माँसाहार गुनाह बेइज्जत

November 1990

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शाकाहार मानव की आदि प्रकृति है। लोगों की यह धारण भ्रान्ति मात्र है कि माँसाहार स्वास्थ्य के लिए लाभदायक या शक्तिवर्धक है। वस्तुतः सच्चाई यह है कि माँस मानवी स्वास्थ्य के लिए अनेकानेक संकट ही खड़ा करता है। विश्व में ऐसे अनेकों उदाहरण है जिनके शाकाहार से विशिष्ट शक्ति सामर्थ्य प्राप्त करने की बात प्रमाणित होती है। पश्चिमी आयरलैण्ड के लोगों का मूल भोजन जौ, छाछ फल और शाक है तथा वे अत्यन्त तन्दुरुस्त पाये जाते हैं। स्काटलैंड के लोगों का स्वस्थ शरीर व बल विश्वविख्यात है। आहार में वे प्रायः जौ की रोटी व्यवहार में लाते हैं। फ्राँस के लोग मूलतः फलाहारी होते हैं। वे चेस्टनट नामक फल खाया करते हैं। तुर्की निवासियों का प्रिय आहार किसमिस, अंजीर और रोटी है। इटलीवासी मक्का व फल के प्रेमी होते हैं। खाद्यान्न में वे प्रायः मेकरोनी नामक अनाज उपयोग में लाते हैं। भारत आनी शारीरिक मानसिक सामर्थ्य की दृष्टि से विश्व विजेता रहा है। इतिहास साक्षी है कि यहाँ के निवासी मूलतः शाकाहारी ही थे। अभी भी यहाँ की अधिसंख्य जनता अन्न फल और शाकों पर निर्भर है तथा माँसाहारियों की तुलना में स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन का आनन्द उठा रही है। शहरी क्षेत्रों में सभ्यता के नाम पर लोगों पर चिन्तनीय हास हुआ है।

विशेषज्ञों की दृष्टि में शाकाहार माँसाहार की तुलना में अधिक शक्तिदायक होता है। एक लीटर छाछ अथवा आधा लीटर दूध से उतनी ही शक्ति प्राप्त की जा सकती है, जितनी चार अंडे अथवा एक पौंड माँस से प्राप्त होती है। मूँग, चना, मूँगफली आदि से प्रचुर मात्रा में प्रोटीन मिलती है। दाल का एक औंस से दुगुना प्रोटीन प्रदान करता है। माँस के आधे से अधिक भाग जल और कीटाणुओं से युक्त होता है। उसमें विटामिन शर्करा आदि की मात्रा अत्यल्प ही पायी जाती है।

मनुष्य शाकाहारी वर्ग का प्राणी है। उसे शरीर और पाचन तन्त्र की संरचनानुसार क्षारीय और रेशेदार भोजन की आवश्यकता है। माँसाहार जैसे गरिष्ठ आहार से पाचन तन्त्र में अल्मता पैदा होती है इससे सड़न उत्पन्न होती है जो कितने ही रोगों का कारण बनती है। डॉ. रॉबर्ट-मेकेरियन के अनुसार मनुष्य को जीवित रहने के लिए अल्प एवं सात्विक भोजन की आवश्यकता है। विटामिन, कैल्शियम व फास्फोरस से युक्त शाकाहारी भोजन से ही मनुष्य अधिक स्वस्थ व प्रसन्न रह सकता है। उसके अनुसार -” माँसाहार करने वाले यह भूल ही जाते हैं कि माँस का समूचा भाग पौष्टिक नहीं होता। मात्र 60 प्रतिशत भाग ही पोषक रहता है। शेष 40 प्रतिशत भाग में ऐसा विकृत पदार्थ रहता है, जो नस नाड़ियों और रक्त में घुला रहता है, जिसे पृथक् किया जाना संभव नहीं है। यह भी पौष्टिक समझकर उदरस्थ कर लिया जाता है।”

माँसाहार के विषय में अभिमत व्यक्त करते हुए भगवान महावीर ने कहा था कि-यह एक नर्कगामी प्रवृत्ति है। इसमें इसका उपयोग तथा पेशा करने वाला दोनों ही पाप के अधिकारी बनते हैं”। माँसाहार का मनुष्य के स्वभाव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इस बात की पुष्टि करते हुए अब आधुनिक वैज्ञानिक भी कहते हैं कि ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना व हिंसक प्रवृत्ति के दैनन्दिन विकास का एक प्रमुख कारण माँसाहार है।” इससे मनुष्य के अन्दर क्रूरता का अहंकार का विकास होता है जिससे वह अत्यन्त निकृष्ट क्रिया–कलापों को करने पर भी उतारू हो जाता है।

खाद्य विशेषज्ञों का कहना है कि माँस को प्रायः मसालों के साथ तल-भुनकर स्वादिष्ट बना लिया जाता है, परन्तु इससे उसके दुष्परिणामों से बचा नहीं जा सकता। शिकारी जीव तो पशुओं को मारकर तुरन्त खा लेते हैं, परन्तु मनुष्य तो उसका भक्षण काफी देर बाद करता है। इससे उसमें अनेकों कीटाणु समाविष्ट हो जाते हैं। देर तक रखा माँस सड़-गल जाता है और उसमें प्रायः तपेदिक न्यूमोनिया हैजा आदि के कीटाणु पनप जाते हैं। खाने वाला व्यक्ति इन रोगों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। गठिया, क्षयरोग आदि भी इसी की उत्पत्ति मानी गई हैं।

अपनी खोज निष्कर्ष में डॉ. मेककोलम ने कहा है-माँस से मनुष्य की आँत में अनेकों विषैले कीटाणु उपजते हैं जिससे वह अनेकानेक रोगों का शिकार हो जाता है।” डॉ. जोसिका ओल्डफील्ड के शब्दों में -” मनुष्य के लिए माँसाहार प्राकृतिक भोजन नहीं है। यह उसके शरीर और मन का सबसे बड़ा दुश्मन है। इससे शरीर को क्षय, कैन्सर व आँतों के रोग से तो ग्रसित होना ही पड़ता है, किन्तु उससे भी भयंकर मानसिक विकृतियाँ पनपती हैं जो भक्षणकर्ता को कहीं का नहीं छोड़ती।

मनुष्य की शारीरिक संरचना भी कुछ ऐसी है कि वह माँसाहार के योग्य नहीं बैठती। मनुष्य की आँतें लंबी होती हैं। अतः माँसाहार के कारण सड़न जल्दी पैदा हो जाती और विषैले तत्व रक्त में घुलकर पूरे शरीर को विषाक्त बनाते हैं। परिणाम स्वरूप शरीर में शर्करा ठीक तरह से पच नहीं पाती और और अन्ततः मधुमेह रोग उत्पन्न हो जाता है। विषैले तत्वों के निरन्तर बने रहने पर शरीर अस्वस्थ हो जाता है तथा मानसिक तनाव बनने लगता है। इस संदर्भ में इंग्लैण्ड के प्रो. हेगे ने अपनी पुस्तक ‘यूरिक एसिड ओर रोगों का कारण में यह स्पष्ट उल्लेख किया है-माँस और अण्डे यूरिक एसिड होती है। उसमें सिरदर्द, पागलपन, लकवा, गठिया, श्वाँस, अनिद्रा, मधुमेह, जलोदर, हिस्टेरिया, नेत्रविकार आदि रोग विकार होते हैं।” आज चारों ओर इन रोगों की बहुतायत है।

माँस में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होती है जो मनुष्य में हृदय रोग एवं रक्त विकार को जन्म देती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि माँसाहारी प्राणियों के शरीर में हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा शाकाहारियों की तुलना में दस गुना अधिक होती है। इससे उनमें माँस के साथ-साथ हड्डी तक को पचा डालने की क्षमता रहती है। परन्तु मनुष्य में यह मात्रा उपलब्ध नहीं, अतः वह एक शाकाहारी प्राणी ही है।

श्वेतसार को पचाने के लिए शाकाहारियों की लार में रिपालिन नामक पाचक रस विद्यमान होता है जबकि माँसाहारी प्राणी में इसका सर्वथा अभाव रहता है सर्वविदित है कि मनुष्य में यह लार तत्व उपलब्ध है।

कलकत्ता स्कूल ऑफ टापिकल मेडिसिन के डॉ. हर्टर और डॉ. केन्टडेले ने बिल्लियों व वानरों के ऊपर प्रयोग करके पाया कि माँसाहार से उनके शरीर में जहर का समावेश हो गया तथा वे शीघ्र ही मृत्यु के शिकार होने लगे। प्रयोग के अंतर्गत गाय के माँस से कोढ़ जैसे रोग उत्पन्न होते देखे गये। माँसाहार से कैंसर की संभावनाएँ भी अधिक बढ़ जाती हैं वैर्स्टन आस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी के डॉ. बी.के. आर्मस्ट्राँग ने गहन शोध करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि शाकाहारी महिलाओं की तुलना में माँसाहारियों की कैंसर से होने वाली मृत्यु 30 से 40 प्रतिशत अधिक है।

अमेरिका में पिछले दशक से अनुसंधानों से पता चला है कि माँसाहार बड़ी आँत, स्तन और गर्भाशय के कैंसर का कारण भी बन सकता है। जापान में माँसाहारी कम होने के कारण इस तरह के कैंसर बहुत विरल हैं। ऐसा अनुमान है कि अधिक चिकनाई तथा पित्त उकसाने वाले गुण के कारण माँसाहार से आँतों में कैंसरकारी प्राकृतिक रसायन जमा हो जाते हैं तथा इससे आँतों में एवं शरीर की चरबी में ईस्ट्रोजन जैसे हारमोन पैदा करते हैं। स्तन और गर्भाशय के कैंसर की उत्पत्ति अंततः ईस्ट्रोजन जैसे यौन हारमोन्स द्वारा संप्रेषित होती है।

हमें डॉ. एडवर्ड सौर्न्डस के इस कथन को स्मरण रखना चाहिए कि-आने वाली दुनिया माँसाहार के नाम मात्र से भयभीत हो उठेगी। भावी युग के लोगों को शाकाहार के लिए बाध्य होना पड़ेगा। “


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