लकड़ी के बर्तन

May 1964

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एक बहुत बूढ़े आदमी के हाथ और सिर हिलने लगे। आँखों से भी कम दीखता। वह भोजन करता तो कोई चीजें हाथ से गिर जाती और कमरे का फर्श खराब हो जाता। बेटे की बहू इस पर बहुत नाराज होती, उसने बूढ़े को दरवाजे से बाहर रहने और रोटी देने का प्रबंध कर दिया।

जिस मिट्टी के बर्तन में खाना दिया जाता था, हाथ हिलने के कारण वह भी एक दिन छूट गिरा और टूट गया। इस पर बेटे की बहू ने बहुत क्रोध किया और उसे लकड़ी का बर्तन बनवा कर दे दिया।

एक दिन बूढ़े का नाती लकड़ी का टुकड़ा लेकर उसे काट छाँट करने में लगा हुआ था तो लड़के के पिता ने उसे डाँटते हुए कहा-यह क्या खटपट कर रहे हो?

लड़के ने पास खड़ी अपनी माता से कहा-आप और पिताजी जब ऐसे ही बूढ़े हो जावेंगे तब मुझे भी तो दरवाजे से बाहर आप लोगों को इस प्रकार लकड़ी के बर्तन में भोजन देना पड़ेगा, सो लकड़ी से बर्तन बनाने का अभ्यास कर रहा हूँ।


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