चेतना सत्ता की एक झलक, स्वप्नों के झरोखे से।

March 1988

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सपने सच्चे होते है और झूठे भी पर सामान्य जीवन में जो सपने दिखाई पड़ते है, उनमें से अधिकाँश में बेसिर पैर के दृश्यों की ही भरमार होती है। इनसे कैसे बचा जाए और सार्थक- सोद्देश्य-स्वप्न कैसे प्राप्त किया जाए? इस दिशा में विज्ञान अभी तक कोई सुनिश्चित हल नहीं दे सका है। हाँ, समय-समय पर इसमें शोधकार्य अवश्य हुए है। और शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष के आधार पर स्वप्न सिद्धान्त भी प्रतिपादित किये है, मगर इनमें से अधिकाँश ऐसे है। जिसमें स्वप्न संबंधी क्रियाविधि की ही चर्चा की गई है और मूल उद्देश्य को गौण रखा गया है।

किन्तु यस की “डी ला वार” प्रयोगशाला में इसी उद्देश्य को लेकर अनुसंधान किये जा रहे है। वहाँ के वैज्ञानिक निरंतर इस बात के लिए प्रयत्नशील है, कि मानवी सपने को नियंत्रित कर उच्चस्तरीय स्वप्न कैसे प्राप्त किये जांय। इस दिशा में उन्हें कतिपय सफलता मिली भी है। यही कार्य भारत में विशाखापट्टम की ड्रीम रिसर्च लेबोरेट्री में भी सम्पन्न हो रहा हे। रूस में सर्वप्रथम बिल्लियों पर प्रयोग कर यह जानने का प्रयास किया गया है कि सपनों के लिए मस्तिष्क का कौन सा अवयव जिम्मेदार है। इस क्रम में जब वैज्ञानिकों ने बिल्ली का ब्रेन स्टेम नष्ट किया तो पाया कि बिल्ली को स्वप्न आने बन्द हो गये। इस आधार पर उनने यह निष्कर्ष निकाला कि स्वप्न संबंधी भाग ब्रेन स्टेम ही है। इतना सुनिश्चित होने के पश्चात् अब वे मनुष्यों पर प्रयोग कर रहे है। उनका कहना है कि यही वह भाग है जिसका सीधा संपर्क समष्टिगत चेतना से होता है और वहीं से भविष्य संबंधी तरह तरह की सूचनाएं लाता है। शोधकर्ता वैज्ञानिक अब .... के लिए प्रयासरत है कि यदि सचमुच ही दिमा के किसी भाग स्वप्न के लिए उत्तरदायी है तो उसका सघन संपर्क वैश्व-चेतना से लगातार कायम कैसे रखा जा सकता है? ताकि सार्थक जानकारियाँ ग्रहण की जा सके। अनुसंधान अभी जारी है।

उधर ब्रिटिश मनोविज्ञानी क्रिस्टोफर इवान्स हॉल ही में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “लेण्डस्कैप ऑफ दि नाईट” में लिखते है कि “स्वप्न चैत्यावस्था में ही काम करना शुरू कर देते है। यह बात दूसरी है कि इसकी जानकारी हमें निद्रावस्था में मिल पाती है” उनका कहना है कि व्यक्ति यदि चाहे तो कठिन समस्याओं का हल इसके माध्यम से वह प्राप्त कर सकता है। इसका उपाय बताते हुए इवान्स कहते है कि समस्या पर यदि लगातार गहन चिंतन किया जाए और कुछ दिन पश्चात् उसका उत्तर निद्रावस्था में संकेत रूप में मिल जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसका समर्थन न्यूयार्क राकफेलर यूनिवर्सिटी के तंत्रिका विज्ञानी डॉ. जोनाथन पिन्सन ने भी किया है। वे अपनी “बेन एण्ड साइक” रचना में कहते है कि “प्रसुप्त मस्तिष्कीय क्षमता को यदि जगाया-उभारा जा सके, तो वह हमें न सिर्फ सपनों के माध्यम से अनागत की सूचना दे सकती है, वरन् पूर्ण चेतना की अवस्था में भी हम उससे उसी स्तर का कार्य ले सकते है”

शोध के दौरान दोनों अनुसंधानकर्ता एक ही निष्कर्ष पर पहुँचते है। शोधार्थी द्वय का विचार है कि स्वप्न, निद्रा का कोई आकस्मिक बाईप्रोडक्ट नहं हे, वरन् नींद की यह एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। दोनों ने जन्तुओं पर ही अपने अनुसंधान कार्य किये। इवाइन्स ने स्वप्न संबंधी तथ्य एक जलकौवे पर अध्ययन करके ढूंढ़ा। एक बार उनने देखा कि एक जलकौवा जलाशय में एक टाँग पर खड़ा सो रहा है। शोध का अच्छा अवसर देखा वह दबे पाँव कौवे के निकट गये उसे स्पर्श किया और धीमे स्वर में कहा -”क्या हो रहा है” तत्क्षण पक्षी जाग पड़ा, उसे खते का एहसास हुआ एक पल तक दोनों की आंखें चार हुई फिर वह पंख फड़फड़ाते उड़ पड़ा।

इवान्स का कहना है कि ऐसी खतरनाक स्थिति में कोई भी जंतु अथवा पक्षी स्वयं को नहीं रखना चाहेगा। फिर .... क्यों? उनने निष्कर्ष निकाला कि स्वप्न, केजियोलाँजी और जीवन का इतना आवश्यक अंग है कि पशु-पक्षी (विशेषकर उष्णरक्तीय) नींद की स्थिति में इसके स्वप्न के) बदले ऐसे खतरे उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

ज्ञातव्य है, स्वप्न सदा “रेम स्लीप” के दौरान ही आते है पर आस्ट्रेलियाई पिप्पिलिका पक्षी एकमेव ऐसा ज्ञात स्तनपायी है, जिसमें “रेम स्लीप” का सर्वथा अभाव होता है। इस जन्तु का अग्रमस्तिष्क अन्य स्तनपायी जन्तुओं की तुलना में अपेक्षाकृत बड़ा होता है। विन्सन इसी विलक्षणता में स्वप्न रहस्य छिपा मानते हे। उनका कहना है कि यद्यपि इस जन्तु में रेम स्लीप नहीं होती, किन्तु फिर भी वे इस क्षति की पूर्ति कर लेते है, क्योंकि ये ग्रतावस्था में स्वप्न देखते है। तात्पर्य यह कि कीट पक्षी अपने विशाल फ्रण्टल लोब का प्रयोग जानकारियों के सुसंगठन में तब करता है, जब वह पूर्ण से क्रिय और क्राशील होता है, जबकि दूसरे उष्णरक्तीय जन्तुओं को उसके लिए रेम स्लीप का इन्तजार करना पड़ता है। किन्तु यदि किसी कारणवश किसी व्यक्ति की रेम स्लीप में कोई व्यक्तिक्रम आ जाए तो क्या होगा? मनोविज्ञानी इवान्स कहते है कि इसके लिए ब्रेन को किसी नये सिरे की प्रोग्रामिंग करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। वह उस पहले के ही प्रोग्राम में कुछ आवश्यक फेर बदल कर अपना अभीष्ट पूरा कर लेता है। उदाहरण के लिए मादक द्रव्यों के सेवन करने वालों को लिया जा सकता है। ये द्रव्य उन्हें ऐसी गहन निद्रा की स्थिति में पहुँचा देते है कि वे भी भाँति स्वप्न नहीं देख पाते। जब वह स्थिति चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाती है (और व्यक्ति रेम स्लीप की दशा में बिलकुल ही नहीं पहुँच पाता) तो स्वप्न प्रक्रिया स्वतः चालू हो जाती है, जबकि व्यक्ति और उसका मस्तिष्क पूर्णतः सक्रिय और जागरूक अवस्था में होता है। परिणाम मतिभ्रम होता है। जैसा कि डेलीरियम टिमेन्स की स्थिति में शराबियों में देखा जाता है।

एक शरीरशास्त्री होने के नाते विन्सन ने अनेक वर्षों तक मस्तिष्क और उसकी संरचना व क्रिया का गहन अध्ययन किया है। इससे पूर्व तक शरीर में मन का स्थान अविज्ञान था, पर अपने श्रमसाध्य शोध कार्य के दौरान विन्सन ने मन का सही सही निवास शरीर में ढूंढ़ निकालने का दावा किया है। उनने मन का स्थान लिम्बिक सिस्टम के भीतर मान है। उनका कहना है कि यह तंत्र मन के प्रधान कार्यालय की तरह है, जो यह निर्णय करता है कि किन स्मृतियों, घटनाओं, आंकड़ों, बातों को सुरक्षित रखना है और किन्हें भुला देना है। विन्सन का मानना है कि यही स्वप्न प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है। वे कहते है कि महत्व के आधार पर जानकारियों की छंटनी स्वप्नावस्था में ही संभव है। इसके बिना नये पुराने अनुभवों का मिलन समागम संभव नहीं न ही दैनन्दिन जीवन में आवश्यक अल्पावधि स्मृति ही संभव है। यह सारा कार्य मानों किसी कंप्यूटर की प्रोसेसिंग यूनिट की तरह यहाँ होता रहता है।

विन्सन का कहना है कि यदि हम अपने अपनों को याद क्या यह अचेतन व्यक्तित्व हमारे कुछ काम आ सकता है। इससे व्यावहारिक कठिनाइयों का हल प्राप्त किया जा सकता है? दोनों शोधकर्मी इसका सकारात्मक जवाब देते है। उनके अनुसार सपने ग्रहण करने की यदि बहुत उच्चकोटि की क्षमता योग्यता रही तो व्यक्ति उनमें लाभ उठा सकता है और जीवन का अपेक्षाकृत अधिक आनन्द ले सकता है।

समय समय पर ऐसे व्यावहारिक सपनों द्वारा लोग जीवन की जटिल समस्याओं का कठिन प्रश्नों का हल पाते रहे है। मूर्धन्य मनीषी व गणितज्ञ। बर्जेण्ट रसेल ने अपने व्यक्तिगत जीवन संबंधी उलझनों का हल सपने में ही प्राप्त किया था, सुविख्यात लेखक राबर्ट लुईस स्टीवेन्सन अपनी इच्छानुसार अपने विचारों को सपने में देख लेते थे। अभी हाल ही में प्रकाशित प्रसिद्ध उपन्यासकार ग्राह्म ग्रीक की आत्मा “वेज ऑफ एस्केप” में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार सपनों की सहायता से वह एक गहरे षडयंत्र से बच सके।

विन्सन का कहना है कि हमारी मन के हृदय केन्द्र में ही अचेतन मन स्थित है। यह एक ऐसी सतत् क्रियाशील मानसिक संरचना है जो हमारे जीवन के अनुभवों से नोट लेती रहती है और इसकी प्रतिक्रिया वह अभिव्यक्ति की अपनी योजनानुसार साँकेतिक भाषा में प्रकट करती रहती है। रात में सपनों के माध्यम से यही प्रतिक्रिया अभिव्यक्त होती है। इवान्स ने भी सपनों को मानसिक जीवन का एक आवश्यक अंग माना है और कहा है कि अनागत भविष्य की जानकारियों का यह इतना विशाल भण्डार है कि यदि व्यक्ति चाहे तो इससे लाभान्वित हो सकता है।

विवेकानन्द ने अपनी “राजयोग” पुस्तक में लिखा है कि हम उन्हीं वस्तुओं-ध्वनियों को देख समझ सकते है, जिनकी आवृत्ति हमारी इन्द्रियों के समतुल्य हो। जिस प्रकार रेडियो प्रसारण विभिन्न फ्रीक्वेंसियों पर होता रहता है पर हम उन्हें सुन तभी पाते है, जब अपने ट्राँजिस्टर सेट में उन फ्रीक्वेंसियों को मिलाते है। ऐसा नहीं करने पर प्रसारण होने के बावजूद हम उन्हें सुन नहीं पाते। वे कहते है कि ठीक ऐसी ही स्थिति हमारे समक्ष प्रस्तुत होती है। हमारे इर्द गिर्द के वातावरण में अनेक सूक्ष्म सत्ताएं अनेक सूक्ष्म जीव और भावी घटनाओं के ब्लूप्रिन्ट हो सकते है, किन्तु हम उन्हें देख इसलिए नहीं पतों कि हमारी प्राण चेतना के स्पन्दन व उसकी आवृत्ति उनसे मेल नहीं खाती। योगी लोग देखते देखते गायब हो जाते है क्योंकि वे अपने प्राण की आवृत्ति को उच्चतर कर लेते हैं जो हमारी इन्द्रियों को पकड़ से परे होने के कारण हमें दिखाई नहीं पड़ते।

सामान्य निद्रा की स्थिति में प्राण का कम्पन कुछ बढ़ जाता है, फलतः हमें ऊल-जलूल सपनों के मध्य कुछ ऐसे उच्चस्तरीय सपने भी दीख जाते है, जो भावी जीवन की किसी महत्वपूर्ण घटना की ओर संकेत करते है। ज्ञातव्य है कि घटनाएं घटित होने से बहुत समय पूर्व प्रकृति के गर्भ में आ जाती है। यदि प्राण की गति को नियंत्रित करने की विध हस्तगत की जा सके, तो व्यक्ति जाग्रत अवस्था में भी उद्देश्यपूर्ण सपने देख सकता है। साधन के माध्यम से योगी इसी स्थिति को प्राप्त करते है और भावी जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को जानने में सफल होते है। ध्यानयोग भावयोग एवं साधन के उच्चतर सोपानों से अचेतन, अवचेतन को जगाकर वह सब कुछ हस्तगत किया जा सकता है जो भविष्य के गर्त में छिपा पड़ा है, वहाँ पक रहा है। यह विधा पूर्णतः विज्ञान सम्मत है।


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