पड़ता है इस संबंध में अभी हाल ही में अमरीकी धूम्रपान-विशेषज्ञ सर्जन जनरल की एक वैज्ञानिक समिति ने एक लंबी विज्ञप्ति प्रकाशित की है। इस शोध कार्य में दस प्रसिद्ध डाक्टरों और एक वैज्ञानिक ने 14 मास तक अनवरत श्रम व प्रयोग किये हैं। यह रिपोर्ट 387 पृष्ठों पर तैयार हुई है। धूम्रपान के विभिन्न पहलुओं पर इसमें विस्तार से विचार हुआ है और यह निष्कर्ष निकाला गया है कि स्वास्थ्य की समस्या का यह सबसे घातक शत्रु है।

पहले वैज्ञानिकों का मत था कि तम्बाकू में केवल निकोटीन और काट दो ही ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो शरीरस्थ हाइड्रोक्लोरिक आदि अम्लों के साथ मिलकर बुरी प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं। तब तक यही माना जाता था कि इससे पाचन संस्थान में ही आँशिक खराबी आती है। किन्तु बाद में जापानी और रूसी वैज्ञानिकों ने इस संबंध में और भी अधिक शोध की, जिससे पता चला कि आँखों की अधिकाँश बीमारियाँ, अल्पायु में ही कम दिखाई देना, अजीर्ण, मुँह में पानी भरना, चक्कर आना, गहरी और पूरी नींद न आना ओठों का पककर कैंसर हो जाना आदि बीमारियों का कारण धूम्रपान ही है।

धुयें के साथ शरीर में गया निकोटीन खून के सशक्त जीवाणुओं को नष्ट करता है या निर्बल बना देता है। स्नायविक दुर्बलता और अन्य वीर्य-संबंधी बीमारियों का कारण भी यही है। बार-बार बीड़ी, सिगरेट पीने से बार-बार शरीर में उत्तेजना उठती है। फिर शरीर शिथिल पड़ जाता है। यह क्रिया बड़ी खतरनाक होती है। इससे खून सूखता है स्वास्थ्य गिरता है और उम्र कम हो जाती है। जर्मनी के डाक्टरों ने इस बात की गहरी शोध की और पता लगाया कि प्रतिदिन एक पैकेट सिगरेट पीने वालों की आठ वर्ष और दो सिगरेट पीने वालों की 18 वर्ष उम्र कम हो जाती है। इन हानिकारक कुप्रभावों को देखते हुए जितनी जल्दी इस दुर्व्यसन से बचा जा सके, बचने का प्रयत्न करना चाहिये।

इस संबंध में जो अब नये तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं उनसे तो स्वास्थ्य को चौपट करने वाले और भी भीषण परिणाम उपस्थित होते दिखाई देते हैं। अमरीका के हारवर्ड सार्वजनिक स्वास्थ्य स्कूल के दो वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि सिगरेट के धुएं में रेडियो सक्रिय तत्व होता है जो फेफड़े में कैंसर उत्पन्न करता है। तम्बाकू में ‘पोलोनियम’ नाम का एक विषैला तत्व होता है जो धुएं के साथ मिलकर शरीर में चला जाता है। इससे श्वाँस नली और फेफड़े प्रभावित होते हैं। डॉक्टरों का मत है कि यदि एक निश्चित मात्रा में यह तत्व श्वाँस नली में एकत्र हो जाय तो आदमी की मृत्यु तक हो सकती है। फेफड़ों में सफाई के रक्त-छिद्रों को यह ढ़क देता है जिससे खून स्वच्छ नहीं हो पाता और अपने साथ धुयें का विषय लेकर हृदय की ओर चला जाता है। हृदय की दुर्बलता व पीलापन उन्हीं को रहता है जो धूम्रपान के आदी होते हैं। यह धुआँ यदि ऊर्ध्वगामी हो जाय तो मस्तिष्क में विकृति पैदा करता है। ऐसे लोग अर्द्ध-विक्षिप्त से रहते हैं। आलस्य घेरे रहता है तथा वे निराशावादी हो जाते हैं।

धूम्रपान से उत्पन्न होने वाला सबसे भयानक रोग कैंसर है। भारतीय विशेषज्ञ डॉ. जुस्सावाला का कथन है कि धूम्रपान से योरोप और अमरीका निवासी फेफड़े के कैंसर से पीड़ित होते हैं किन्तु हमारे यहाँ यह गले के कैंसर के रूप में होता है। पान, सुपारी और तम्बाकू के सेवन से गले का कैंसर हो जाता है। यह बड़ा हानिकारक होता है। कैंसर चाहे होंठ का हो, गले अथवा फेफड़े का हो महा-भयानक बीमारी है। सैलफोर्ड (मैनचेस्टर) के चिकित्साधिकारी डा. जे. एलबर्न ने लिखा है कि इस शताब्दी के शेष वर्ष अर्थात् अगले 35 वर्षों में फेफड़ों के कैंसर से अकेले इंग्लैण्ड और वेल्स में लगभग दस लाख व्यक्तियों की मृत्यु होगी। उन्होंने आगे कहा कि अगले 20 वर्षों में कैंसर एक सर्दी जुकाम की तरह आम बीमारी का रूप धारण कर लेगा। अणु-आयुध-वेत्ताओं के अनुसार अब तक जो बम विस्फोट हो चुके हैं उसकी सक्रियता का धूम्रपान करने वालों पर शीघ्रता से प्रभाव पड़ेगा, इससे प्रति वर्ष संसार के चालीस लाख लोगों की मृत्यु होती रहेगी।

धूम्रपान से कैंसर होने के ठोस प्रमाण मिल जाने से संसार की सभी प्रगतिशील सरकारें बड़ी चिंतित हैं। अमरीकी काँग्रेस इस बात का प्रयत्न कर रही है कि सिगरेट की डिब्बियों में उनके पीने की हानियाँ लिखी जाया करें। ऐसे आन्दोलन किये जाने की भी संभावना है जिससे लोग इसके भयानक परिणामों को समझ सकें। धूम्रपान उन्मूलन सरकारी स्तर पर हो यह अच्छी बात है किन्तु इस दिशा में पीने वालों का भी ध्यान आकर्षित करना चाहिये।

अमरीकी अनुसंधान समिति ने प्रमाण जुटाने के लिये 1. पशुओं पर 2. डाक्टरी चिकित्सा द्वारा 3. जनसंख्या के अध्ययन से जो जानकारियाँ हासिल की उनसे भी यही सिद्ध होता है कि धूम्रपान एक घातक दुर्व्यसन है। पहले प्रयोग में पशुओं पर धुयें और ‘काट’ नामक तम्बाकू के विष के प्रभाव का अध्ययन किया और ऐसे सात तत्वों का पता लगाया जिनसे कैंसर हो जाता है। यह तत्व शारीरिक रासायनिक क्रियाओं की प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होते हैं। इसका प्रयोग उन पर किया गया जो पीने वाले थे। देखा गया कि शरीर के विभिन्न अंगों, कोषों और तंतुओं पर धूम्रपान का हानिकारक प्रभाव पड़ता है। तीसरा प्रयोग जनसंख्या के आँकड़ों से किया गया। जो लोग फेफड़े के कैंसर से पीड़ित थे उनमें से अधिकाँश धूम्रपान करने वाले थे। यह भी देखने में आया कि कफ, खासी, छाती के रोग, फेफड़ों की ठीक तरह काम न करने की शिकायत साँस लेने में कठिनाई तथा पीड़ा की शिकायतें अधिकाँश उन्हीं की थीं जो सिगरेट पीते थे। इस कारण से मरने वालों की संख्या भी पूर्ण आयु भोगकर मरने वालों से 70 प्रतिशत अधिक थी। यह सभी आँकड़े यह मानने को बाध्य करते हैं कि आज की स्वास्थ्य की खराबी का प्रमुख कारण धूम्रपान ही है।

‘हम अनुभव करते है कि राष्ट्रीय और स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों, स्वयंसेवी स्वास्थ्य संस्थाओं को चाहिये कि वे युवकों में धूम्रपान की भावना को खतरनाक आदत बताकर निरुत्साहित करें’ यह शब्द अमरीकी कैंसर बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. वेडेल स्काट ने कहे थे। इससे धूम्रपान के भीषण दुष्परिणामों का पता चलता है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि सिगरेट के पैकेटों में निकोटीन और टार की मात्रा लिख दी जाया करे जिससे लोग खरीदते और पीते समय सचेत हो जाया करें। इससे धूम्रपान के अधिक न बढ़ने देने में भी सहायता मिलती है। देखा गया है कि जो जितना अधिक सिगरेट पीता है उसे उतना ही तीव्रता से नुकसान उठाना पड़ता है। सबसे बेहतर तो यही है कि इसके दुष्परिणामों को देर तक विचार करें और देखें कि इससे हमारी कितनी बड़ी हानि हो सकती है। जितना शीघ्र हो सके इस दुर्व्यसन से बचने का प्रयत्न हर किसी को करना चाहिये। जिसने भी यह आदत डाल रखी है वह यदि इससे बच सके तो यही समझना चाहिये कि उसने अपनी एक महत्वपूर्ण सेवा कर ली, अपने आप को बीमारियों से और अकाल मृत्यु से बहुत हद तक बचा लिया।

जिन्हें एक दम छोड़ देने में कठिनाई महसूस होती हो वे धीरे-धीरे भी पीने की मात्रा कम करते हुए भी छोड़ सकते हैं। यह भी संभव है कि जब तक इसकी हुड़क परेशान करे तब तक सौंफ इलायची आदि इसके बदले में सेवन करते रहें। धीरे-धीरे इस आदत में शिथिलता पड़ती जायेगी। तब बीड़ी, सिगरेट पीने की इच्छा भी इतना परेशान नहीं करेगी और छोड़ देना सरल हो जायेगा। सबसे अच्छी बात यही है कि इसका संकल्पपूर्वक त्याग कर दें। जब किसी वस्तु की बुराई, कुप्रभाव तथा हानियाँ समझ में आ जाती है तो अपने आप ही उनसे घृणा उत्पन्न हो जाती है। ऐसे अवसर प्राप्त करना चाहिये और दृढ़तापूर्वक इस दुर्व्यसन को छोड़ ही देना चाहिये।

कई लोगों को यह शिकायत करते सुना जाता है कि इसके छोड़ने से अपच की शिकायत हो जाती है। कई तो सुस्ती दूर करने का उपाय बताकर बहानेबाजी करते हैं। ऐसे व्यक्ति बौद्धिक दृष्टि से भीरुता एवं संशयग्रस्त होते हैं। थोड़ा-सा साहस करते हुए उन्हें डर लगता है वह डर ही मनोविज्ञान के सिद्धान्तानुसार उन बहानों की पृष्ठ-भूमि बन जाता है। एकदम नशा छोड़ देने से भी किसी को वैसी हानि नहीं होती जैसी कि कल्पना की जाती है। आदत बदलने के समय दो-चार दिन थोड़ी असुविधा जरूर अनुभव होती है पर पीछे वह सब स्वतः ही ठीक हो जाता है। जिन्हें अपना स्वास्थ्य प्यारा है जो इस संसार के सुखोपभोग के लिये अधिक दिन जीने की आकाँक्षा करते हैं उन्हें अब इस दिशा में ढील देना उचित प्रतीत नहीं होता। आस्ट्रेलिया में धूम्रपान को विज्ञप्ति के प्रकाशन के तदनन्तर ही जैसे ही लोगों के सामने वास्तविक तथ्य आये लाखों व्यक्तियों ने सिगरेट पीना छोड़ दिया। किसी नशे को एक दम छोड़ देना भी कुछ कठिन नहीं हो सकता बशर्ते कि मनुष्य में थोड़ा संकल्प बल मौजूद हो।

धूम्रपान छोड़ देने से धन के अपव्यय से बचने अथवा उस पैसे को रचनात्मक कार्य में लगाने मात्र का ही लाभ नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्या का सरलतापूर्वक समाधान भी इसी से होता है। अनेक बीमारियों से बचाव होता है। धूम्रपान छोड़ने से स्वास्थ्य में आशाजनक सुधार होता है। जिन्हें रहते रात-रात भर नींद नहीं आती थी उन्हें नशेबाजी छोड़ देने पर गहरी नींद सोते देखा गया है। स्नायु शक्ति बढ़ती है। आँखों की रोशनी बढ़ती है। पाचन क्रिया में तो थोड़े दिन में ही सुधार दिखाई देता है जिसका सत्परिणाम शरीर के प्रत्येक अंग पर देखा जा सकता है।

जिन्हें अपने घिसे पिटे रास्ते पर ही चलना है, स्वास्थ्य की गाड़ी को रो-रोकर ढोना ही मंजूर है उनकी बात दूसरी है, पर जिन्हें अपना स्वास्थ्य अभीष्ट है जो सुख और सुविधाओं का स्वस्थ व नीरोग जीवन जीना पसंद करते हैं, उनकी भलाई इसी में है कि धूम्रपान की बुरी लत आज से, अभी से छोड़ दें। यह श्रेष्ठ सत्कर्म है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण का भी उद्देश्य इसी से पूरा होता है।


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