सूक्ष्म शरीर के अविज्ञात क्रिया कलाप

March 1988

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क्या यह संभव है कि कोई व्यक्ति सशरीर कहीं और उपस्थित हो एवं उसके माध्यम से कहीं ओर किसी घटनाक्रम को घटते कई व्यक्तियों ने देखा हो व स्वयं वह .... उसकी स्वीकारोक्ति कर रहा हो? यह एक ऐसा प्रसंग है जिस पर काफी समय से वैज्ञानिक विवाद करते रहे व व्यक्तियों में उलझते रहे है। फिर भी इसकी यथार्थता को स्वीकारने में वे असफल रहे है।

हम आर्षग्रन्थों में, पौराणिक मिथकों में ऐसे कई प्रसंग व मानवों, ऋषियों, महापुरुषों से जुड़ पढ़ते आ रहे है जिसमें यह वर्णन है कि एक ही व्यक्ति को एक ही समय दो से अधिक स्थानोँ पर एक साथ उपस्थित बताया गया है। क्या यह कपोल कल्पना मात्र है? इस पर परामनोविज्ञान, ह्यविज्ञान के अध्येता अपना निष्कर्ष प्रकट करते हुए कहते है कि यह सूक्ष्मशरीर को सत्ता का चमत्कार ही है जो .... ओ.बी.ई. (आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरीएन्स) एवं .... प्रवो के घटना क्रम देखते त्रव सुनते है। इतिहास .... पृष्ठों में ऐसी कई घटनाएं पृष्ठाँकित है।

घटना 18 जुलाई 1896 की है। न्यूयार्क के एक न्यायालय में विलियम मैक्डोनाल्ड नामक एक व्यक्ति पर मुकदमा चलाया गया। आरोप यह था कि 15 अप्रैल के .... मेनहैटन शहर में साँय 5 बजे कुछ व्यक्तियों पर प्राणघातक हमला करके उन्हें घायल कर दिया। इसकी विपक्षी रूप में अभियोग पक्ष ने चार गवाह भी पेश किये, उनमें शहर का ईमानदार और सत्यनिष्ठा समझा जाने वाला एक व्यक्ति भी था।

दूसरी ओर प्रतिपक्ष ने कई साक्षी प्रस्तुत कर न्यायालय ने यह बताया कि उक्त दिन उक्त समय अभियुक्त मेनहेटन पर पाँच मील दर ब्रुकलीन उपनगर के एक थियेटर में कुख्यात हिपनोटिस्ट डॉ. ह्वाइनर का “माध्यम” बना करोड़ों व्यक्तियों के सामने संज्ञा शून्य पड़ा था। फिर यह से संभव है कि वह दूसरे शहर में आकर हत्या करे?।

ज्यूरी के सामने जटिल समस्या थी। दोनों ही पक्ष अपराधी को एक ही दिन एक ही समय दो भिन्न स्थलों में उपस्थित बता रहे थे, जो सर्वथा असंभव था। निदान स्वरूप डॉ. ह्वाईनर को बुलाया गया। डॉ. ह्वाईनर तत्कालीन समय में सम्मोहन विद्या के निष्णात् माने जाते थे। न्यायालय ने उनसे सप्रश्न किया कि क्या वे मैक्डोनाल्ड को जानते है? उन्होंने उत्तर में कहा- ‘‘हाँ मैक्डोनाल्ड एक अच्छश्रा माध्यम है और उक्त दिन वह उस पर सम्मोहन विद्या के कुछ प्रयोग कर रहा था “ “ क्या ऐसी स्थिति में सम्मोहित व्यक्ति का साक्ष्य शरीर कहीं अन्यत्र भी प्रकट हो सकता है?” ज्यूरी का अगला प्रश्न था। ह्वाईनर ने कहा “ऐसा संभव है।”

किन्तु न्यायालय को इतने से ही संतोष नहीं हुआ। उसने बचाव पक्ष से अपराध जगत के इतिहास में किसी ऐसी घटना के पक्ष में दिये गये फैसले का सबूत माँगा। प्रतिपक्ष ने रिकार्ड की पुरानी फाइल से एक ऐसा ही मामला ढूंढ़ निकाला। बात सन् 1774 की है 12 सितम्बर रविवार के दिन स्थानीय चर्च के फादर अलफान्सर लिगोरी प्रातः प्रवचन देने के लिए तैयार हो रहे थे अचानक कुर्सी से टकरा कर गिर पड़े और बेहोश हो गये। बड़ी मुश्किल से शाम तक होश में आये तो अपने विश्वास पात्र शिष्यों से कहने लगे कि वे बिलकुल स्वस्थ है और अभी अभी रोम से आ रहे है। उन्होंने आगे बताया कि रोम के पोप को उनने जहर दे दिया है। शिष्यों ने समझा कि शायद फादर सपने की बात कर रहे हो, अतः उनने उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया, किन्तु कुछ दिनों बाद जब पोप के संबंधियों ने फादर अलफान्सर पर हत्या का मुकदमा चलाया, तब शिष्यों को विश्वास हुआ कि फादर जो कुछ कह रहे थे, वह सच था, मगर उन्हें आश्चर्य इस बात कहा था कि शरीर से यहाँ रहते हुए भी सैकड़ों मील दूर जाकर उन्होंने हत्या कैसे की?

इस घटना की सुन कर ज्यूरी के सदस्यों ने वादी प्रतिवादी दोनों पक्षों को सही माना पर अपराधकर्मी मैक्डोनाल्ड को यह कह कर बरी कर दिया कि अपराध सूक्ष्म शरीर ने किया है, अतः उसका दण्ड स्थूल शरीर को नहीं दिया जा सकता।

यह सच है कि सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से पृथक्करण संभव है और इसके माध्यम से विश्व के किसी भी कोने का क्षण मात्र में भ्रमण किया जा रसकता है, मगर दैनिक जीवन में निद्रा की स्थिति में घटने वाली इस घटना का स्मरण अधिकाँश लोग नहीं रख पाते, फलतः विस्मय की दृष्टि से देखते और अचम्भा करते है। रहस्यवाद में इस घटना को पृथक्करण, बाह्यकरण मूर्तकरण अथवा आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियन्स (शरीर से बाहर परिभ्रमण) जैसे अनेकानेक नामों से जाना जाता है।

इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि चूँकि सूक्ष्म शरीर अथवा एस्ट्रल बॉडी में चेतना और अनुभूति के दोनों गुण होते है, अतः पृथक्करण की घटना जब घटती है, तो अस्थायी रूप से स्थूल शरीर अचेतन की स्थिति में आ जाता है और ठीक इसी समय भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर में चेतना और अनुभूति का स्थानान्तरण हो जाता है। किन्तु रहस्यवादियों का कहना है कि ऐसी स्थिति में भी दोनों शरीरों के बीच सदा एक सूक्ष्म संबंध बना रहता है। दोनों को एक दूसरे से जोड़ने वाला यह संपर्क सूत्र “एस्ट्रल कार्ड” कहलाता है। प्रायः ऐसी घटनाएं प्रकाश में आती रहती है, जब किसी दुर्घटना प्रकाश में आती रहती है, जब किसी दुर्घटना अथवा आपरेशन के दौरान व्यक्ति अपने ही निष्क्रिय स्थूल शरीर को देखता रहता है अथवा देखने की अनुभूति होती है। ऐसा एस्ट्रल बॉडी के पंच भौतिक शरीर से पृथक्करण के कारण होता है। एस्ट्रल प्रोजतेक्शन की यह घटना योगियों अथवा आध्यात्मिक पुरुषों के साथ घटने वाली उस घटना से सर्वथा भिन्न है, जिसमें आध्यात्मिक शक्तिसम्पन्न व्यक्ति एक समय में विभिन्न स्थलों पर प्रकट होकर विभिन्न प्रकार के काम करते देखे जाते है “भारत के संत महात्मा” पुस्तक में ऐसे कई घटनाक्रम दिए गए है।

सामान्य परिस्थितियों में भी स्वतः बहिर्गमन की यह घटनाएं घटती है पर यह कब और कैसे घटित होती है। यह अविज्ञात है। कुछ व्यक्तियों में यह घटना सतत्! स्वतः होती रहती है। विशेषज्ञों का विश्वास है कि इसमें व्यक्ति के अनुवाँशिक कारक भी जिम्मेदार हो सकते है। रहस्यवादियों का कहना है कि शैशवावस्था और अत्यन् बुढ़ापे की स्थिति में एस्ट्रल बॉडी और स्थूल शरीर परस्पर पूरी तरह बंधे नहीं होते, उनके बीच कुछ विलगाव होता है। यही कारण है कि इन स्थितियों में बोली अस्पष्ट व तुतली होती है तथा विभिन्न अंगों का पारस्परिक तालमेल भी ठीक ठीक नहीं बन पड़ता, क्योंकि एस्ट्रल शरीर पूरी तरह नियंत्रण में नहीं होता। इसी प्रकार बीमारी, उपवास थकान, श्रम, तपश्चर्या के दौरान जब जीवनी शक्ति धक जाती है, तो एस्टल शरीर अपने बन्धनों से ढीला हो जाता है और भौतिक शरीर से बाहर आ जाता है। मादक द्रव्यों के सेवन से भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है गहन एकाग्रता, प्रबल इच्छा, दारुण दुःख, व मरणासन्न स्थिति में भी दोनों शरीरों का संपर्क-सूत्र कमजोर पड़ जाती है जिसमें एस्ट्रल बॉडी आँशिक अथवा पूर्णरूप से स्थूल शरीर से पृथक हो सकता है। मृत्यु से ठीक पूर्व अथवा किसी गंभीर संकट की घड़ी में एस्ट्रल शरीर व्यक्ति व किसी घनिष्ठ संबंधी के समक्ष प्रकट होकर इसकी सूचना उसे दे सकता है। इस क्षेत्र के शोधकर्ताओं का कहना है कि एस्ट्रल शरीर का बहिर्गमन कोई असामान्यता अथवा अस्वाभाविक घटना नहीं है, हर व्यक्ति के जीवन में यह घटित होता रहता है। यह बात दूसरी है कि अधिकाँश व्यक्ति इसे याद नहीं रख पाते, सिवाये बेसिर-पैर सपनों के।

एस्ट्रल बहिर्गमन शुरू से अन्त तक पूर्ण चैतन्य रह करा भी संभव है, पर यह कुछ कठिन है। इस दौरान वह अनुभूतियों में भी काफी भिन्न देखी गयी है।

सामान्य परिस्थितियों में इस प्रकार का बहिर्गमन .... की स्थिति में होता है। कुछ घण्टे की नींद के बाद व्यक्ति को ऐसा अनुभव होता है, जैसे वह धीरे धीरे जाग रहा है किन्तु उसे अपनी स्थिति और अवस्थिति का भान न होता। कुछ समय तक वह स्वयं को निश्चल अनुभव करता है। इसके बाद उसका एस्ट्रल शरीर हवा में अनुप्रस्थ रुख से ऊपर उठने लगता है। तत्पश्चात् धीरे - धीरे उस स्थिति ग्रहण कर लेता है और वहाँ से दूर जाने की तैयारी करने लगता है। इस दशा में अभौतिक शरीर जो अब जड़ जैसी अवस्था में था, चैतन्य बनने लगता है। चेतना स्थूल शरीर की उसमें प्रवाहित होती है। अधिक मामलों में एस्ट्रल बॉडी के बहिर्गमन और भौतिक शरीर में फंसके लौटने से पूर्व की मध्यावधि में “ब्लेकआउट अथवा चेतना” की एक कल्पकालिक स्थिति भी आती है।

इस आयाम में सब कुछ अत्यंत सुस्पष्ट होता है। यहाँ कि सामान्य थान भी विशेष प्रभायुक्त दीखते हैं। बाकी वास्तविक संसार अपेक्षाकृत अवास्तविक अस्पष्ट प्रतिबिम्ब जैसा प्रतीत होता है। ज्ञान तंतु अधिक संवेदनशील उठते है एवं बोध क्षमता बढ़ जाती है। शारीरिक दोष समाप्त हो जाते है। एस्ट्रल शरीर के आयाम में काल स्थान और द्रव्य का अर्थ पूरी तरह बदल जाता है। इस स्थिति में बस शरीर के लिए फिर सारे व्यवधान, सारी विघ्न–बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। यह बन्द दरवाजे से निकल सकता है, हजारों मील की दूरी पलक झपकते तय कर सकता है। चूँकि यह शरीर सूक्ष्म होता है, अतः भौतिक संसार में यह कुछ विशेष अवसरों पर ही लोगों को दिखाई पड़ता है।

साधन द्वारा शक्ति अर्जित कर के भी एस्ट्रल बॉडी को भौतिक शरीर से पृथक कर उस आयाम में पहुँचा जा सकता है एवं अन्य आयामों में निवास कर रह सूक्ष्म सत्ताओं से संपर्क साधा जा सकता है।

बहिर्गमन के बाद कुछ समय पश्चात् जब सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर में वापस लौटता है, तो स्थूल शरीर की वेदना इसी के साथ लौट आती है। सामान्यतः यह घटना इतने शान्त और सहज रूप में घटित होती है कि व्यक्ति को इसका आभास तक नहीं मिल पाता और कुछ क्षण तक वह अचेतन अथवा निद्रा की स्थिति में ही पड़ा रहता है। किन्तु इस समय यदि यकायक कोई तीक्ष्ण ध्वनि उत्पन्न की जाए, अथवा सोते व्यक्ति को जोर से झकझोरा जाए, तो एस्ट्रल कार्ड में तीव्र हलचल उत्पन्न हो जाती है और इसी के साथ सूक्ष्म शरीर शीघ्रता से स्थूल शरीर में प्रवेश कर जाता है, जिससे भौतिक शरीर को काफी कष्ट पहुँचता है और व्यक्ति का हृदय बुरी तरह धड़कने लगता है। यही कारण है कि सोते व्यक्ति को झकझोर कर अथवा तेज आवाज देकर कभी नहीं उठाया जाता।

यद्यपि मनोवैज्ञानिक बहिर्गमन की इस घटनाओं को मात्र मतिभ्रम कह कर निजात पा लेते है, पर रहस्यवाद में इस विधा को वास्तविक और असीम संभावनाओं से युक्त बताया गया है एवं उसके माध्यम से रहस्यवादी दैनिक जीवन में घटित होने वाली अनेक प्रकार की घटनाओं की व्याख्या करते हैं, यथा- स्वप्नदर्शन, दूरदर्शन, इसे वे एस्ट्रल आयाम की प्रथम अनुभूति बताते है, भूत-पिशाच एवं अन्य सूक्ष्म सत्ताओं त्रके प्रत्यक्ष दर्शन इसे एस्ट्रल शरीर का मूर्तकरण कहा गया है, उन्माद, पागलपन को सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर में स्थायी स्थान परिवर्तन (डिजलोकेशन) बतलाया जाता है, अचेतन अवस्था, निद्रा, बेहोशी आदि में एस्ट्रल बॉडी की अस्थायी अनुपस्थिति मानी गयी है, आत्माओं के लिए माध्यम बनना, पिशाचग्रस्त होना, बहुव्यक्तित्व प्रदर्शन, प्राण प्रत्यावर्तन इन्हें भौतिक शरीर पर अन्य सूक्ष्म सत्ताओं द्वारा आधिपत्य कुछ भी हो, है यह सब कुछ अतिविलक्षण एवं अद्भुत। सूक्ष्म जगत के क्रिया-कलापों की तो यह एक झलक मात्र है। संभावनाएं असीम अपरिमित हैं। इस शक्ति समुच्च को कुरेदा जगाया जा सकते तो ऋद्धि सिद्धियों का वैभव भाण्डागार हस्तगत हो सकता है।


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