परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - एक अंतरंग कार्यकर्ता गोष्ठी

July 1993

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25 मार्च 1987

इस अंक में एक अंतरंग गोष्ठी का प्रसंग प्रस्तुत है जिसमें परमपूज्य गुरुदेव ने अपने कक्ष से अपने परिजनों को जो शांतिकुंज गायत्री तपोभूमि व क्षेत्रों में बिखरे पड़े है,संबोधित करते हुए उनसे आदर्श कार्यकर्ता के रूप में विकसित होने का आग्रह किया था। यह ऐतिहासिक गोष्ठी मूलतः काफी लम्बी थी, संपादन के साथ पाठकों के लिए प्रस्तुत है।

अपने बच्चों से, साथियों से मिशन के कार्यकर्ताओं से मिलने का मेरा बड़ा मन था। पर संयोग नहीं मिल पा रहा था। पहले मन यह था कि यहाँ बुलाऊँ और बुला करके एक-एक से बात करूं और अपने मन को खोलकर आप सबके सामने रखूँ और आपकी नब्ज़ भी देखूँ, पर अब यह संभव नहीं रहा। कितने कार्यकर्ता है? यहाँ शाँतिकुँज के स्थायी कार्यकर्ता एवं सामयिक स्वयं सेवक आये हुए है। एक समुदाय जो शुरू में आया था वह समुदाय न केवल यहाँ का, वरन् गायत्री तपोभूमि का, वह भी हमारा समुदाय है। सब लोगों को बुलाने के लिए मैं विचार करता रहा कि क्या ऐसा संभव है कि एक-एक करके आदमियों को बुलाऊँ और अपने जीवन के अनुभव सुनाऊँ और अपनी इच्छा और आकांक्षा बताऊँ तो भी पूरा नहीं हो सकेगा। इसलिए आप यह मानकर चलिए कि आप से व्यक्तिगत बात की जा रही है और एकाँत में अकेले में बुलाकर के कंधे पर हाथ रखकर के और आप से ही कहा जा रहा है किसी और से नहीं।

आप इन बातों को अपने जीवन में प्रयोग करेंगे तो मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि आपकी ऐसी उन्नति होती चली जायगी जैसी कि एक छोटे से देहात में जन्म लेने के बाद हम उन्नति करते चले आये और उन्नति के ऊँचे शिखर पर जा पहुँचे। आपके लिए भी यह रास्ता खुला हुआ है। आपके लिए भी सड़क खुली हुई हुई है। लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर पायेंगे तो आप यह विश्वास रखिये कि आप घटिया आदमी रहे होंगे किसी भी समय में और घटिया ही रह कर जायेंगे। भले से ही आप शांतिकुंज में रहें। आपकी कोई कहने लायक महत्वपूर्ण प्रगति न हो सकेगी और आप वह आदमी न बन सकेंगे जैसे कि बनाने की मेरी इच्छा थी।

अब क्या करना चाहिए? आपको वह काम करना चाहिए जो कि हमने किया है क्या किया है क्या किया है आपने? क्रिया-कलाप गिनाऊँगा। क्रियाकलाप गिनाऊँगा तो मुझे वहाँ से चलना पड़ेगा जहाँ से काँग्रेस का वालन्टियर हुआ और फिर यहाँ आकर के होते-होते वहाँ आ गया जहाँ अब है। यही बड़ी लम्बी कहानी है। उन सब कहानियों का अनुभव और निष्कर्ष निकालना आपके लिए मुश्किल हो जायगा। उस पर तो ध्यान नहीं देता, लेकिन मैं सैद्धाँतिक रूप से बताता हूँ।

हमने आस्था जायगी श्रद्धा जायगी। निष्ठा जायगी। निष्ठा, श्रद्धा और आस्था किसके प्रति जगायी? व्यक्ति के ऊपर? व्यक्ति तो माध्य होते हैं। हमारे प्रति गुरुजी के प्रति श्रद्धा है। बेटा यह तो ठीक है, लेकिन वास्तव में सिद्धांतों के प्रति श्रद्धा होती है। आदर्शों के प्रति श्रद्धा देवताओं के प्रति श्रद्धा होती है व्यक्तियों के प्रति श्रद्धा मूर्तियों के प्रति श्रद्धा देवताओं के प्रति श्रद्धा टिकाऊ नहीं होती। इसका काई ज्यादा महत्व नहीं महत्वपूर्ण वह जो सिद्धांतों के प्रतिनिष्ठा होती है। हमारी सिद्धांतों के प्रतिनिष्ठा रही। आजीवन वहाँ से जहाँ से चले जहाँ से विचार उत्पन्न किया है वहाँ से लेकर निरंतर अपनी श्रद्धा की लाठी हमने पकड़ी न होती तो तब संभव है कि हमारा चलना-इतना लम्बा सफर पूरा न होता। यदि सिद्धांतों के प्रति हम आस्थावान न हुए होते तो संभव है कि कितनी बार भटक गये होते और हवा का झोंका उड़ाकर हमको कहाँ ले गया होता? लोभों के झोंके नामवरी के झोंके यश के झोंके दबाव के झोंके ऐसे है कि आदमी को लम्बी राह पर चलने के लिए मजबूर कर देते हैं और कही से कही घसीट ले जाते हैं। हमको भी घसीट ले जाते हैं। हमको भी घसीट ले गये होते। ये आदमियों को घसीट ले जाते हैं बहुत से व्यक्ति थे जो सिद्धाँतवाद की राह पर चले और भटक करके कहाँ से कहाँ जा पहुँचे।

भस्मासुर का पुराना नाम बताऊँ आपको। मारीचि का पुराना नाम बताऊँ आपको। ये सभी योग्य और तपस्वी थे पहले जब उन्होंने उपासना-साधना शुरू की थी तब अपने घर से तप करने के लिए हिमालय पर गये थे। तप ओर पूजा-उपासना के साथ-साथ में कड़े नियम और व्रतों का पालन किया था। तब वे बहुत मेधावी थे लेकिन समय और परिस्थितियों के भटकाव में वे कहीं के मारे कहीं चले गये। भस्मासुर का क्या हो गया? मारीचि का क्या हो गया? जिसके प्रलोभन सताते हैं वे भटक जाते हैं और कही के मारे कही चले जाते हैं।

तो श्रद्धा आदमी को टिकाऊ बनाये रखने के लिए एक रस्सी या एक सम्बल है जिसके सामने जिसको पकड़ करके मनुष्य सीधी राह पर चलता हुआ चला जाता है भटक नहीं पाता आप भटकना मत। घर से आप चले थे न, यह विचार लेकर चले थे न कि हम लोक कल्याण के लिए-जन मंगल के लिए घर छोड़कर चल गये है। आप जब कभी भी भटकना मत।घर से आप चले थे न यह विचार लेकर चले थे न कि हम लोक कल्याण के लिए-जन मंगल के लिए घर छोड़कर चले गये है। आप जब कभी भी भटकन आये तो आप अपने उस दिन को उस समय की मनः स्थिति को याद कर लेना जबकि आपके भीतर से श्रद्धा का एक अंकुर उमा था ओर अंकुर उगकर के फिर आपके भीतर एक उमंग पैदा हुई थी और उमंग को लेकर के आप यहाँ आ गये थे। आप को याद है जब आप यहाँ आये थे, जिस दिन आप आये थे उसी मन को याद रखना।

साधु-बाबा जी जिस दिन घर से निकलते है उस दिन यह श्रद्धा लेकर निकलते हैं कि हमको संत बनना है। महात्मा बनना है, ऋषि बनना है तपस्वी बनना है। लेकिन थोड़े दिनों बाद वह जो उमंग होती है वह ढीली पड़ जाती है और ढीली पड़ने के बाद में संसार के प्रलोभन उनको खीचते हैं। किसी की बहिन बेटी की ओर देखते हैं किसी से पैसा लेते हैं किसी को चेला-चेली बनाते हैं किसी की हजामत बनाते हैं फिर जाने क्या हो जाता है। पतन का मार्ग यही से आरंभ होता है। ग्रैविटी गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की हर चीज को ऊपर से नीचे की ओर खींचती है। संसार भी एक ग्रैविटी है जो ऊपर से नीचे की ओर खींचती है। आप लोगों से सबसे मेरा यह करना है कि आप ग्रैविटी से खिंचना मत रोज सबेरे उठकर भगवान का नाम लिया कीजिए और भगवान के नाम के साथ में यह विचार किया कीजिये कि हमने किन सिद्धांतों के लिए समर्पण किया था। और पहला कदम जब उठाया था तो किन सिद्धांतों के आधार पर उठाया था उन सिद्धांतों को रोज याद कर लिया कीजिए कि हमारी उस श्रद्धा में, और उस निष्ठा में॰ उस संकल्प में और उस त्यागवृत्ति में कहीं फर्क तो नहीं आ गया। संसार ने हमको खींच तो नहीं लिया। वातावरण ने हमको गलत तो नहीं बना दिया। कहीं हम कमीने लोगों की नकल तो नहीं करने लगे। आप यह मत करना।

यह नहीं करेंगे तो क्या हो जायेगा? यदि आपकी श्रद्धा कायम रही तो फिर एक नयी चीज पैदा होगी। बीज यदि ठीक तरीके से बोया गया हो तो उसमें से अंकुर जरूर पैदा होगा। फिर क्या पैदा होगा आपको काम करने की लगन पैदा होगी। काम करने की ऐसी लगन ऐसी लगन की आप ने जो काम पूरा किया है उसको पूरा करने के लिए कितने तेज कदम उठाये जाये, यह आपके करते ही बनेगा आप फिर यह नहीं कहेंगे कि हमने छः घण्टे काम कर लिया, चार घण्टे काम कर लिया। यहाँ बैठे है वहाँ बैठे हैं। ओवरटाइम लाइये और ज्यादा काम हम क्यों करेंगे? नहीं फिर आप काम किये बिना रह नहीं सकेंगे।

हमारा भी यही हुआ। श्रद्धा जब उत्पन्न हुई तो हमने यह सोचा कि कही ऐसा न हो कि प्रलोभन हमको खींचने लगे। तो वहाँ से घर की संपत्ति को त्याग करने से लेकर के स्त्री के जेवरों से लेकर और जो कुछ भी था, सबको त्याग करते चले आये कि कही प्रलोभन खींचने नहीं लगे प्रलोभन खींचने नहीं पाये और वह श्रद्धा हमको निरंतर बढ़ती हुई चली आयी। फिर उसने लगन को कम नहीं होने दिया। घियामण्डी के मकान में 17 वर्ष तक बिना बिजली के हमने काम किया। न उसमें पंखा था न उसमें बल्ब। मकान मालिक से झगड़ा हो गया था, सो मकान मालिक कहता था कि मकान खली करो तो उसने बिजली के सेक्शन पर साइन नहीं किये थे और बिजली हमको नहीं मिली। 17 वर्ष तक हम केवल मिट्टी के तेल की बत्ती जलाकर रात को दो बजे से लेकर सबेरे तक अपना पूजा-पाठ से लेकर के और अपना लेखन कार्य तक बराबर करते रहे। पंखा था नहीं घोर गर्मियों के दिनों में भी काम करते रहे 18 घण्टे काम करते रहे। यह काम हमने किया।

अब क्या बात रह गयी दो बातों के अलावा। दो बातों में से आप में से हर आदमी को देखना चाहिए कि हमारी श्रद्धा कमजोर तो नहीं हुई। एक और हमारी लगन कमजोर तो नहीं हुई अर्थात् परिश्रम करने के प्रति जो हमारी उमंग और तरंग होनी चाहिए उसमें कमी तो नहीं आ रही। किसान अपने घर के काम समझता है तो सबेरे से उठता है और शाम को रात के नौ बजे 10 बजे तक बराबर घर के कामों में लगा रहता है।वह 18 घण्टे काम करता है किसी से शिकायत नहीं करता कि हमको 18 घण्टे रोज काम करना पड़ता है। हमें अवकाश नहीं मिला या हमको इतवार की छुट्टी नहीं मिली और हमको यह नहीं हुआ वह नहीं हुआ इसकी कोई शिकायत नहीं करता क्योंकि वह समझता है कि हमारा काम है। यह हमारी जिम्मेदारी है। खेत को रखना, जानवरों को रखना और बाल-बच्चों की देखभाल करना यह हमारा काम है। जिम्मेदारी हर आदमी को दिन-रात काम करने के लिए लगन लगाता है और वह आपके प्रति भी है आपको भी व्यक्तिगत जीवन में अपनी श्रद्धा को कायम रखना एक और अपनी लगन को जीवन्त रखना दो काम तो आपके व्यक्तिगत जीवन के है वह आपको करने चाहिए।

अब एक और नयी बात शुरू करते हैं नयी बात यह है कि यह मिशन हमने कितने परिश्रम से बनाया। कितना विस्तार इसका हो गया, कितना विस्तार होता जाता है आप सुनते रहते है न-हजार कुण्ड के यज्ञीय समाचार आपको मिलते हैं। आपको 2400 शक्ति पीठों की स्थापना की बात मिलती है। इस साल जो युगनिर्माण सम्मेलन हुए है उन सम्मेलनों की बात याद है यहाँ तक कि शिविर चलते हैं उनकी बात याद है। गवर्नमेंट के कितने शिविरों को हम चलाते है इसकी बाद याद है यहाँ का फिल्म स्टूडियो टीवी स्टूडियो फिल्म चलाने वाले है यह सब बाते आपका याद है। बहुत बड़ा काम है बहुत बड़ी योजना है इस काम को हमने आरंभ किया लेकिन अब यह जिम्मेदारी हम आपके सुपुर्द करते हैं। आप में से हर आदमी को हम यह काम सौंपते हैं कि आप हमारे बच्चे के तरीके से हमारी दुकान को चलाइये बन्द मत होने दीजिये हम तो अपनी विदाई ले जायेंगे लेकिन जिम्मेदारी आपके पास आयेगी आप कपूत निकलेंगे तो तो फिर आदमी आपकी बहुत निंदा करेगा और हमारी बहुत निंदा करेगा।

कबीर का बच्चा ऐसा हुआ था जो कबीर के रास्ते पर चलता नहीं था तो सारी दुनिया ने उससे यह कहा-बूडा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल आपको कमाल कहा जायगा और यह कहा जायगा कि कबीर तो अच्छे आदमी थे, लेकिन उनकी संतानें दो कौडी की भी नहीं है आपको संतानों को दो कौडी की भी नहीं है आपको संतानों को दो कौडी की पैदा नहीं करना है। आपको इस कार्य का विस्तार करना है जो काम हम करते रहे है वह अकेले हमने नहीं किया मिलजुल करके ढेरों आदमियों के सहयोग से किया है और यह सहयोग हमने प्यार से खींचे है समझा करके खींचे है आत्मीयता के आधार पर खींचे है। ये गुण आपके भीतर पैदा हो जाये तो जो आदमी आपके साथ-साथ काम करते रहते हैं, उनको भी मजबूत बनाये रहेंगे और नये आदमी जिन की कि इससे आगे भी आवश्यकता पड़ेगी नया युग लाने का संकल्प। नया युग लाने का संकल्प दो आदमियों का काम है, चार आदमियों का काम है हजारों आदमियों का काम है जो काम हमने अपने जीवन में किया है वही काम आपको करना है।

नये आदमियों को बुलाने का भी आपका काम है। कैसे बुलाना? यहाँ शांतिकुंज में कितने आदमी काम करते है? यहाँ शांतिकुंज में कितने आदमी काम करते है? यहाँ 250 के करीब आदमी काम करते हैं। एक कुटुम्ब बनाकर बैठे हैं और उस कुटुम्ब को हम कौर सी रस्सी से बाँधे हुए है, आत्मीयता की रस्सी से बाँधे हुए है ये रस्सियाँ आपको तैयार करनी चाहिए ताकि आप नये आदमियों को बाँध करके अपने पास रख सके और जो आदमी वर्तमान में है आपके पास उनको मजबूती से जकड़े रह सके। नहीं तो आप इनको भी मजबूती से जकड़े नहीं रह सकेंगे, यह भी नहीं रहेंगे। इनकी सफाई भी आपको करनी है आत्मीयता अगर न होगी और आपका व्यक्तित्व न होगा तो आपके लिए इनकी सफाई करना भी मुश्किल हो जाएगा।

इसलिए क्या करना चाहिए? आपके पास एक ऐसी प्रेम की रस्सी होनी चाहिए आपके पास ऐसी मिठास की रस्सी होनी चाहिए। आपके पास अपने व्यक्तिगत जीवन का उदाहरण पेश करने की ऐसी रस्सी होनी चाहिए। जिससे प्रभावित करके आप आदमी के हाथ जकड़ सके पैर जकड़ सके, काम जकड़ सकें। सारे के सारे को जकड़ करके जिन्दगी भर आपने साथ बनाये रख सके। यह काम आपको भी विशेषता के रूप में पैदा करना पड़ेगा। संस्थाएं इसी आधार पर चलती है संस्थाएं इसी आधार पर चलती है संस्थाएं इसी आधार पर चलती है। संस्थाओं की प्रगति इसी आधार पर टिकी है। संस्थाएं जो नष्ट हुई है संगठन जो नष्ट हुए है इसी कारण नष्ट हुए है। चलिए मैं आपको एक दो उदाहरण सुना देता है।

एक मैं उदाहरण सुनाऊँगा-स्वामी श्रद्धानन्द का। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने मकान को बेच करके गुरुकुल काँबडी नाम के एक छोटे से गाँव में छप्पर (खाली) रखने की हैसियत नहीं थी इसलिए पढ़ाना भी उनने ही शुरू कर दिया रसोइया रखने की हैसियत नहीं थी इसीलिए खाना पकाना भी उन्होंने शुरू कर दिया। यह लगन, यह निष्ठा जिन किन्हीं ने भी देखी वही आदमी प्रभावित होता हुआ चला गया, वही सहयोगी होता हुआ चला गया। यह उनका विश्वास था जिसने मकान बेच करके साथ बना दिया और (खाली) से लेकर के खाना पकाने तक के और पढ़ाने तक के और बच्चों के कपड़े धोने तक के-सारे काम अपने जिम्मे लिये। उनकी लगन उनकी श्रद्धा-बस यही दो शक्तियाँ जागी बस मैगनेट बन गया चुम्बक बन गया और लोगों का पैसा भी आता चला गया। यह भी होता हुआ चला गया बढ़ता हुआ चला गया। गुरुकुल कांगड़ी बन गयी और स्वामी श्रद्धानन्द की वजह से 40-45 आदमी उनके जमाने में -गुरुकुल कांगड़ी जिन दिनों स्थापित हुई थी ऐसे पैदा हुए जिन्होंने हिन्दुस्तान में तहलका मचा दिया आर्य समाजियो में नया जीवन फूँक दिया। नये गुरुकुल उन्हीं दिनों खुले थे। स्वामी जी ने उनको आज्ञा दी थी कि जैसा गुरुकुल यहाँ का गुरुकुल यहाँ का गुरुकुल कांगड़ी है तुम अपने क्षेत्र में वैसा ही गुरुकुल कायम करना। तो उन्हीं दिनों 20 के करीब गुरुकुल स्थापित हुए थे।

मैं अभी और उदाहरण सुनाता हूँ आपको। प्रेम महाविद्यालय का नाम सुना है आपने हमारी गायत्री तपोभूमि से कुछ आगे जाकर के वृन्दावन रोड़ पर बना हुआ हैं पहले जहाँ प्रेम महाविद्यालय था। राजा महेन्द्र प्रताप ने अपनी जमीन तो दान कर दी थी, बना भी दिया, लेकिन उसको चलाने के लिए बाबू सम्पूर्णानन्द और आचार्य जुगुलकिशोर ब्रह्मचारी कृष्ण चन्द्र जैसे पहली श्रेणी के लोग आये जिनका कि व्यक्तिगत चरित्र ज्ञान नहीं चरित्र और लगन उनमें थी उन्होंने क्या काम किया कि प्रेम महाविद्यालय में जो विद्यार्थी पढ़ने आते थे उनमें ऐसी लगन फूँक दी ऐसे प्राण फूँक दी-ऐसे प्राण फूँक दिये ऐसी जान दी कि यू0पी0 सत्याग्रह में किसी जमाने में ज बनमक सत्याग्रह प्रारंभ हुआ था तब पहली श्रेणी का था जिसमें कि इतने आदमी गिरफ्तार हुए, इतने आदमी जेल गये। इतने आन्दोलन हुए। इस सब का श्रेय 60 फीसदी श्रेय जो है प्रेम महाविद्यालय के विद्यार्थियों को था जो पहले साल में पढ़े। दूसरे साल में पढ़े तीसरे साल में पढ़े। उन पढ़े हुए विद्यार्थियों ने इतना हा-हाकार मचा दिया कि गवर्नमेंट को प्रेम महाविद्यालय बन्द करना पड़ा जितने भी विद्यार्थी थे चाहे वे सत्याग्रह कर रहे थे चाहे नहीं कर रहे थे-प्रेम महाविद्यालय के सारे विद्यार्थियों को मकानों से पकड़-पकड़ करके जेल में बन्द कर दिया कि इनको बागी बना दिया गया है।

दो उदाहरण एक मैंने श्रद्धानन्द का उदाहरण सुनाया दूसरा मैंने प्रेम महाविद्यालय का उदाहरण सुनाया। लगन की बात कह रहा हूँ आप से लगन की और आप से श्रद्धा की बात कह रहा हूँ श्रद्धा और लगन श्रद्धा और लगन। लगन आदमी के अन्दर हो तो सौ गुना काम करा लेती है। इतना काम करा लेती है कि हमारे काम को देखकर आपको आश्चर्य होगा। इतना साहित्य लिखने से लेकर इतना बड़ी क्रांति करने से लेकर के इतने आश्रम बनाने तक जो काम शुरू किये है वे कैसे हो गये? बेटा, यह श्रम है श्रम। यह हमारा श्रम है। यदि हमने श्रम से जी चुराया होता तो उसी तरीके से घटिया आदमी होकर के रह जाते जैसे कि अपना पेट पालना ही जिनके लिए मुश्किल हो जाता है। चोरी-ठगी से चोरी-चालाकी से जहाँ कहीं से मिलता पेट भरने के लिए कपड़े पहनने के लिए और अपना मौज-शौक पूरा करने के लिए पैसा इकट्ठा करते रहते पर इतना बड़ा काम संभव न होता।

तो क्या करना चाहिए। बेटे मैं नहीं बताता हूँ। कैसे कहूँ आपको, देख लीजिये और हमको पढ़ लीजिये और हमको पढ़ लीजिये। जिस दिन से हमने साधना के क्षेत्र में, सेवा के क्षेत्र में, अध्यात्म के क्षेत्र में कदम बढ़ाया, उस दिन से लेकर आज तक हमारी निष्ठा ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसमें कही एक राई-रत्ती, सुई के नोंक के बराबर फर्क नहीं आयेगा। जिस दिन तक हमारी लाश उठेगी उस दिन तक आप कभी यह नहीं सुनेंगे कि इन्होंने अपनी श्रद्धा डगमगा दी। इन्होंने अपने विश्वास में कमी कर दी।

आप हमारी वंश परम्परा को जानिये और हम मरने के बाद में जहाँ कहीं भी रहेंगे भूत बन कर देखेंगे। हम देखेंगे कि जिन लोगों को हम पीछे छोड़ कर आये थे, उन्होंने हमारी परम्परा को निबाही है और अगर हमको यह मालूम पड़ा कि इन्होंने हमारी परम्परा नहीं निबाही और इन्होंने व्यक्तिगत तानाबाना बुनना शुरू कर दिया और अपना व्यक्तिगत अहंकार अपनी व्यक्तिगत यश कामना और व्यक्तिगत यश कामना और व्यक्तिगत धन-संग्रह करने का सिलसिला शुरू कर दिया। व्यक्तिगत रूप से बड़ा आदमी बनना शुरू कर दिया तो हमारी आँखों से आँसू टपकेंगे और जहाँ कही भी हम भूत होकर के पीपल के पेड़ पर बैठेंगे वहाँ जाकर के हमारी आँखों से जो आँसू टपकेंगे-आपको चैन से नहीं बैठने देंगे और मैं कुछ कहता नहीं हूँ। आपको हैरान कर देंगे हैरान। दुर्वासा ऋषि के पीछे विष्णु भगवान का चक्र लगा था तो दुर्वासा जी तीनों लोकों में घूम आये थे, पर उनको चैन नहीं मिला था। आपको भी चैन नहीं मिलेगा। अगर हमको विश्वास देकर के विश्वासघात करेंगे तो मेरा शाप है आपको कि आपको चैन नहीं पड़ेगा कभी भी और न आपको यश मिलेगा न आपको ख्याति मिलेगी, न उन्नति होगी।आपका अधः पतन होगा। आपका अपयश होगा और आपकी जीवात्मा आपको मारकर डाल देगी। आप यह मत करना अच्छा।

मुझे अपने मन की बात कहनी थी सो मैंने कह दी अब करना आपका काम है कि इन बतायी हुई बातों को किस हद तक कार्यस्त करें और कहाँ तक चले। बस ये ही मोटी-मोटी बातें थी जो मैंने आपसे कही। बस मेरा मन हलका हो गया अब आप इन्हें सोचना। मालूम नहीं आप इन्हें कार्य रूप में लायेंगे तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी और मैं समझूँगा कि आज मैंने जी खोलकर आपके सामने जो रखा था आपसे उसे ठीक तरीके से पढ़ा समझा और जीवन में उतार करके उसी तरह का लाभ उठाने की संभावना शुरू कर दी जैसे कि मैंने अपने जीवन में की।

यह रास्ता आपके लिए भी खुला है, भजे आप पीछे -पीछे आइये साथ आइये। हमको देखिये और अपने आपको ठीक करिये। बस आज की बात समाप्त।


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