रहने के लिए उचित क्षेत्र का चयन किया जाए

May 1990

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हिंस्र पशुओं की बहुलता वाले क्षेत्र में प्रवेश करने पर मन अनायास ही भयभीत होने लगता है। भले ही उन आक्रान्ताओं से सीधे पाला न पड़ा हो। भले ही उनके आक्रमण की घटना घटित न हुई हो, फिर भी आतंकवादी अपनी विशिष्टता वाला वातावरण बनाते हैं और उसमें ऐसे तत्व सूक्ष्म रहते हैं जो भय की मानसिकता बनायें, आशंका या आतंक अपने समीपवर्ती क्षेत्र में छोड़ें और उस क्षेत्र में जिनकी भी पहुँच हो उन्हें संत्रस्त या भयभीत करें।

हर व्यक्ति या क्षेत्र में अपनी अपनी प्रभाव शक्ति होती है। बुरों का जमघट जिस भी क्षेत्र में होगा वहाँ उसी स्तर का वातावरण बनते और प्रभावित करते देखा जाता है। चोर उचक्के अपने बचाव और सुविधा के अनुरूप क्षेत्र तलाश कर लेते है, और छिपने, छिपाने की सुविधा का लाभ उठाते हुए वहाँ एक प्रकार से अड्डा जमा लेते हैं। सहयोगियों का आदान प्रदान भी उन्हें मिल जाता है। फलस्वरूप उनका दुस्साहस वहाँ फलता फूलता है और अपने प्रभाव से उस क्षेत्र को अपने स्तर का बना देता है।

ऐसे अवांछनीयता के केन्द्र बने हुए क्षेत्र से होकर गुजरने वाले तक अनायास ही भयभीत और आतंकित होते देखे गये हैं। भले ही उन्हें उस क्षेत्र में छिपे हुए दस्युओं से सीधा पाला न पड़े। मुठभेड़ का अवसर न आवे, फिर भी सूक्ष्म चेतना उससे प्रभावित होती है और आतंक से समूचे परिकर को प्रभावित करती है। ऐसे क्षेत्रों से होकर गुजरते हुए भी भय लगता है।

वृक्ष वनस्पतियों में भी अपने-अपने प्रकार की विशेषताएँ होती हैं। कुछ न आरण्यकों का वातावरण ऐसा शुद्ध सात्विक होता है कि ऋषि मुनियों को भी उस क्षेत्र में निवास करने में साधना के लिए उस क्षेत्र का चयन करने में प्रसन्नता होती है। उच्चस्तरीय विचारधारा अनायास ही उठती और अन्ततः उस क्षेत्र को प्रभावित करती रहती है। वे वहाँ रहकर प्रसन्नता और सफलता अनुभव करते हैं। बिना किसी उद्वेग के वहाँ अपने सहचरों और शिष्यों समेत निवास भी करते रहते हैं। यह लाभ किसी प्रत्यक्ष कारण से नहीं होता वरन् वहाँ का वातावरण ही ऐसा होता है जो प्रोत्साहित एवं प्रसन्न करने में अनायास ही सहायक होता है।

गौओं के बेड़े-उनके चरने एवं रहने के स्थान अपने में आरोग्यवर्द्धक विशेषताएँ उत्पन्न कर लेते हैं। वहाँ रहकर रोगियों को आरोग्य प्राप्त होता है, और मानसिक उत्कृष्टता में अभिवृद्धि होती है। अध्यात्म स्तर के वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए ऐसे क्षेत्र विशेष रूप से उपयुक्त पाये जाते हैं।

वनौषधियों में रोग निवारक आरोग्यवर्द्धक गुण होते हैं। चिकित्सक उनको संग्रह करते, अनुसंधान करके उपयोगिता की जाँच पड़ताल करते और चिकित्सा की सफल साधना कर पाते हैं। यह प्रत्यक्ष प्रतिफल की बात हुई परोक्ष रूप में अनुसंधान करने पर पाया गया है कि ऐसी वनौषधियों को उपजाने वाले क्षेत्र में कुछ समय निवास करने पर भी उन गुणों का लाभ उठाया जा सकता है। वहाँ की वायु में रहने वाली आरोग्यवर्द्धक विशेषता शरीर और मन को ऐसे लाभ पहुँचाती है जो उत्पन्न हुई औषधियों के सेवन से बहुत श्रम और समय के उपरान्त प्राप्त होती है।

नदी सरोवरों के संबंध में भी यही बात है। गंगाजल के सेवन से उपलब्ध होने वाले लाभों की जानकारी अनुभवियों को मिलती रहती है। इसके विपरीत बहुत स्थानों का जलवायु ऐसा होता है जिसमें रहने वालों को कुष्ठ जैसा रोग घेर लेता है और वहाँ उत्पन्न होने वाली वनस्पतियाँ तक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव छोड़ती हैं।

उपयोगी लाभदायक वस्तुओं की, क्षेत्रों की सभी को खोज रहती है। इस संदर्भ में इतना और ध्यान रखने योग्य है जहाँ भी रहा जाय वहाँ का दृश्य या अदृश्य वातावरण भी उपयुक्त हो। बिना ऐसी देखभाल के कहीं भी रहने लगना लगभग वही प्रभाव उत्पन्न करता है जो दुष्ट दुर्जनों के सान्निध्य में अथवा वाले क्षेत्र में रहने पर होता देखा गया है।


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