दीर्घजीवी बन पाना सभी के लिए संभव है।

July 1993

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जीवन, मन और शरीर की शक्ति का समन्वित रूप है। यदि मन में विचार विकृत हुए और शरीर में विकृत हुए और शरीर में विकृति उत्पन्न हो गई तो वह जीवन न होकर क्रमशः विनाश की गति को प्राप्त होने लगेगा और धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जावेगा। मन और शरीर एक दूसरे से प्रभावित होते हैं। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। स्वस्थ मन का प्रभव शरीर को स्वस्थ करने का साधन है क्योंकि रोगों की भूमिका मानसिक क्षेत्र में विकृति होने से ही बनती है और शरीर पर रोग तो मानसिक विकृति के घनत्व का परिणाम होता है।

जिन देशों में मनुष्यों की आयु अधिक पाई जाती है वहाँ का सर्वेक्षण करने से इस तथ्य की सिद्धि स्वतः ज्ञात हो जाती है। जरा वैज्ञानिकों ने जार्जिया क्षेत्र (सी0आय-एस0) का सर्वेक्षण किया तो उस छोटे से क्षेत्र में 100-100 वर्ष के 2100 व्यक्ति थे। जार्जिया के अलावा काकेशिया पर्वत के आस-पास के क्षेत्र में शतायु व्यक्तियों की कमी नहीं है। 100 से ऊपर 125 ,130,135,140 और 150 वर्ष के व्यक्ति मिलते हैं। कोई ऐसा परिवार नहीं मिलता जिसमें 100 वर्ष की आयु से कम का व्यक्ति उस परिवार का बुजुर्ग हो। वही परिवार सम्माननीय माना जाता है, जिसका बुजुर्ग लम्बी आयु का हो, वह 100 और 100 वर्ष से ऊपर की आयु भोग रहा हो। उत्तर पूर्व काकेशस के एक किसान श्री मखबूद बागीर ओगलीइवानोव एक किसान थे जिनकी मृत्यु 1990 में 150 वर्ष की आयु में हुई थी। उनके 23 बेटे-बेटियाँ और 150 नाती-पोते थे। 175 के लगभग परिवार में व्यक्ति थे। उनकी मृत्यु के समय उनकी बड़ी लड़की 120 वर्ष की थी। इस प्रकार के कई परिवार इस क्षेत्र में छोटे-बड़े रूप में देखने को अब भी मिलते हैं। उनके मनोविचार और खाना-खुराक एवं रहन-सहन का सर्वेक्षण दल ने अध्ययन किया है।

अधिकाँश दीर्घायु व्यक्तियों से पूछने पर कि तुम्हारे दीर्घायु जीवन का क्या रहस्य है, उत्तर में यही सार मिलता था कि “मन में किसी प्रकार की चिन्ता न होनी चाहिए। किसी प्रकार की मन में उलझन होने से उसी पर ध्यान जाता है, उसमें मन की शक्ति का व्यय होता है, शक्ति जीवन-प्रवाह की ओर न लगाकर उसे कुँठित बनाने-विकृति उत्पन्न करने में लग जाती है। क्रोध, ईर्ष्या, दम्भ आदि विकृतियाँ घुन की तरह लग कर मन को खोखला करती है। इसलिए मन में संकल्प उच्च हो है इसलिए मन में संकल्प उच्च हो पवित्र हों। यह न सोचो और कहो कि में वृद्ध हो गया हूँ मैं 55 वर्ष का हूँ यह कहकर अपनी शक्ति को क्षीण न करो, अपने भविष्य की सुन्दर योजनाओं की पूर्ति के व्यावहारिक चरण सक्रियता से बढ़ाओं।

शारीरिक निर्बलता या वृद्धावस्था के लक्षण मानसिक विकृति के ही परिणाम होते हैं। यह निश्चित है कि मोटर के जिस कल-पुर्जे से काम न लिया जायेगा, उस में जंग लग जावेगी। ऐसे ही शारीरिक अंगों का कार्य है। यदि हाथ को अधिक आराम दिया तो वह भी धीरे-धीरे निर्बल हो जायेगा। ऐसे ही शारीरिक अंगों का कार्य है। यदि हाथ को अधिक आराम दिया तो वह भी धीरे-धीरे निर्बल हो जायेगा। और अंत में लकवे जैसी स्थिति हो कर शक्ति शून्य होकर रह जावेगी। यथा शक्ति शरीर से पूर्ण काम लेना चाहिएं दीर्घजीवी व्यक्ति अधिकाँश में अपने शरीर को सक्रिय रखते रहे है। जो भी व्यक्ति शरीर श्रम के नियम का पालन किया है और दीर्घजीवन का लाभ उठाया है खुले आकाश में सोना, आक्सीजन का अधिक से अधिक सेवन करना, गहरी श्वास लेकर पूरे फेफड़ों में वायु का संचार करना ताकि शरीर से विकार निकल जावे, ऐसी आदतें बनाई है।

जीवन रस की वृद्धि और पुष्ट करने वाले तत्वों का सेवन कर मानव अपना कायाकल्प कर पुनः यौवन प्राप्त कर सकता है। शरीर के कोमल अंग जैसे फेफड़े, गुर्दे आंतें आदि शिथिल और कमजोर हो जाते हैं, वहीं नवीन शक्ति ग्रहण कर नवीन बन जाते हैं। उन्हीं में वही नवीन काया जैसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है। नवीन युवापन पाकर मस्ती से जीवन जिया जा सकता है।

संसार में जितने भी महान पुरुष हुए है उनकी उत्तम कृतियाँ लगभग 50-60 वर्ष के ही पश्चात् संसार को उपलब्ध हुई हैं। गेटे कवि का-फास्ट 80 वर्ष की आयु के लगभग लिखा गया। रविन्द्र बाबू एवं श्रीपाददामोदर सातवलेकर 10 वर्ष तक लेखन कार्य करते रहे। बर्नार्डशा 14 वर्ष के लगभग तक उत्तम कृतियाँ विश्व को प्रदान करते रहे। नर्चिल, नेहरू आदि राजनीतिज्ञों एडीसन, कैरेले आदि वैज्ञानिकों ने दीर्घ जीवन प्राप्त कर अपनी योग्यता शक्ति का लाभ विश्व को दिया हैं वे लोग असफलता से निराश होकर नहीं बैठ जाते थे। असफलता मिलने पर यही कहते थे कि मैंने एक और तरीका जान लिया है कि जिससे काम करना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर नवीन-नवीन तरीकों से सूझ-बूझ से आगे बढ़ते रहना चाहिए।

मनोबल दीर्घ जीवन में एक आधार रूप में स्थिर है-मन के हारे हार है और मन के जीते जीत अतः मन को विकृति से बचाये रखना आवश्यक है। जीवन में सक्रियता हो, स्वच्छ वायु, खुला आकाश अधिकतम प्राप्त हो चाहे वे ऋषि हों या ग्रामवासी, वे दीर्घ जीवन प्राप्त करते पाये गये है। यदि उन्हीं के चरण चिन्हों पर चलें तो हम भी दीर्घजीवी हो सकते हैं।


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