तथागत का परम प्रिय शिष्य था- आनन्द। उस दिन में बसने और धर्मप्रचार करने के लिए भेजा जा रहा था। सभी ने अपने परिचित एवं सुविधापूर्ण स्थान चुन लिए। आनन्द ने सुनापरान्त नामक गाँव चुना। वह दुष्ट दुर्जनों के लिए प्रख्यात था। वहाँ कोई साधु पैर जमा ही नहीं सका था। सभी ने आश्चर्य से पूछा-ऐसी विपरीत परिस्थितियों वाले स्थान को अपना कार्य क्षेत्र आप क्यों चुनते हैं?
आनन्द ने कहा-चिकित्सक को वहाँ जाना चाहिए जहाँ भयंकर महामारी फैली हो। अपनी सुविधा और सुरक्षा की बात सोचने पर चिकित्सक और साधु दोनों ही हेय बनते हैं। दोनों के स्तर की परीक्षा तो कठिन परिस्थितियों में ही होती है।
भयंकर अकाल पड़ा। इन्द्रदेव ने कुपित होकर बाहर वर्ष तक पानी न बरसाने की घोषणा की।
यह अशुभ समाचार सुना तो सभी किसानों ने, पर वे विचलित न हुए। उनने अपने हल-बैल खेत जोतने में उसी प्रकार लगाये रखे।
इन्द्र को भारी कौतूहल हुआ कि यह लोग निरर्थक श्रम क्यों कर रहे हैं। उनसे रह न गया, कारण पूछने के लिए सामान्य वेश में किसानों के पास पहुँचे।
पूछा-जब बारह वर्ष वर्षा नहीं होने वाली है तो फिर लोगों के खेत जोतने का क्या लाभ?
किसानों ने धैर्यपूर्वक उत्तर दिया। बारह वर्षों तक हम और हमारे बैल निष्क्रिय बैठे रहें तो कृषि कार्य का अभ्यास ही गँवा बैठेंगे। इन्द्र अपना काम करे। हम अपना काम क्यों छोड़ें?
इतनी निष्ठा के सामने इन्द्र को झुकना पड़ा। उनने अपना विचार बदल दिया और वर्षा सदा उसी क्रम से होने लगी।