विधाता ने सृष्टि रचना के उपरान्त दो उपहार सुरक्षित रखे। उन्हें देवताओं और मनुष्यों में बीच बाँटा जाना था। प्रथम उपहार मंच पर रखा गया तो उसे लपक कर गणेश जी ने ले लिया, वह थी बुद्धिमत्ता अब की बारी मनुष्यों की थी। उन्हें उदास देखकर ब्रह्माजी ने कहा-अबकी बार जो मिलना है वह और भी अधिक मजेदार है, आप लोग उदास न हों। मंच पर रखी वस्तु पहले से अधिक चमकदार थी। उसे मनुष्यों ने ले लिया और आपस में बाँट कर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करने लगे।
वह वस्तु थी-मूर्खता। मनुष्य तब से लेकर अब तक मूर्खता को बहुत सँभाल सँजोकर रख रहे हैं और इसे बुद्धिमत्ता से बढ़कर मानते हैं।