आर्य समाज के प्रमुख नेता स्वर्गीय महात्मा आनन्द स्वामी ने अपने अनुभवों को बताते हुए लिखा है कि बचपन में वे मन्दबुद्धि थे। हर वर्ष फेल होते थे। घर के काम काजों को भी ठीक तरह न कर पाने पर उनकी प्रताड़ना होती थी। दुःखी होकर उनने एक नदी में छलाँग लगा दी। बहते हुए बहुत दूर निकल गए तो किसी अपरिचित व्यक्ति ने उन्हें निकाला और घर पहुँचा दिया।
इसी बीच किसी सन्त से उनकी भेंट हुई। उसने उन्हें गायत्री मंत्र सिखाया। वे लिखते हैं कि “मैं नियमित रूप से उस साधना को करने लगा बुद्धि तीव्र हुई। अच्छे नम्बरों से पास होने लगा। ‘आर्य गजट’ का सम्पादक बना। “अपना निज का ‘मिलाप’ पत्र निकाला। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो गई।”
एक क्रान्तिकारी केस में उनके पुत्र को फाँसी हुई थी। आनन्द स्वामी जेल में मिलने गये तो उसे ‘गायत्री’ का आश्रय लेने के लिए कहा। अपील में वह छूट गया।
हिन्दुस्तान पाकिस्तान बँटवारे में हुए दंगों में गुण्डों ने उनका घर घेर लिया और आग लगाने की तैयारी कर ली। नीचे उतरने की गुंजाइश न थी। छत पर बैठकर वे सब गायत्री जप करने लगे। इतने में एक परिचित पुलिस अफसर उधर से निकले। उनने उन्हें बचाया और दिल्ली पहुँचने का प्रबन्ध किया।
स्वामी जी ने जीवन भर गायत्री का बहुत प्रचार किया और कई पुस्तकें इस विषय पर लिखीं। गायत्री परिवार के प्रयासों एवं इसके संस्थापक के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा थी।
राजा अश्वपति की गायत्री उपासना प्रसिद्ध है। उनके शासनकाल में सतयुगी वातावरण था। राजा के धर्मात्मा होने से प्रजा भी वैसी ही हो गई थी। उनके राज्य में अपराधों का सिलसिला एक दम ही समाप्त हो गया था। और सभी प्रजाजन धन-धान्य और सुख शान्ति से पूर्ण थे। सतयुग का जो वर्णन पढ़ने को मिलता है, उसका साकार रूप राजा अश्वपति के राज्य के वर्णन-वातावरण की जानकारी द्वारा देखने को मिलता है।
देवी भागवत में और भी ऐसी ही कितनी ही कथाओं का वर्णन है जिसमें गायत्री उपासना से अनेकों ने असाधारण सिद्धियाँ पाई।
विश्वमित्र राजर्षि से ब्रह्मर्षि इसी अवलम्बन के आधार पर बने।
ध्रुव को भी नारदजी ने इसी महामंत्र की उपासना करके त्रैलोक्य का अधिपति बनाया था।
वृन्दावन में काठिया बाबा नाम एक परम सिद्ध हो गये थे। विद्याध्ययन के उपरान्त वे गायत्री उपासना में लगे और संन्यासी हो गये। वे काठ की लंगोटी पहनते थे। इसीलिए उनका नाम काठिया बाबा प्रसिद्ध हो गया। कोई दीन दुःखी याचना, करता तो उसे धन देते रहते। लोगों ने समझा इनने काठ की लंगोटी में पैसा छिपा रखा है, सो उनके सेवक बने धूर्तों ने दो बार जहर दिया कि लंगोटी में छिपा धन मिल जाय। वे जहर से तो नहीं, समय आने पर मरे। काठ की लँगोटी खोली गई तो उसमें कुछ भी नहीं मिला। उनके आशीर्वाद से कितनों का ही भला हुआ। जो वे कह देते थे, सही होकर रहता था।