प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. क्रोनिन बड़े गरीब थे। डॉक्टर बनकर वे धनवान हो गये। किन्तु उनका मन पैसे में पड़ गया। उनकी पत्नी ने कहा-”हम गरीब ही ठीक थे कम से कम दिल में दया तो थी। वे उसे खोकर कंगाल हो गये”। डॉक्टर क्रोनिन राह पर आ गये। सच है धनी धन से नहीं होते, धनी तो मन से होते हैं। सम्पन्नों के साथ तुलना करते और अपने स्वरूप को स्वल्प मान कर आत्म-हीनता की ग्रन्थियों से ग्रसित होते है, किन्तु जिन्हें सही ढंग से सोचना आता है वे पिछड़ों से अपनी तुलना करते है और सोचते है कि जो उपलब्ध है वह भी इतना अधिक है कि उस पर गर्व किया जा सके और मोद मनाया जा सके।
दृष्टिकोण तुच्छ और निकृष्ट रहने पर अपनी स्थिति नाटकीय जैसी बन जाती है। पर उसमें सुधार होते ही चारों और स्वर्ग बिखरा दिखता है।