हँसे तो दिल खोलकर

June 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पेरिस के एक सभा भवन में प्रति रविवार को 10 बजे एक गोष्ठी आयोजित होती हैं। जिसमें वहाँ के वैज्ञानिक हँसी पर भाषण देते हैं। अन्त में सभी कक्षों में अंधकार हो जाता है और लोगों के कह-कहे गूँजने लगते हैं। मन के सुखद भावों को बाहर लाने के लिए हँसी सर्वोत्तम उपाय हैं। जो स्वयं को ही प्रसन्न नहीं करती, वरन् आस−पास के लोगों और मित्रों को भी प्रफुल्लित कर देती है। हास्य शरीर की स्वाभाविक तथा आवश्यक क्रिया है जो दैनन्दिन जीवन में आने वाले व्याघातों का कुप्रभाव नष्ट करती है।

जब किसी के व्यवहार से दुःख पहुँचता है कोई नैराश्य पूर्ण स्थिति आ जाती है और संयोग वश उसी समय हँसी आ जाय तो सारा क्रोध और चिन्ता दूर होकर मन झूम उठता है। यह प्रत्यक्ष अनुभूत किया जा सकता है। मुस्कान और हँसी के द्वारा अंतर्जगत में एक ऐसा स्निग्ध वातावरण बनता है जो अंदर ही अंदर से हृदय को शीतलता प्रदान करता है।

इस शुभ प्रभाव का कारण हँसी की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया है। व्यथा, क्रोध, चिड़चिड़ापन थके हुए मन में ही ज्यादा उत्पन्न होते हैं, जबकि हास्य मन के सारे तनावों और ग्रंथियों को दूर कर देता है, खोल देता है। एक फ्रांसीसी मनोविज्ञ रोग चिकित्सक डॉ. पौस्किड ने लम्बे समय तक इस विषय में अन्वेषण किया है। लगभग 150 प्रयोगों के द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हँसने से मनुष्य के मन और मज्जातंतुओं को स्फूर्ति और सजीवता प्राप्त होती है तथा थकान और चिन्ता का भार कम हो जाता है। हँसी एक ऐसा मनोवैज्ञानिक व्यायाम है जो मन को ही नहीं, शरीर के अवयवों तथा माँसपेशियों को भी अनावश्यक दबाव से मुक्त कर देता है।

हँसी के बारे में सर्व सम्मत सिद्धान्त है कि इससे खून बढ़ता है। यह केवल कल्पना मात्र ही नहीं है। अमेरिका के डॉक्टरों ने इस सिद्धान्त की सच्चाई को परखने के लिये बालकों के दो समूह लिए और दोनों को अलग-अलग रखा। एक समूह को देख करके भोजन के बाद एक मसखरा तरह-तरह से हँसाता रहता दूसरे समूह के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी। एक मास बाद दोनों समूह के बच्चों का परीक्षण किया गया तो पता चला कि हँसने वाले बच्चों का स्वास्थ्य पहले की अपेक्षा और अच्छा हो गया है। वे पढ़ने लिखने में भी तेज हो गये हैं।

परन्तु यह सब होता तब है जब दिल खोलकर हँसा जाय। बहुत से अवसरों पर हम औपचारिक रूप से ही हँस पाते हैं। अपने साथी मित्रों का मन रखने के लिए अथवा आसपास के लोगों का साथ देने के लिए। ऐसी डेढ़ इंच मुस्कान या हँसी का कोई परिणाम नहीं होता।

मुस्कान भी हँसी का ही एक स्वरूप है। यह सदा बनी रहने वाली स्थिति है। चौबीसों घंटे खिलखिलाते रहना असंभव हो सकता है परन्तु सदा मुस्कराते रहना ज्यादा कठिन नहीं है। दर्पण में खिला हुआ मुख कमल देखकर मन आह्लादित हो उठता है। मुस्कराते हुए व्यक्तियों के समीप क्रोध, ईर्ष्या और प्रतिहिंसा फटकती तक नहीं। प्रतिहिंसा की अग्नि को शान्त करने वाली यह अचूक औषधि है। कभी-कभी घर में पति-पत्नी के बीच कलह होता है, या कोई मित्र रूठ जाता है तो मुस्कराने का नुस्खा आजमाकर इस स्थिति को आसानी से सम्हाला जा सकता है। मन पर जमा हुआ सारा मैल, मुस्कान के जल-प्रवाह में बह जाता है।

मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मुस्कान के द्वारा आँतरिक मन को एक स्वस्थ संकेत मिलता है, विद्युत प्रवाह बढ़ता है। इसका दूसरा लाभ यह है कि हमारा मन मधुर कल्पनाओं, सद्भावनाओं तथा पवित्र विचारों से ओत-प्रोत है। मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव शरीर, आयु और आरोग्य पर निसंदेह पड़ता है। इसी तथ्य की ओर इंगित करते हुए श्रीमती एलिजाबेथ सैंफोर्ड ने लिखा है कि “सौ वर्ष जीने के लिए चारों ओर से जवान और हँसमुख मित्रों से घिरे रहो।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118