मधु संचय (Kavita)

November 1990

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याद तूने आ रहे हो! इस खुले वातावरण में, कष्ट हो या सुख प्रभो! रखना हमें अपनी शरण में।

हम भटकते थे जगते में, समय जड़ता में बिताया, तुम मिले तो लोकहित का, मार्ग तुमने ही बताया।

आपने पायी सफलता, पाप के भ्रम के हरण में, अंधता व कुरीतियों का जाल, कटवाया तुम्हीं ने,

नीति के सद्मार्ग पर, आरूढ़ करवाया तुम्हीं ने। प्रखरता, दृढ़ता भरी हर शिष्य, के शुभ आचरण में।

जिन्दगी भर खुद तपे, तब बात ऊष्मा की कही थी। त्याग कर सर्वस्य खुद, ने राह जनहित की गयी थी।

इसलिए था असर वाणी में, गिरा के अवतरण में॥

-माया वर्मा


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