कोई तरीका भी तो नहीं (Kahani)

November 1990

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रोमौरोला जब आइन्स्टीन से मिले तो उन्होंने प्रश्न किया कि जब भी आप अकेले होते हैं तब क्या सोचते हैं?

आइन्स्टीन ने उतर दिया स्वयं अपने को लेकर मैं प्रतिदिन यही सोच करता हूँ कि मेरे बाह्य और आन्तरिक जीवन निर्माण में समाज के अगणित व्यक्तियों का न जाने कितना योगदान है और इसी अनुभूति से उद्दीप्त मेरा अन्तःकरण छटपटाता रहता है कि मैं कम से कम इतना तो इस समाज को देकर जाऊँ, जितना मैंने अभी तक लिया है। समाज ऋण से उऋण होने का और कोई तरीका भी तो नहीं है।


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