राजा परीक्षित को शापवश एक सप्ताह में सर्प दंश से मरना था। उसने बचे समय का श्रेष्ठतम सदुपयोग करने में बुद्धिमत्ता समझी। विचार क्षेत्र में आदर्श भर लेने की दृष्टि से पुराण कथा सुनने की व्यवस्था बनाई गई।
कथा वाचक व्यास जी ने ही इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए, उनने अपने पुत्र शुकदेव जी को आमंत्रित करने का परामर्श दिया। व्यास के चरित्र में नियोग जैसे कई लांछन थे पर शुकदेव का चरित्र सर्वथा निर्मल था। वाणी के कथन मात्र से ही उपदेश का प्रयोजन नहीं सधता। धर्मोपदेशक का चरित्र-व्यक्तित्व भी पवित्र होना चाहिये।