प्रसिद्ध दार्शनिक रसेल को गम्भीर मुद्रा में देखकर एक मित्र ने उन की सोच का कारण पूछ ही लिया। रसेल ने कहा कि मैं सोच रहा हूँ कि मेरे साथ ऐसा क्यों होता है कि मैं जब पादरियों के उपदेशों को सुनता हूँ तो लगता है कि इस पृथ्वी पर सुख की कल्पना एक दम असंभव है। किन्तु इसके विपरीत जब मैं अपने बाग के माली को देखता हूँ तो धारणा गलत सिद्ध हो जाती है। तब मैं महसूस करता हूँ। मेरे पास सब सुख सुविधाओं के साधन हैं फिर भी मैं दुखी हूँ और माली के पास में मेरे मुकाबले उतना कुछ भी नहीं फिर भी वह मेरी अपेक्षा अधिक प्रसन्न, और सुखी दिखाई देता है। बताओ सुखी कौन है मैं या मेरा माली? मित्र ने उतर दिया कि सुख वस्तुओं में नहीं, अपनी विचारणाओं, मान्यताओं और दृष्टिकोण में है। दार्शनिक उत्तर पाकर सन्तुष्ट हो गया।