महाकाल की चली सवारी, चलो। साथ हो जायें। यह परिवर्तन की वेला है, युग परिवर्तन लायें॥1॥
महाकाल के चरण थिरकते हैं, देखो! द्रुतगति से। महाकाल की चाल, सँभाले सँभल रही न प्रगति से ॥
विकृतियों की छाती पर हो रहा, कि ताण्डव नर्तन। अब अनीति, अत्याचारों का, होगा निश्चित मर्दन॥
महाकाल के गण जैसे ही, हम भी कदम बढ़ाये। महाकाल की चली सवारी, चलो! साथ हो जायें॥2॥
गूँज रहे धरती-नभ में, जय महाकाल के नारे। महाकाल की तेवर के, देखो,! तो तनिक इशारे॥
पाप, पतन के डेरो में, अब हाहाकार मचा है। पाप, पतन अब, जनमानस में से, अतिक्रमण हटाये। महाकाल की कुपित दृष्टि से, कोई नहीं बचा है॥
दुष्प्रवृत्तियों, दुश्चिंतन को, छोड़ सकेंगे जो भी। हो जायेंगे महाकाल के, संगी-साथी वो ही॥
काम-क्रोध के लोभ-मोह के, आओ! बंधन तोड़ो। महाकाल की सद् प्रवृत्तियों से अब नाता जोड़ो।
महाकाल के गण बनने की, हिम्मत चलो जुटायें। परिवर्तन का चक्र चल रहा, सभी बदल जायेंगे।
जो न बदल पायेंगे, अपने आप कुचल जायेंगे ॥ अब कषाय-कल्मष, शोषण-उत्पीड़न नहीं टिकेंगे।
महाकाल के गण, भोगों के हाथों नहीं बिकेंगे ॥ डमरू बजा रहा प्रलयंकर, जागें और जगायें। महाकाल की चली सवारी, चलो! साथ हो जायें॥5॥
महाकाल संकल्पित है, नवयुग ‘प्रज्ञायुग’ होगा। प्रज्ञा पुत्रों का पौरुष, रंग लायेगा, ध्रुव होगा॥
विकृति चिंतन की विभीषिका से, अब मुक्ति मिलेगी। ज्ञान यज्ञ की ही मशाल, अब चारों ओर जलेगी॥
अंधकार से मुक्ति दिलाने, ज्ञान मशाल उठायें। महाकाल की चली सवारी, चलो! साथ हो जायें ॥6॥
मंगल विजय