अगले दिनों होगा संगीत से उपचार

May 1990

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संगीत के सुनियोजित प्रयोग से रोगनिवारण, भावनात्मक परिष्कार, स्फूर्तिवर्धन एवं प्रतिभाउन्नयन जैसे महत्वपूर्ण लाभ संभव है। इस माध्यम से आनन्द भरी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर संवेदनाओं को भाव तरंगों से जोड़ कर मनःस्थिति में वाँछित परिवर्तन लाया, जा सकता है। वनस्पतियों एवं प्राणियों के अभिवर्धन एवं कार्यक्षमता बढ़ाने के कितने ही सफल प्रयोग भी हुए है। जब यह प्रमाणित हो चुका है कि अचेतन सभी पर संगीत का चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।

संगीत के माध्यम से जो ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, वे स्नायु प्रवाह पर वाँछित प्रभाव डालकर न केवल उनकी सक्रियता को बढ़ाती है, वरन् विकृत चिन्तन को रोकती और मनोविकारों को मिटाती है। स्वर शक्ति की इस सृजनात्मक सामर्थ्य की ओर अब वैज्ञानिकों का भी ध्यान आकृष्ट हुआ है। जहाँ एक ओर अब शब्दचालित यंत्र उपकरण, बम एवं रोबोट आदि तैयार हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रदूषण निवारण, मनोविकार शमन, कायिक-रोगनिवारण में ध्वनि-तरंगों का संगीत स्पन्दन का प्रयोग हो रहा है।

मानवी मन-मस्तिष्क पर पड़ने वाले संगीत के प्रभाव विषय पर वैज्ञानिकों ने गहन अनुसंधान किया है और पाया है कि दोनों के मध्य घनिष्ठ संबंध है। मूर्धन्य मनःचिकित्सकों एवं संगीत विशेषज्ञों ने इस तथ्य की पुष्टि के लिए कितने ही प्रयोग किये हैं। निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि स्वर माधुर्य के प्रभाव से ध्यान की गहराई में प्रवेश करने जैसी मानसिक अवस्था का निर्माण होता और मस्तिष्क अल्फा-स्टेट की स्थिति तक जा पहुँचता है। इसका प्रतिफल शान्तचित्तता एवं आन्तरिक प्रफुल्लता के रूप में हस्तगत होता है, साथ ही मनोविकृतियों से पीछा छूटता है। परीक्षणों में पाया गया है कि तेज शोर करने वाले वाहनों एवं जेट विमानों के चालक स्नायविक उत्तेजना के प्रायः शिकार बनते रहते हैं। उनकी नाड़ी चढ़ी रहती है। किन्तु जब उन्हें उपयुक्त राग-रागिनियों के संपर्क में रखा गया तो वे पूर्णतः स्वस्थ हो गये। मन-मस्तिष्क में नवीन स्फूर्ति का संचार होते देर न लगी उक्त अनुसंधान कर्ताओं ने इसे मानवी चेतना को मथ डालने वाली विश्व की एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण शक्ति माना है।

हृदय स्थल को मानवी भाव संवेदनाओं, विभूतियों एवं सद्गुणों का केन्द्र माना गया है। इस अंतस्तल पर संगीत का असाधारण प्रभाव पड़ता है। डॉ. बारबरा ब्राउन के अनुसार हृदय स्पंदन की गति संगीतकार से अपना तालमेल बहुत जल्दी बिठा लेती है। प्रयोग परीक्षणों में देखा गया है कि संगीत के मधुर प्रकंपन हृदयगति को परिवर्तित कर देते हैं। इतना ही नहीं स्वर लहरियों के साथ उसे थिरकते हुए भी देखा गया है कि संगीत के मधुर प्रकंपन हृदयगति को परिवर्तित कर देते है। इतना ही नहीं स्वर लहरियों के साथ उसे थिरकते हुए भी देखा गया है। स्वीडिश वैज्ञानिक डॉ. हिल ने इस संदर्भ में पर्याप्त खोजें की हैं। वैज्ञानिक उपकरणों यथा पॉलीग्राफ आदि के माध्यम से हृदय के विद्युतीय एवं ध्वनि संकेतों की रिकॉर्डिंग करने के पश्चात उसने निष्कर्ष निकाला है कि ३० मिनट तक यदि कर्णप्रिय ध्वनि तरंगों को सुनते रहा जाय तो हृदय की गति क्रमशः धीमी पड़ती जाती है और एक स्थिति ऐसी भी आती है जब श्रोता ध्यानस्थ हो जाता है इसकी तुलना उनसे योगियों के अनाहतनाद साधना द्वारा प्राप्त समाधि अवस्था से की है।

मिडिल सेक्स हॉस्पिटल, लन्दन के सुप्रसिद्ध शल्य चिकित्सक डॉ. जे.डी. टॉयलर ने इस विधा को अपनाकर मूर्च्छा की स्थिति में पहुँचे हुए व्यक्तियों का उपचार करने में आशातीत सफलता पाई है। उनका कहना है कि भविष्य में इस विधा को अपनाकर चिकित्सा जगत में एक नवीन क्राँति की जा सकेगी और हृदय तथा मस्तिष्क संबंधी विकृतियों को दूर किया जा सकेगा।

संगीत मनुष्य सहित प्रत्येक जीवधारी के मस्तिष्क हृदय एवं स्नायुतंत्र पर आश्चर्यजनक प्रभाव डालता है। मानवी प्रकृति और मनःस्थिति के अनुरूप उत्कृष्टता की पक्षधर भाव सम्पन्नता से युक्त संगीत विधा यदि विकसित हो सके, तो उससे न केवल मानसिक प्रसन्नता एवं शारीरिक क्षमता-सक्रियता प्राप्त हो सकेगी, वरन् स्वास्थ्य सन्तुलन के साथ ही आन्तरिक विभूतियों-अतीन्द्रिय सामर्थ्यों को भी हस्तगत किया जा सकेगा।


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