आगे कदम बढ़ाओ (kavita)

May 1990

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नहीं मिल सके साथ किसी का तो भी मत घबराना संकल्पों की दृढ़ता लेकर, निर्भय कदम बढ़ाना॥

अनगिन तारे एक चन्द्रमा के आगे फीके होते, एक सूर्य से भूमण्डल में प्राण-प्रकाश सभी लेते।

एक दीप की लौ से काली माक्स अरे सहम जाती, एक सिंह की तीव्र गर्जना से यह धरा दहल जाती।

सूर्य, चंद्र, दीपक जैसा तुम साहस तो दिखलाना। संकल्पों की दृढ़ता लेकर, निर्भय कदम बढ़ाना॥

पवन पुत्र हनुमान एक ने लंका पूर्ण जलाई थी, एक मात्र अंगद के आगे भरी सभा थर्राई थी।

अभिमन्यु के आगे सारे कौरव वीर विवश होते, उसके कौशल के सम्मुख तो सारे शस्त्र व्यर्थ होते।

ऐसा ही अद्भुत गौरवमय तुम इतिहास बनाना। संकल्पों की दृढ़ता लेकर, निर्भय कदम बढ़ाना॥

युग संधि का दुर्लभ अवसर, आह्वान करता महाकाल, देव संस्कृति की रक्षा कर पुनः पहन लो तुम जयमाल।

सृजन सूर्य बन नव प्रभात का, युग का काला तम हरना एकाकी हो पर चाह नहीं, एकाकी ही आगे बढ़ाना॥

अम्बर में एकल उज्ज्वल ध्रुव तारे सा पद पाना। संकल्पों की दृढ़ता लेकर, निर्भय कदम बढ़ाना॥

-सुरभि कुलश्रेष्ठ


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