संरचनाओं का मायावी संसार

March 1988

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आधुनिक भौतिक वैज्ञानिकों को अपने नित नूतन आविष्कारों, शोध प्रक्रियाओं एवं निर्माणों पर गर्व है। वह उचित भी है पर यह नहीं समझा जाना चाहिए कि भूतकाल में इस विद्या की जानकारी किसी को भी नहीं थी। सच तो यह है कि पुरातन काल में विज्ञान की अपनी विशिष्ट दिशाधारा थी, जिसमें पदार्थों का ही आश्चर्यजनक परिवर्तन नहीं होता था, वरन् शरीरगत विद्युत शक्ति का भी भूचुम्बकीय धाराओं से सुनियोजन स्थापित किया जाता था, जिसकी दिशाधारा को अभी तक समझा नहीं जा सकता।

दिल्ली की कुतुबमीनार के समीप लगी लाट की धातु और मिस्र के पिरामिडों की संरचना इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। त्रेता में पुष्पक विमान और द्वापर में महाभारत कालीन दिव्य अस्त्रों का प्रयोग भी भूतकालीन वैज्ञानिक प्रगति की साक्षी प्रस्तुत करता है।

मिस्र के सैकड़ों मील क्षेत्र में फैले हुए गगनचुम्बी पिरामिडों में रखे शवों में हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक बदबू या सड़ांध नहीं आई है। इसके निर्माणकर्ता ‘फैराओं” की रूहें तो अब किसी सूक्ष्म जगत में होगी किन्तु उनके स्मारकों के रूप में बृहदाकार पिरामिड आज भी सुसभ्य कहे जाने वाले संसार का ध्यान बलात् अपनी ओर आकर्षित करते है। इस विचित्र निर्माण को देखकर विज्ञान वेत्ता भी आश्चर्यचकित है।

सुप्रसिद्ध लेख प्लिनी और रामनों ने लिखा है कि मिस्र के तीन पिरामिडों ने अपनी ख्याति से सम्पूर्ण पृथ्वी को गुँजित कर दिया है। हजारों वर्षों से प्राकृतिक थपेड़ों को सहने के बाद भी उनकी संरचना में कोई अंतर नहीं आया है। उन्हें देखकर सबसे बड़ा आश्चर्य यह होता है कि प्रारंभिक काल में मानवों ने रेगिस्तानी पठार में प्राकृतिक संरचनाओं से स्पर्धा करते हुए ये कृत्रिम पर्वत कैसे बनाये होंगे? किन महाबली पुरुषों ने विशालकाय चट्टानों को सुदूर पर्वत श्रृंखलाओं से तोड़कर उन्हें मरुस्थल में जुटाया होगा और किन वास्तुकला विशेषज्ञों ने इसकी अद्भुत ज्यामितीय प्रक्रिया में अपना पसीना बहाया होगा।

विश्व ने अनेक भागों जैसे दक्षिणी अमेरिका, जीन साइबेरिया, फ्राँस, इंग्लैण्ड आदि देशों में पिरामिड मिले है, किन्तु इनमें सबसे अधिक विख्यात ‘गीजा का पिरामिड’ है। इसका आधार क्षेत्र 13 एकड़ से अधिक और ऊंचाई 150 मीटर है, इसमें 26 लाख विशालकाय पत्थर के टुकड़े लगे हैं जिनका भार दो टन से 80 टन तक का है। ये पत्थर ग्रेनाइट और चूने से विनिर्मित है। सुप्रसिद्ध अंग्रेज पुराविद् फ्लिंडर्स पेट्री के अनुसार 450 फीट की ऊंचाई पर इन भारी चट्टानों को बिना किसी याँत्रिक सहायता के ऊपर चढ़ाया गया है। इनकी जुड़ाई में कहीं भी एक इंच के किसी भी भाग का अन्तर नहीं आया है। इन पिरामिडों के निर्माण में इतना ठोस पदार्थ लगाया गया है। जितना कि उस समय के निर्मित गिरिजाघरों तथा अन्य भवनों में कहीं प्रयुक्त नहीं हुआ है।

विलियम पीटरसन कॉलेज, न्यूजर्सी में प्राचीन इतिहास के मूर्धन्य प्राध्यापक डॉ. लिविओं सी. स्टेचिर्न के अनुसार मिस्र के लोग ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व भी आधुनिक टेलिस्कोप और कोनोमीटर से भली भाँति परिचित थे। उन्होंने पिरामिड के निर्माण में उच्च स्तरीय वैज्ञानिक यंत्रों का प्रयोग किया था। पिरामिड की चोटी ध्रुव के एवं परिधि भूमध्य रेखा के सदृश्य है। इसका जब वैज्ञानिक पर्यवेक्षण किया गया और इसके त्रिभुजाकार दीवारों की माप ली गई तो उनके विभिन्न आयामों में गणितीया स्थिराँक पाई (3.24 एवं ‘फाई’ (1.619) का महत्वपूर्ण अनुपात पाया गया। पुनर्जागरण काल में इन अनुपातों का शिल्पकला में बहुतायत से प्रयोग किया गया। विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात मानवी काया में सौंदर्य व आकर्षण उत्पन्न करता है। टी. ब्रून्स ने अपनी पुस्तक “सिक्रेट्स ऑफ एन्शीएंट ज्यामेटी” में पिरामिडों के रहस्यमय आकार व उनके प्रभावों का गहराई से विवेचन किया है।

वैज्ञानिकों ने आकृति व आयामों की विभिन्न माप एवं उनके पारस्परिक अनुपातों से अन्य अनेक रहस्यों का पता लगाया है। इससे गीजा पिरामिड के रचनाकाल की भी .... मिली है। इन मापों से अंतरिक्षीय ग्रह पिंडों की .... की भी जानकारी मिलती है। उन्नीसवीं सदी के विख्यात खगोलवेत्ता प्रोक्टर ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में कहा था-कि इन पिरामिडों का उपयोग ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन के लिए वेधशालाओं के रूप में किया जाता रहा था। उनके अनुसार इतनी बहुमूल्य वेधशालाएं न तो कभी पहले तैयार की गई थी न ही भविष्य में कोई संभावना थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि गीजा का पिरामिड निखिल ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा मॉडल है। इस महान पिरामिड की स्थिति मिस्र के लिए ही नहीं वरन् समस्त भूमण्डल के लिए सेन्ट्रल मेरीडियन केन्द्रीय याम्योत्तर है। सम्पूर्ण विश्व मानचित्र को दो बराबर भागों में बाँटने वाली रेखा के बिन्दु पर यह स्थित है। यदि इससे गुजरती हुई कोई रेखा खींची जाए तो इस रेखा पूर्वी और पश्चिमी छोर परस्पर बराबर होंगे। इस प्रकार इसका केन्द्रीय मोत्तर भरूमण्डल के देशान्तर का प्राकृतिक शून्य है। मानव निर्मित यह स्मारक पृथ्वीवासियों की तत्कालीन तीक्ष्ण प्रतिभा का अद्वितीय परिचायक है।

महान पिरामिड निर्माताओं ने वृत्तों में वर्गीकरण कर घनत्वीकरण इस प्रकार से निर्मित किया है कि .... ने अपने पर्यवेक्षण में पाया है कि कॉस्मिक ऊर्जा शक्ति पिरामिड के क्षेत्र अणु-अणु में व्याप्त है। भौतिक, नासिक आध्यात्मिक-आत्मिक सभी प्रकार की ऊर्जाएं, वहाँ विद्यमान है। वहाँ पर जीवन पूर्णरूपेण भावना से सम्बन्धित हो जाता है। ऐसे अनेकों प्रमाण प्राप्त हुए है कि पिरामिड की ऊर्जा पदार्थिय और सूक्ष्मीय चेतना को प्रभावित करने में सक्षम है। प्रयोग परीक्षणों के समय ऐसा देखा गया है कि इसके अन्दर उत्तर दक्षिण अक्ष में रखे गये फल फूल माँस बहुत दिनों तक यथावत् ताजे बने रहते है। पानी तथा अन्य द्रवीय पदार्थों को पात्रों में भर कर रखने से उनके गुणों में आश्चर्यजनक परिवर्तन पाया गया। फ्रांस और इटली की दो विभिन्न फर्मों ने पिरामिड की आकृति के कन्टेनरों का निर्माण किया और उनमें दूध रखकर उसका परीक्षण किया है। इसमें पाया गया कि चौकोर आकृति की अपेक्षा पिरामिड आकृति के कन्टेनरों में दूध ताजा और अधिक सुरक्षित रहता है। शंकु की आकृति वाले कन्टेनरों में पौधे अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता से बढ़ते देखे गये है।

मूर्धन्य फ्रांसीसी इंजीनियर एल. तुरीनी ने अपनी पुस्तक “वेव्स फ्राम फ्रार्म्स” में लिखा है कि कोण, पिरामिड, स्फियर्स, क्यूब्स आदि में विभिन्न प्रकार की ब्रह्माण्डीय ऊर्जाएं-जैसे कास्मिक, सोलर जियोमैग्नेटिक करेण्ट्स आदि का समावेश रहता है। यही कारण है कि पिरामिड ऐसे चमत्कारिक कार्यों को सम्पादित करते है। प्रख्यात नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. लुईस अलवरेज के अनुसार पिरामिड की संरचना ऐसे हुई है कि उसके अन्दर की खुली हुई जगह सदैव इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रतिबिम्बीय ऊर्जा उत्पादित करती है तथा ऊपर से अन्तरिक्षीय ऊर्जा किरणें प्रविष्ट होती रहती है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार पिरामिड से न केवल ऊर्जा प्रवाहित होती है, वरन् ऊर्जाओं को वहाँ रूपांतरित भी किया जाता है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक येथ और नेलसन ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध का है कि पिरामिड की ऊर्जा मध्याह्न को विस्तृत भी होती हैं।

मिश्र के पिरामिड प्राचीन प्रतिभा की ऐसी अमूल्य निधि है जिसमें क्यों और कैसे का बाहुल्य है और पूर्णरूपेण गणित पर आधारित है। इसकी आकृति मायावी है, जिसमें ज्ञात और अज्ञात ऊर्जा जीवित और निर्जीव पदार्थों को प्रभावित किये बिना नहीं रहती। आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए पिरामिड की संरचना आज भी चुनौती बनी हुई है। ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान ने अपने नये शोध कार्य में आकृति- संरचना के प्रभावों की विवेचना के अंतर्गत पिरामिडालॉजी को भी सम्मिलित किया है। पाये गए निष्कर्ष अतिमहत्वपूर्ण है, उपरोक्त मान्यताओं की पुष्टि ही करते है।


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