सौर ज्वालाओं से प्रभावित ब्रह्माँडीय चेतना

July 1993

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पृथ्वी की परिस्थितियों, वातावरण, मौसम, वृक्ष-वनस्पतियों और प्राणी-समुदाय की शारीरिक-मानसिक स्थिति पर सूर्य की गति और उसमें समय-समय पर होते रहने वाले परिवर्तनों का असाधारण प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों एवं खगोलविदों की नवीनतम खोजो से यह तथ्य अधिक स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया है कि सौर धब्बों, सौर ज्वालाओं का सीधा प्रभाव अन्तर्ग्रही संतुलन एवं मानवी काया और मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। जब भी इस तरह के परिवर्तनों में अभिवृद्धि होती है प्रकृति में असंतुलन बढ़ जाता है जिसकी परिणति प्राकृतिक विक्षोभों और विस्फोटक घटनाक्रमों के रूप में होती है।

सौर धब्बों के उभरने और उनके द्वारा पृथ्वी पर परिवर्तनों की शृंखला का सुविस्तृत वर्णन सर्वप्रथम वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में किया जो आज पाश्चात्य वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान का प्रमुख-विषय बना हुआ है। खगोल वेत्ताओं का मत है कि हर ग्यारहवें साल सूर्य की सक्रियता बढ़ जाने से आणविक विस्फोट होती है जिसके कारण सूर्य से रेडियो विकिरण अधिक होता है। सामान्यतः मौसम परिवर्तन प्रकृति का नियम है जो विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है प्रकृति चक्र के अनुरूप यह बदलता भी रहता है, पर जिन दिनों सूर्य धब्बों की संख्या बढ़ जाती है उन दिनों पृथ्वी पर एक विशिष्ट प्रकार की जैव चुम्बकीय लहर चलती है। मौसम भी विशेष प्रकार का चलता है। मौरस भी विशेष प्रकार का चलता है जिन्हें हम पकड़ नहीं पाते, पर पेड़-पौधे उन्हें पकड़ लेते हैं। उन अदृश्य सूक्ष्म तरंगों का प्रभाव मानवी मन-मस्तिष्क को मध कर रख देता है और वह विवश हो कुछ से कुछ सोचने और कुछ से कुछ करने लग जाता है। सूर्य के इस प्रचण्ड तूफानी चुम्बकीय प्रवाह के माध्यम से विश्व ब्रह्माँड में गलाई और ढलाई की ध्वंस और सृजन की दोनों ही प्रक्रियायें साथ-साथ संपन्न होती हैं, पर उसका सर्वाधिक प्रभाव अवांछनीयताओं के विस्मार होने के रूप में ही सामने आता है, यद्यपि गेहूँ के साथ घुन के पिस जाने की कहावत भी चरितार्थ हुए बिना नहीं रहती।

अनुसंधानकर्ता सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक जॉन का कहना है इस शताब्दी में सूर्य धब्बों की सबसे ज्यादा अभिवृद्धि सन् 1968 से आरंभ हुई है और सन् 2000 तक उत्तरोत्तर बढ़ती ही जायेगी। सौर सक्रियता का सामान्य चक्र ग्यारह वर्षीय होता है, किन्तु ग्रहणकाल में यह सक्रियता कई गुना अधिक बढ़ जाती है। खग्रास सूर्यग्रहण की अपेक्षा पूर्ण ग्रहणकाल में सौर धब्बों की संख्या भी सर्वाधिक बढ़ी-चढ़ी होती है। छोटे सूर्य ग्रहणों की शृंखला लम्बी है। कई बार तो एक ही वर्ष में पाँच से भी अधिक सूर्य ग्रहण होते देखे गये हैं, पर पूर्ण सूर्यग्रहण कई वर्षों बाद ही आता है। इस सदी में बड़े खग्रास सूर्य ग्रहण 21 अगस्त 1994 एवं 21 मई 1938 को हुए थे। ये दोनों ही क्रमशः प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व घटित हुए थे। 16 फरवरी 1980 का सूर्य ग्रहण उक्त दोनों से भी बड़ा था। अगले पूर्ण सूर्य ग्रहण क्रमशः 24 अक्टूबर सन् 1995 एवं 11 अगस्त 1999 में पड़ेंगे। पिछला पूर्ण सूर्य ग्रहण जो स्पष्ट देखा गया था वह 22 जनवरी 1818 को हुआ था। खगोलवेत्ताओं एवं भौतिक विज्ञानियों का कहना है कि सौर सक्रियता में निरन्तर हो रही अभिवृद्धि घटनाओं एवं विभीषिकाओं की दृष्टि से असामान्य स्तर की होंगी। अगले दिनों सूर्य धब्बों की संख्या और भी अधिक बढ़ जायेगी, परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर जबर्दस्त चुम्बकीय तूफान उठेंगे और साथ ही सौर ज्वालायें एवं हवायें और भी घातक हो उठेंगी। उस समय न केवल वातावरण एवं मौसम में भारी परिवर्तन होगे, वरन् मनुष्य को भी शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक रूप से उथल-पुथल का सामना करना पड़ेगा।

वस्तुतः अपनी पृथ्वी पर न केवल जीवन चक्र चलाने के लिए जिम्मेदार है, वरन् समूचे धरातल की भौतिक संरचना में अपनी शक्तियों से दीर्घकालीन परिवर्तन लाने के लिए भी उत्तरदायी है। करोड़ों किलो मीटर की दूरी के बावजूद भी सूर्य और पृथ्वी का संबंध अन्यान्य ग्रह-गोलकों की अपेक्षा अत्यधिक घनिष्ठ है यही कारण है कि सूर्य मंडल की गतिविधियों में होने वाले परिवर्तनों का सीधा प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है और उसमें भू भौतिकीय परिवर्तन आते हैं। सौर सक्रियता के कारण भू भौतिकीय परिवर्तन और प्राणियों की जैव रासायनिक संरचना तथा सौर गतिविधियों और भूकंप का भी आपसी रिश्ता है।

इस संदर्भ में कैलीफोर्निया-अमेरिका की सुविख्यात महिला जीवविज्ञानी मार्शा ऐडम्स ने गहन अनुसंधान किया हैं। उनका कहना है कि लगभग सभी जैविकीय एवं भौतिक परिवर्तन सौर गतिविधियों में उतार-चढ़ाव के कारण ही होते हैं। भूकंप एवं ज्वालामुखी विस्फोट से लेकर मौसम में विशेष परिवर्तन तक की भू-भौतिकीय प्रक्रियाएँ एवं हिंसात्मक गतिविधियों युद्धों, महामारियों से लेकर महाक्रान्तियाँ तक की घटनायें किसी न किसी तरीके से सौर हलचलों से जुड़ी हुई हैं विभिन्न अस्पतालों में 11 हजार-रोगियों का गंभीरतापूर्वक निरीक्षण-परीक्षण करने के पश्चात् उनने निष्कर्ष निकाला है कि सौर धब्बों की अभिवृद्धि के दिनों में मनुष्य में कुछ विशेष शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक लक्षण उभरते हैं। प्रायः सभी जैविक क्रियायें सौर हलचलों में उत्पन्न तीव्रता के कारण अव्यवस्थित व अनियमित हो उठती हैं। यह भी पाया गया है कि उन्हीं दिनों भूकंप भी आते हैं। उनका मत है कि जो सामर्थ्य या प्रेरक बल मनुष्यों में दैहिक या मानसिक भावनात्मक लक्षण या परिवर्तन उत्पन्न करते हैं, वही बल भूकंप उत्पन्न करने वाले कारकों को प्रेरित करते हैं और उन्हीं के कारण मानवेत्तर प्राणियों-पशु पक्षियों के व्यवहार में भी विलक्षणता उत्पन्न होती हैं। जो भूकंप आने के ठीक पहले या कुछ देर बाद उत्पन्न होती है।

जीवविज्ञानी मार्शा ऐडम्स के अनुसार यह सभी प्रेरक-बल सौर सक्रियता में तीव्रता उत्पन्न होने के कारण उल्लेखनीय रूप से प्रभावित होते हैं। सौर हलचलों की-जिसमें सन स्पाट्स एवं सौर ज्वालायें भी सम्मिलित हैं-की तीव्रता न केवल भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए, वरन् विलक्षण मौसम स्थिति, नियतकालिक बीमारियों, आगजनी, दंगे राजनीतिक अस्थिरता, आपराधिक लहर आदि के लिए भी उत्तरदायी हैं। इस संबंध में उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उनने कहा है कि अर्जेन्टीना व ब्रिटेन के मध्य फाकलैण्ड द्वीप का विवाद सौर गतिविधियों में वृद्धि के बाद ही उभरा था। इसके अतिरिक्त रेल दुर्घटनायें, वायुयानों की दुर्घटनायें-परिवहन तथा समुद्री यानों के एक्सीडेन्ट आदि के लिए भी सौर सक्रियता में अभिवृद्धि ही मुख्य कारण होते हैं। इसकी प्रभाव-प्रतिक्रिया मनुष्यों में कुछ दिनों बाद व्यक्त होती है, जब कि भूकंप लगभग चार दिन बाद आते हैं। देखा गया है कि शल्यक्रिया के पश्चात् स्वास्थ्य लाभ कर रहे व्यक्तियों के कच्चे घावों से सौर हलचलों की तीव्रता के दिनों अनियमित रूप से रक्त स्राव होने लगता है। रक्त स्राव की यह अनियमितता सौर गतिविधि बढ़ने के कुछ देर बाद और भूकंप आने से कुछ देर बाद और भूकंप आने से कुछ पहले देखी गयी है। इतना ही नहीं कुछ रोगियों में भावनात्मक असंतुलन देखा गया तो कुछ को उलटी करते और रोग निवारक औषधियों के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पाया गया है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि सौर गतिविधियों में सबसे ज्यादा खतरनाक एवं शक्तिशाली ‘सोलर फ्लेअर’ अर्थात् सौर ज्वालायें होती हैं। जिह्य के आकार के लपलपाते हुए यह विशालकाय उभार अपने भीतर दो करोड़ डिग्री केल्विन से भी ज्यादा तापमान समेटे हुए होते हैं और 10 से 100 अरब मेगाटन हाइड्रोजन बमों के बराबर ऊर्जा मुक्त करते हैं जिससे किसी भी राष्ट्र को हजारों वर्ष तक बिजली आपूर्ति की जा सकती है। सूर्य धब्बों के चक्र-जिसमें धब्बों की संख्या प्रत्येक 11 वें वर्ष में अधिकतम होती है, के साथ-साथ सौर ज्वालाओं में भी अभिवृद्धि होती जाती है। जिन दिनों सूर्य धब्बों की संख्या अधिकतम होती है, उन दिनों 2-3 छोटी-छोटी सौर ज्वालायें या प्रदीप्ति प्रत्येक घंटे दिखती हैं, जब कि एक विशालकाय सौर ज्वाला प्रत्येक महीने दिखती है लेकिन ‘सोलर मिनिमम’ - अर्थात् कम से कम सूर्य धब्बों की स्थिति में कई सप्ताहों तक सौर प्रदीप्ति दिखायी नहीं पड़ते।

अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि जिस तरह पृथ्वी की सतह पर तेज हवायें चलती रहती है, उसी तरह से सूर्य की सतह पर भी सोलर विन्ड (सौर आँधी) चलती है, अन्तर केवल इतना ही होता है कि यह आँधी मात्र एक ही दिशा में चलती है। सूर्य-धब्बों की तीव्रता के दिनों यह तूफान सौर-मंडल से पृथ्वी पर आ जाता है और पृथ्वी पर आ जाता है और पृथ्वी की चुम्बकीय स्थिति में भारी बदलाव लाता है। 15 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले सूर्य कणों से युक्त इस तूफान से पृथ्वी की भू-चुम्बकीय स्थिति में जो परिवर्तन होता है, उसका प्रभाव प्राणि जगत एवं वनस्पति जगत पर तो पड़ता ही है, साथ ही उसका अत्यन्त हानिकारक प्रभाव इलेक्ट्रानिक मशीनरी, संचार माध्यमों, विद्युत-आपूर्ति करने वाले संयंत्रों कृत्रिम उपग्रहों नाभिकीय संयंत्रों आदि पर पड़ता है इस संबंध में टेनेसी स्थिति ओकेरिज नेशनल लैबोरेटरी के विशेषज्ञ द्वय पाडँल बर्नेस तथा जेम्स वाँन डाइके ने पिछले दिनों 13 मार्च 1981 को घटित घटनाओं का हवाला देते हुए कहा है कि उस दिन सौर ज्वालायें विश्व इतिहास में अपने अब तक के प्रचंडतम रूप में थीं लाखों कि0मी0 लम्बी इन ज्वालाओं के कारण उत्पन्न सूर्यकणों युक्त तूफानी हवाओं से फ्लोरिडा के पास हाइड्रो क्यूबेक पावर-सिस्टम पूरी तरह फेल हो गया था। इन्हीं सूर्य-हवाओं के कारण न्यू-जर्सी स्थित एक नाभिकीय संयंत्र के सारे ट्राँसफार्मर जल कर राख हो गये थे।

डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने भी सूर्य के धब्बों की क्रियाशीलता और विश्वव्यापी तापमान में गहरा संबंध खोज निकाला है। उनका कहना है कि

पृथ्वी के इन दिनों अधिक गरम होने का कारण सूर्य-हलचलों की तीव्रता में आया उतार-चढ़ाव हैं अगले दिनों सौर-गतिविधियाँ अधिक प्रचंड होगी जिससे न केवल भू-भौतिकीय परिवर्तन होगे वरन् मानवी चेतना भी प्रभावित होगी। सूर्य, जैसा कि बार-बार स्पष्ट किया जाता रहा है, मात्र जलता हुआ आग का गोला नहीं है, इसके आधिदैविक व आध्यात्मिक प्रभाव समग्र ब्रह्माँडीय चेतना पर बड़े गहरे स्तर तक पड़ते है। यही कारण है कि ऐसी सौर सक्रियता के समय सूर्योपासना, गायत्री उपासना सामूहिक धर्मानुष्ठानों की अत्यधिक महत्ता बतायी जाती रही है। आश्वमेधिक पराक्रम इन दिनों अत्यधिक फलदायी व मानव मात्र के लिए हितकारी होते हैं। संधिवेला में यदि अनायास आ पड़ें इन सुयोगों का हम सभी लाभ उठा सकें तो निश्चित ही सौभाग्यशाली कहलाये जायेंगे।


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