तुम्हारी शपथ (Kavita)

November 1990

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तुम्हारी शपथ हम निरन्तर तुम्हारे, चरण चिन्ह की राह चलते रहेंगे। करेंगे हरेक स्वप्न पूरा तुम्हारा, उसी यत्न में पग मचलते रहेंगे।

वही युग पुरुष आज जिसने गलाया, मनुज के लिए बीज सा ही स्वयं को, अंधेरा मरण का भला क्या करेगा, कि जिसने मिटाया सघन घोर तम को,

तुम्हारी शपथ हम सभी अंकुरित हो, सदा सत्य बनकर निकलते रहेंगे। तुम्हारी शपथ हम निरन्तर तुम्हारे, चरण चिन्ह की राह चलते रहेंगे।

तुम्हारा लिए स्नेह अपने हृदय में, कभी आँधियों में प्रकंपित न होंगे, तुम्हारी किरण बाँटने हम रहेंगे, किसी कार्य में हम विलम्बित न होंगे,

तुम्हारे जलाए दिये हम सभी हैं, तुम्हारी शपथ रोज जलते रहेंगे। तुम्हारी शपथ हम निरन्तर तुम्हारे, चरण चिन्ह की राह चलते रहेंगे।

बहाई करुण-धार जो इस धरा पर, उसे हम कभी सूखने ही ने देंगे, हरा हर मरुस्थल बने, बस इसी का, प्रबल यत्न दिन-रात करते रहेंगे,

घनीभूत करुणा तुम्हारी संजोए, तुम्हारी शपथ हम पिघलते रहेंगे। तुम्हारी शपथ हम निरन्तर तुम्हारे, चरण चिन्ह की राह चलते रहेंगे।

नगर गाँव घर-घर चले जायेंगे हम, लिये चेतनापूर्ण चिन्तन तुम्हारा, यहाँ पा सके प्रेरणामय संदेशा, हरेक राष्ट्र, हर जाति, जन-जन तुम्हारा,

निमिष भर नहीं देर अब हम करेंगे, न अब और संकल्प टलते रहेंगे। तुम्हारी शपथ हम निरन्तर तुम्हारे, चरण चिन्ह की राह चलते रहेंगे।

तुम्हारी बताई हुई राह पर ही, अंधेरी निशा को किरण मिल सकेगी, कि निष्प्राण होने लगी जो मनुजता, तभी फूल जैसी पुनः खिल सकेगी,

तुम्हारी शपथ हम इसी पर चलेंगे, न अब हम दिशाएँ बदलते रहेंगे। तुम्हारी शपथ हम निरन्तर तुम्हारे, चरण चिन्ह की राह चलते रहेंगे।

-शचीन्द्र भटनागर


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