एक बार गुरु नानक पानीपत गए, जहाँ शाह शरफ नामक एक प्रसिद्ध सूफी फकीर रहते थे गुरु नानक ने इस समय गृहस्थियों के समान वस्त्र धारण किए थे। यह देखकर शाह शरफ ने पूछा- “फकीर होकर आपने गृहस्थों जैसे कपड़े क्यों पहन रखे हैं और संन्यासियों की तरह आपने अपना सिर क्यों नहीं मुड़ाया है?” नानक ने उत्तर दिया “मूड़ना तो मन को चाहिए, सिर को नहीं और मिट्टी की तरह नम्र होकर ही मन को मूड़ा जा सकता है।” अपने देश के संबंध में उन्होंने कहा-“ जो मनुष्य परमेश्वर के द्वार पर अपने सुख, स्वाद और अहंकार को त्यागकर गिर पड़े, वह जो वस्त्र धारण करे, परमात्मा उसे स्वीकार करता है। जब शाह शरफ ने पूछा-आपकी जाति क्या है? आपका मत क्या है? गुजर कैसे होती है?”