बड़ा क्यों मान लिया (Kahani)

November 1990

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उस मूर्धन्य वैज्ञानिक ने अनेक विषयों की प्रयोगशाला विनिर्मित कर रखी थी। सहस्रों वैज्ञानिक बहुमूल्य यंत्र उपकरणों पर अन्वेषण-परीक्षण निरत थे।

विशप एक दिन अकस्मात् उसे देखने आ पहुँचे। संचालक ने सम्मान के साथ अपने प्रयोग और परिणाम बताते हुए कहा “ हो रहे आविष्कारों से मानवीय सुविधा और समृद्धि में बढ़ोत्तरी होगी।”

विशप ने आशंकित मन से पूछा- यदि वैज्ञानिक उपलब्धियों का दुरुपयोग होने लगा तो क्या सुविधाएँ बढ़ने के स्थान पर उलटा विनाश ही तो न खड़ा हो जायेगा?”

वैज्ञानिक ने नम्रतापूर्वक कहा सुविधाएँ बढ़ाना हमारा काम है और उसके दुरुपयोग को रोकने का वातावरण बनाना आपके समुदाय का धर्मतंत्र का”।

भयंकर तूफान से गेलीलो झील का पानी बाँसों ऊँचा उछलने लगा। नावें चल रही थीं वे बुरी तरह थरथराने लगीं। लहरों का पानी भीतर पहुँचने लगा तो यात्रियों के भय का पारावार न रहा।

एक नाव में एक कोने में कोई निर्द्वन्द्व व्यक्ति सोया पड़ा था। साथियों ने उसे जगाया। जग कर उसने तूफान को ध्यानपूर्वक देखा और फिर साथियों से पूछा “आखिर इससे डरने की क्या बात है? तूफान भी आते ही है मनुष्य मरते ही हैं। इससे क्या ऐसी अनहोनी बात हो गई जो आप लोग इतनी बुरी तरह हड़बड़ा रहे हैं?

भयभीत यात्रियों के उतर की प्रतीक्षा किये बिना उस अलमस्त में आँखें बन्द कीं और अपने भीतर की झील में उतर कर कहा “शान्त हो जा मूर्ख।”

सहमे हुए नटखट बच्चे की तरह तूफान रुक गया। नाव का हिलना बन्द हुआ कि यात्रियों ने चैन की साँस ली। उस अलमस्त यात्री ने साथियों से पूछा-दोस्तों अब बताओ विश्वास बड़ा है कि नहीं। तूफान को तुमने उससे भी बड़ा क्यों मान लिया? यह फक्कड़ था “जीसस क्राइस्ट”।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118