अपने चिकित्सक एवं स्वयं

May 1990

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रोगों बैक्टीरिया, वायरस जैसे जीवाणु विषाणुजनित दुष्प्रभावों की रोकथाम कर सकती है, किन्तु मानसिक तनाव से उत्पन्न रुग्णता का उपचार दवाओं द्वारा संभव नहीं इसके लिए मनोवैज्ञानिक उपाय-उपचार ही कारगर सिद्ध हो सकते हैं।

विख्यात मनोचिकित्सक डॉ. नार्मन विन्सेन्ट पील ने अपनी पुस्तक ‘द् पॉवर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग‘ में समग्र स्वास्थ्य संरक्षण का उपाय इस प्रकार बताया है जिसे अपना सकना सभी के लिए सहज संभव है। उनके अनुसार मानसिक भावनात्मक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि सदैव प्रसन्नता-प्रफुल्लता की मनःस्थिति बनाये रखी जाय। हृदय को घृणा से और मन को भय और चिन्ता से मुक्त रखा जाय। परिस्थितियों की प्रतिकूलता को यह मानकर चलना चाहिए कि वह सा एक सी बनी रहने वाली नहीं, वरन् निश्चित रूप से जाने वाली कुहासे की परत भर है। विधेयात्मक चिंतन क्रम के अनुरूप अपनी गतिविधियों का निर्धारण कर लेने पर आधी से अधिक बीमारियों विपन्नताओं का समाधान को जीवन में ताक-झाँक करने का अवसर तक नहीं मिलता। तनाव से बचने के यह सहज उपचार है।

वस्तुतः आवेश एवं तनाव जैसी-भावात्मक विकृतियों का उपचार मनुष्य को स्वयं करना पड़ता है। चिकित्सक मात्र परामर्श भर दे सकते हैं। अतः जिन्हें इस तरह की शिकायत हैं, उन्हें परिस्थितियों को अपने अनुकूल ढालना चाहिए या स्वयं परिस्थिति के अनुरूप ढल जाना चाहिए। दोनों में से एक भी संभव न हो तो नया काम नया संपर्क एवं नया वातावरण ढूँढ़ना चाहिए। सबसे अच्छा यह है हम परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाना सीखें और खिलाड़ी की भावना से अनुकूलता-प्रतिकूलता का सामना करते हुए हँसती-हँसाती जिन्दगी जिएँ। मनःस्थिति को संवार लेने पर न केवल परिस्थितियों काबू में आ जायेगी, वरन् आरोग्य संवर्धन का, प्रगति का लाभ भी हाथों-हाथ उपलब्ध होता चला जायेगा।


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