इन्द्रियों किसी को नहीं सतातीं, वे तो उपयोगी प्रयोजनों के लिए बने हुए साधन मात्र हैं। उच्छृंखल तो मन है। उसी को समेटो ताकि इन्द्रियों द्वारा अपनी उच्छृंखलता के लिए बाधित न करे।