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Akhand Jyoti
Year 1990
Version 2
VigyapanSuchana
VigyapanSuchana
May 1990
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Page Titles
आत्म विस्तार ही सर्वोच्च धर्म
लोक-शिक्षण की कथनी व करनी
जाग्रत भावनाओं का युग अब निकट ही
जब धधक उठी अंतः में ज्वाला
आइए! देखें विचारों के रंग एवं रूप को
सुख वस्तुओं में नहीं, अपनी दृष्टिकोण में है (kahani)
आचार्य, जो दधीचि परमात्मा से जुड़ गए
स्रष्टा का सर्वोपरि अनुदान-प्रतिभा
इन्द्र को झुकना पड़ा (kahani)
अगले दिनों होगा संगीत से उपचार
आत्मिक प्रगति का प्रथम सोपान जीवन शोधन
सुकरात को अपने ज्ञान का अहंकार नहीं (kahani)
देवता, जिसकी भटकन छूटी
‘काम’ एक उल्लास, एक दिव्य प्रेरणा
मुक्तिसेना के जन्मदाता धर्म गुरु बूथ
विचारधारा का प्रगतिशील परिष्कार
निष्ठुरों को उपहार नही दंड देना उपयुक्त होगा (kahani)
क्या सुन्दर? क्या असुन्दर?
अपने चिकित्सक एवं स्वयं
ध्यान योग की व्यावहारिकता
ईमानदारी का श्रम (kahani)
गीता को जिनने जीवन में उतारा
सहकार पर ही टिका है मानवी अस्तित्व
पलायन लोकसेवी को शोभा नहीं
रहने के लिए उचित क्षेत्र का चयन किया जाए
जाग्रत संवेदना ने चैन से नहीं बैठने दिया
दृष्टिकोण के अनुरूप मान्यता
मधु संचय
अपनों से अपेक्षा (kavita)
आगे कदम बढ़ाओ (kavita)
कः विद्या?
धर्म संस्कृति के सच्चे उपासक प्रज्ञाचक्षु विरजानन्द
पत्नी गुरु-पति शिष्य
हृदय क्षेत्र की अंतर्गुहा
आक्रोश और प्रतिशोध का कुचक्र
नवसृजन का आधार-विद्या विस्तार
अपनों से अपनी बात
विशेष ज्ञातव्य- - विराट स्तर पर साइकिल तीर्थयात्रा का आयोजन
VigyapanSuchana
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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