एक-एक महीने का परिवार प्रशिक्षण

May 1964

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व्यक्तिगत जीवन को सुविकसित करने में परिवार की स्थिति ही सबसे अधिक सहायक या बाधक होती है शरीर के विभिन्न अवयवों की तरह परिवार के सदस्य भी हमारे समग्र जीवन में एक अभिभाज्य अंग बनकर जुड़े होते हैं। प्रगति के इच्छुकों को आत्म-कल्याण की योजना से परिवार को सुविकसित करने की भी व्यवस्था बनानी पड़ती है।

खेद की बात है कि बुद्धिमान और सुशिक्षित कहलाने वाले व्यक्ति भी अपने निज के व्यक्तित्व को सुविकसित बनाने की ओर से उदास रहते हैं और परिवार निर्माण के उत्तरदायित्व को भी भुलाये रहते हैं। यों अपने और अपने स्त्री बच्चों के भोजन, कपड़े, शिक्षा, मनोरंजन तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सभी लोग यथासंभव साधन जुटाते रहते हैं पर उस गुण, कर्म, स्वभाव की प्रक्रिया का समावेश नहीं करते जिन्हें मानव जीवन की महानतम सम्पदा करना चाहिए। दुर्गुण यों प्रत्यक्ष में कोई भारी बाधा जैसे दिखाई नहीं पड़ते पर उन छोटी-छोटी त्रुटियों के कारण जीवन का विकास क्रम ही रुक जाता है इसी प्रकार सद्गुण देखने में कोई महत्व की वस्तु मालूम नहीं पड़ते पर अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी मनुष्य के जीवन में सुख-शाँति एवं प्रगति के साधन उत्पन्न करने में भारी सहायता करते हैं। स्वास्थ्य, धन, मान, ज्ञान, मैत्री आन्तरिक शाँति एवं आत्मिक प्रगति का सारा आधार मनुष्य के गुण, कर्म, स्वभाव पर निर्भर रहता है। जिसने इस ओर से उपेक्षा बरती, समझना चाहिए कि उसने अपने भविष्य के साथ निर्मम खिलवाड़ का खेल खेला है।

आज जब कि हम राष्ट्र के नव जागरण और निर्माण का महान लक्ष्य लेकर चले हैं तो हमें सबसे पहले अपने-अपने व्यक्तित्व को सुसंस्कृत बनाने और अपने परिवार में सभ्य समाज का आदर्श उपस्थित करना होगा। जैसा भी कुछ समाज का संसार हम चाहते हैं उसका एक छोटा उदाहरण हमें अपने परिवार में प्रस्तुत करना चाहिए। देश या संसार का शासन हमारे हाथ में नहीं है, पर परिवार की हुकूमत तो हाथ में है ही। अपनी छोटी योजना का, इस छोटे दायरे में यदि सही उपयोग करके हम अपने कौशल को प्रमाणित कर सके तो निश्चय ही एक कुशल प्रशासक का, लोक निर्माता का गौरव प्राप्त कर सकते हैं और सुन्दर बगीचे में रहकर फल-फूलों का लाभ उठाने वाले माली की तरह सुसंस्कृत परिवार की प्रतिक्रिया का स्वर्गीय परिस्थितियों की तरह अनुभव करते हुए अपने सत्प्रयत्न का प्रत्यक्ष लाभ इसी जीवन में ले सकते हैं।

आज शिक्षा का अनेक दिशाओं में विकास हुआ है, विभिन्न प्रकार की उच्च शिक्षा के कालेज मौजूद हैं, पर आत्म-निर्माण और परिवार-निर्माण जैसे असाधारण महत्व के कार्य के लिए कहीं कोई सुव्यवस्थित शिक्षणक्रम न होना एक ऐसी कमी है जिसकी पूर्ति किये बिना राष्ट्रीय उत्थान कदापि संभव नहीं हो सकता।

गत अंक में अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य को यह खुला निमंत्रण भेजा गया है कि अपने परिवार समेत एक महीना मथुरा आकर हमारे पास रहें और जीवन-निर्माण की जो विचारधारा अखण्ड-ज्योति के माध्यम से दी जाती रहती है उसे कार्य रूप में परिणत करने, अभ्यास में लाने, जीवन में उतारने का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करें। स्वास्थ्य रक्षा, स्वभाव सुधार, दृष्टिकोण का परिष्कार, आर्थिक संतुलन, स्नेह सौहार्द, दांपत्ति निष्ठा, बच्चों के विकास, शिक्षा एवं विवाह की समस्या, पारस्परिक मनोमालिन्य एवं शत्रुता का निराकरण, उपासना तथा आत्म-कल्याण जैसी अगणित समस्यायें हमें घेरे रहती हैं और अपना उचित हल चाहती हैं। किन्तु जीवन विद्या के आधारभूत सिद्धांतों का समुचित ज्ञान न होने से हम इन्हें सुलझा नहीं पाते वरन् कई बार तो दिन-दिन इस तरह और उलझते चले जाते हैं कि जीवन नरक बन जाता है। इस स्थिति में बचते हुए सुविकसित सुसंस्कृत जीवन जीने के लिए हमें क्या सोचना और क्या करना चाहिए, यही सब व्यावहारिक रूप से इस एक महीने के प्रशिक्षण में सिखाया जायेगा। आशा यही करनी चाहिए कि इस शिक्षण में लगाया हुआ एक महीने का समय शिक्षार्थियों के लिए प्रत्येक दृष्टि से सफल और सार्थक ही सिद्ध होगा।

नई पीढ़ी का अवतरण एक अत्यंत महत्वपूर्ण समस्या है। माता-पिता के कुसंस्कारी होने के कारण सन्तति उनसे भी अधिक कुसंस्कारी बनती है फलस्वरूप, हमारी पीढ़ियाँ निरन्तर घटिया स्तर की बनती जा रही हैं। जिनके व्यक्तित्व ओछे संस्कारों से ढल गये हैं उन्हें उपदेशों से सुधारना भी कठिन होता है। अच्छे खिलौने बढ़िया चिकनी मिट्टी से बनते हैं। रेतीली मिट्टी से बने हुए खिलौने या बर्तन न तो सुन्दर होते हैं और न टिकाऊ। इसी प्रकार कुसंस्कारी माता-पिता के द्वारा विनिर्मित बालकों से यह आशा नहीं की जा सकती कि वे अपने वश या देश धर्म को गौरवान्वित करने वाला जीवन जी सकेंगे। राष्ट्रीय महानता, उसके सुसभ्य नागरिकों पर निर्भर रहती है और ऐसे सुविकसित व्यक्तित्व अनायास ही नहीं उपज पड़ते वरन् माता-पिता को अपने आपका निर्माण करके उसी ढाँचे में शिशुओं को ढालने की तैयारी करनी पड़ती है। युग निर्माण के लिए हमें अगली प्रबुद्ध पीढ़ी की आवश्यकता है। महापुरुषों जैसी उत्कृष्ट आत्माएं ही उज्ज्वल भविष्य का नव-निर्माण करेंगी। ऐसी आत्माओं का अवतरण यदि हम लोग अपने घरों में देखना पसंद करते हों तो उसकी तैयारी में लग जाने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं हो सकता।

ऐसे महान प्रशिक्षण के लिए एक महीने का समय कम है पर दो कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए हमें छोटा कार्यक्रम बनाने के लिए विवश होना पड़ा है। 1. इस शिक्षण में केवल पुरुष ही नहीं उनकी धर्म पत्नी तथा वयस्क बच्चे भी साथ आवेंगे ताकि सारे परिवार को उपर्युक्त शिक्षण मिल सके। अधिक दिनों के लिए पूरे परिवार समेत बाहर जाने से सभी को कठिनाई होती है। 2. हमें भी अपने विचार परिवार- अखण्ड-ज्योति परिवार के 30 हजार सदस्यों को शिक्षण देना है। समय कम है। थोड़ा-थोड़ा लाभ सभी को मिल सके, इसलिये एक महीने का क्रम रखकर ही संतोष करना पड़ेगा।

चान्द्रायण व्रत करते हुए सवा लक्ष अनुष्ठान करने के इच्छुक कितने ही अध्यात्म प्रेमी ऐसे होते हैं जो गायत्री तपोभूमि में रहते हुए हमारे सान्निध्य में अपनी तपश्चर्या पूर्ण करना चाहते हैं उनके लिए यह एक महीने के शिविरों में जीवन विद्या शिक्षण के अतिरिक्त तपश्चर्या का आध्यात्मिक परिणाम प्राप्त करने का दुहरा सुअवसर मिल सकता है। इसी प्रकार जो लोग शारीरिक दृष्टि से दुर्बलता एवं अस्तव्यस्तता अनुभव करते है उनके लिए प्राकृतिक चिकित्सा विधि से अपने खोये स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करने और प्राकृतिक की व्यावहारिक शिक्षा द्वारा दूसरे अनेकों की रोग मुक्ति की सेवा कर सकने की सामर्थ्य उपलब्ध करने का स्वर्ण सुयोग मिल सकता है, यह लाभ भी कम महत्व का नहीं है। कई व्यक्ति साहित्य निर्माण में एक सीमा तक अभिरुचि रखते हैं, कविता करते हैं, वक्ता बनने के इच्छुक हैं पर इन सब बातों की क्रमबद्ध शिक्षा प्राप्त न कर सकने के कारण उनकी प्रगति नहीं हो पाती। ऐसे लोगों के लिए यह एक महीना स्वयं सुयोग जैसा सुअवसर सिद्ध हो सकता है। इतने कम समय में इतने प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकने की व्यवस्था शायद ही कभी कहीं बनी हो।

पहला शिविर भाद्रपद सुदी पूर्णिमा तदनुसार ता. 21 सितम्बर अक्टूबर तक चलेगा। आश्विन से वैशाख तक आठ महीने के लिए क्रमशः शिक्षार्थियों को आने की स्वीकृतियाँ दी जा रही हैं। प्रति वर्ष इसी प्रकार एक वर्ष के लिए स्वीकृतियाँ जेष्ठ में दे दी जाया करेगी और इसी क्रम में थोड़े-थोड़े शिक्षार्थी हर महीने मथुरा आते रहेंगे। सुविज्ञ परिजन इस योजना से लाभान्वित होने के लिए जैसा उत्साह प्रकट कर रहे हैं उससे इस परिवार प्रशिक्षण क्रम का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल प्रतीत होता है।


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