विवेकानन्द जी ने रामकृष्ण मिशन बनाकर मन्दिरों के साथ ही आश्रमों की परम्परा बनायी। जब वे अंतिम दिनों रुग्ण थे, तब कुछ लोगों ने कहा-“आप विश्राम क्यों नहीं करते’?” स्वामी जी ने कहा मेरा सेवा भाव मुझे बैठने नहीं देता। मैं केवल प्रेम का ही प्रचार चाहता हूँ, मेरे उपदेश वेदान्त की समता और आत्मा की विश्व व्यापकता पर ही आधारित है। दुखियों के दर्द को अनुभव करो और उनकी मस्तिष्क में इसी विचार को रखकर 12 वर्ष तक घूमा हूँ। मैं इस देश में भूखा-प्यासा भले ही मर जाऊँ, पर नवजवान! मैं तुम्हारे लिये यह वसीयत छोड़ जाता हूँ कि गरीबों, अज्ञानियों और दुखियों की सेवा के लिये प्राण-पण से लग जाओ।”