रूस के राजा एलेक्जेंडर अक्सर अपने देश की आँतरिक दशा जानने के लिए वेश बदलकर पैदल घूमने जाया करते थे। एक दिन घूमने-घूमने एक नगर में पहुँचे, वहाँ का रास्ता उन्हें मालूम न था। राजा रास्ता पूछने के लिए किसी व्यक्ति की तलाश में आगे बढ़े।
आगे उन्होंने एक हवलदार सरकारी वर्दी पहने हुए देखा। राजा ने उसके पास जाकर पूछा-महाशय, अमुक स्थान पर जाने का रास्ता बता दीजिए। हवलदार ने अकड़ कर कहा-“मूर्ख!तू देखता नहीं, मैं सरकारी हाकिम हूँ, मेरा काम रास्ता बताना नहीं है। चल हट, किसी दूसरे से पूछ।” राजा ने नम्रता से पूछा-“महोदय, यदि सरकारी आदमी भी किसी यात्री को रास्ता बतादें, तो कुछ हर्ज थोड़े ही है। खैर, मैं किसी दूसरे से पूछ लूँगा, पर इतना तो बता दीजिए, कि आप किस पद काम करते हैं।
“ हवलदार ने और भी ऐंठते हुए कहा-“अन्धा है, क्या मेरी वर्दी को देखकर पहचानता नहीं कि मैं कौन हूँ।” क्या मेरी वर्दी को देखकर पहचानता नहीं कि मैं कौन हूँ” एलेक्जेंडर ने कहा-शायद आप पुलिस के सिपाही हैं, उसने कहा नहीं उससे ऊँचा। राजा-“तब क्या नायक हैं?’ हवलदार-उससे भी ऊँचा।” राजा-’हवलदार हैं हवलदार “हाँ, अब तू जान गया कि मैं कौन हूँ, पर यह तो बता कि इतनी पूछताछ करने का तेरा क्या मतलब? और तू कौन है?” राजा ने कहा मैं भी सरकारी आदमी हूँ। सिपाही की ऐंठ कुछ कम हुई, उसने पूछा “क्या तुम नायक हो? राजा ने कहा-नहीं उससे ऊँचा। हवलदार-तब क्या आप हवलदार है? राजा-’उससे भी ऊँचा। हवलदार-’दरोगा?’ राजा-’उससे भी ऊँचा’ हवलदार-’कप्तान?’ राजा- उससे भी ऊँचा।’-हवलदार “सूबेदार!” राजा “उससे भी ऊँचा।’
अब तो हवलदार घबराने लगा, उसने पूछा-’तब आप मंत्री जी है?राजा ने कहा ‘भाई बस एक सीढ़ी और बाकी रह गई है। सिपाही ने गौर से देखा, तो सादा पोशाक में बादशाह एलेक्जेंडर सामने खड़े है। हवलदार के होश उड़ गये, वह गिड़गिड़ाता हुआ बादशाह के पाँवों पर गिर पड़ा और बड़ी दीनता से अपने अपराध की माफी माँगने लगा।
राजा ने मीठी वाणी में कहा-भाई!तुम पद की दृष्टि से कुछ भी हो पर व्यवहार की कसौटी पर बहुत नीचे हो। जो जितना नीच होता है, उसमें उतना ही अहंकार होता है, तो पहले मनुष्य बनो, सहनशील नम्र-बनो। अपनी ऐंठ कम करो, क्योंकि तुम जनता के सेवक हो, इसलिये तुम्हारी तो यह विशेष जिम्मेदारी है।