संकल्प सहज ही पूरा (kahani)

July 1993

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 एक जगह नारियल बिक रहे थे। एक मछुआरे ने दाम पूछा, तो उसने आठ आने बताये। वह सस्ते में देने की जिद करने लगा। दुकानदार ने कहा-एक मील आगे चले जाओ वहाँ नारियल का बगीचा है। सस्ते वहाँ नारियल का बगीचा है सस्ते वहाँ मिलेंगे। वहाँ नारियल का बगीचा है। सस्ते वहाँ मिलेंगे। वहाँ पहुँचा तो भाव चार आने का था। वह और सस्ता माँगने लगा, तो दुकानदार ने कहा पेड़ पर चढ़ जाओ और मुफ्त में तोड़ लाओ। वह चढ़ गया। कई नारियल लिये। पर नीचे झाँक कर देखा तो ऊँचाई से गिरने का भय लगने लगा।

उसने भगवान् से प्रार्थना की यदि सही सलामत नीचे पहुँचूँ, तो पाँच ब्राह्मण को भोजन कराऊँगा एवं खूब दान दूँगा। धीरे-धीरे सँभल-सँभल कर उतरा। आधी दूरी पर आ गया, तो बोला दो ब्राह्मण को भोजन कराऊँगा, और नीचे उतरा तो एक की बात करने लगा। जब जमीन पर आ गया, तो बोला ब्रह्म सबके भीतर है मेरे और परिवार के भीतर भी तो ब्राह्मण है। हम सब लोग नित्य की तरह साथ भोजन करेंगे तो ब्रह्मभोज का संकल्प सहज ही पूरा हो जायेगा।

आपत्ति के समय परोपकार करने की मनौती प्रायः इसी प्रकार अपूर्ण रह जाती है।

द्वापर युग में मालप देश में शिखिध्वज नाम का एक राजा था। उसकी पत्नी सौराष्ट्र की राजकन्या थी-नाम था उसका चूडाला। बहुत समय तक दोनों उपभोग में निरत रहे। पीछे उनके मन में आत्म ज्ञान की आकाँक्षा हुई। दोनों अपने-अपने ढंग से इस प्रयास में अग्रसर रहने लगे। रानी में संक्षेप में समझ लिया था कि दृष्टिकोण को बदल लेना और अन्तःकरण को साध लेना ही ब्रह्मज्ञान है। सो उस उपलब्धि पर वह बहुत प्रसन्न रहने लगी। राजा को भी सिखाती, तो वे स्त्री के प्रति हीन भावना रखने के कारण उसकी बात पर ध्यान नहीं देते थे।

राजा को कर्मकाण्डपरक तप-साधना में विश्वास था, सो वे एक विम चुपचाप रात्रि में उठ कर वन चले गये। रानी ने योगबल से जान लिया, सो राजकाज स्वयं चलाने लगी। राजा को कुछ काल के लिए प्रवास जाने की बात कह दी।

एक दिन उनने राजा से मिलने की इच्छा की, सो सूक्ष्म शरीर से वहीं जा पहुँची, जहाँ राजा था। वेष ऋषि कुमार का बनाया। परिचय पूछने पर अपने को नारद पुत्र कहा। राजा के साथ उनकी ज्ञान चर्चा चल पड़ी। पर संध्या होते ही वे दुःखी होने लगे। बोले मुझे दुर्वासा का शाप लगा है। दिन में पुरुष और रात्रि में नारी हो जाता हूँ। आपके पास टिक सकूँगा।

राजा ने कहा-आत्मा न स्त्री है, न पुरुष। न इनमें कोई छोटा है, न बड़ा। डरने जैसी कोई बात नहीं है आप हमारे मित्र हो गये है प्रसन्नतापूर्वक साथ में रहें कई दिल बीत गये। मित्रता प्रगाढ़ हुई, तो स्त्री बने ऋषि कुमार ने कहा मेरी कामना वासना प्रबल हो रही है रुका नहीं जाता। राजा ने कहा आत्मा पर कुसंस्कार न पड़े, तो शरीर क्रियाओं में कोई दोष नहीं है। उनका काम-क्रीडा प्रकरण चल पड़ा। न राजा को खेद था, न पश्चाताप। अब वे स्त्री पुरुष को समान मानने लगे थे।

चूडाला ने अपना असली रूप प्रकट किया और राजा को महल में घसीट लाई। स्त्री को हेय मानने और उसके परामर्श की उपेक्षा करने का हेय भाव उनके मन से विदा हो गया। राजा ने चूडाला को अपना गुरु माना प्रसन्नतापूर्वक राजकाज चलाते हुए आत्म ज्ञान में लीन रहे।

वशिष्ठ ने कहा है राम आत्मा एक है। स्त्री पुरुष होने से कोई अंतर नहीं आता। दृष्टिकोण बदल जाने पर ही मनुष्य ब्रह्मज्ञानी हो जाता है


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